मनीष सिसोदिया को भगत सिंह संबोधित कर केजरीवाल भगत सिंह का मजाक नहीं उड़ा रहे हैं क्या?
-विशाल झा की कलम से-
Positive India:Vishal Jha:
भगत सिंह बनना तो दूर, नेता बनना अब आसान नहीं है भारत में। क्या है इसका कारण? क्षेत्रिय जितने स्थापित नेता हैं, आजादी आंदोलन के बाद के उपजे हुए हैं। दशकों दशक सत्ता भोग चुके हैं। अब उनके बेटे भतीजे की अगली पीढ़ी सत्ता भोग रही है। अन्ना आंदोलन कमजोर कहां था? सवा सौ साल की स्थापित कांग्रेस की बुनियाद हिला दी थी। तब से कांग्रेस उत्तरोत्तर गर्त में समाता जा रहा है। केजरीवाल नेता बनकर उपजे। आंदोलन ने केजरीवाल को इतनी ताकत दी कि वे प्रधानमंत्री पद के एक मजबूत दावेदार बने।
’14 के बाद लेकिन एक ऐसे नेता का राष्ट्रीय स्तर पर उदय हुआ, कि बाकी तमाम नेता बौने हो गए। आज मनीष सिसोदिया को भगत सिंह कह कर केजरीवाल संबोधित करते हैं, तो सामाजिक मीडिया के लिए यह एक उपहास का मुद्दा बन जाता है। क्यों बन जाता है? नरेंद्र मोदी ने नेतृत्व की लकीर इतनी लंबी खींच दी है, कि कोई उस लकीर के इर्द-गिर्द भी नजर नहीं आ पा रहा। भारत की राजनीति से यदि मोदी को हटा दिया जाए, तो असल में आज दिन का नेता मनीष सिसोदिया ही हैं। लेकिन सच्चाई है कि समन तो क्या, गिरफ्तारी भी हो जाए तो आम आदमी पार्टी को गुजरात में सिम्पथी वोट के भी लाले पड़ जाएंगे।
मोदी ने राजनीति को बहुत मुश्किल बना दिया है। इतना मुश्किल कि आप दिन रात मेहनत करते रह जाएंगे, एक विषयी प्राणी होकर फिर भी मोदी जैसा जनाधार नहीं खींच पाएंगे। मोदी ने नेतृत्व की लकीर को तन, मन और धन तीनों झोंक कर इतना बड़ा किया है। अपने परिवार, अपना संबंधी, अपना नींद, अपनी खुशी सब कुछ त्याग कर दिया है। न अपने लिए जमीन खरीदना है, न बंग्ला खड़ा करना है, न इस बात की चिंता की बाल बच्चों का कैरियर राजनीति में कैसे सेट करना है। एक भी दिन अवकाश नहीं। कभी बीमार न पड़ना। पकड़े रखा है कुछ, तो वह है केवल धर्म और कर्तव्यनिष्ठा। कहां से मुकाबला कर पाओगे आप?
इस देश को अब नेता होने का मतलब पता हो चुका है। नेता की परिभाषा लोग जान चुके हैं। गांधीजी भी मौसमी नेता हुआ करते थे। भारत को एकजुट करने के लिए चंपारण सत्याग्रह से जब उठे तो भारत छोड़ो आंदोलन तक न जाने कितने ही बार गांधी जी सालों साल सक्रिय राजनीति से संन्यास लेते रहे। मोदी जी 2001 में पहली बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और आज 21वां वर्ष बीत रहा है। कभी भी छुट्टी पर नहीं देखे गए। एक नेता का क्या मतलब होता है देश ने अब बड़े खतरनाक तरीके से इस ज्ञान को पकड़ लिया है। इसलिए एक क्या 20-20 सिसोदिया भी मिलकर गुजरात में इस विधानसभा भाजपा को बेदखल नहीं कर सकते। क्योंकि मोदी जी अभी सक्रिय राजनीति में मौजूद हैं।
मनीष सिसोदिया जैसे नेता यदि मोदी जैसी मजबूत शख्सियत चाहते हों, तो उन्हें मामूली से सीबीआई के समन पर भीड़ जुटाकर राजनीति करने से ऊपर उठना था। 2002 गुजरात दंगा मामले में मोदी जी को फर्जी तरीके से केंद्र की जांच एजेंसियों ने न जाने कितने ही बार समन किया और पूछताछ की। इसके बावजूद भी मोदी अकेला जाया करते थे। क्योंकि मोदी जी को मालूम था राजनीति बड़े मुद्दों की की जाती है। तभी आज इतनी बड़ी शख्सियत है। सिसोदिया अपनी पूरी उम्र खफा देंगे, तो भी मोदी पॉलिटिक्स की आरंभिक छोड़ तक नहीं छू पाएंगे।
साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार है)