एम्स में काम कर रहा कश्मीरी डॉक्टर क्यों नहीं चाहता था कि कश्मीर आतंकवाद से मुक्त हो?
-विशाल झा की कलम से-
Positive India:Vishal Jha:
कोई सात वर्ष पहले की घटना है। दिल्ली एम्स में डेंटिस्ट से मेरा हर पखवाड़े अपॉइंटमेंट रहता था। यंग लेडी डॉक्टर थीं, डॉक्टर सुप्रिया। बगल के केबिन में एक कश्मीर का मजहबी डॉक्टर इंटर्नशिप करता था। जंक टॉक के लिए इधर के केबिन में आ जाता था। मैं डेंटल चेयर पर लेटा हुआ था। उन दोनों में जब चर्चा कश्मीर पर आ गयी तब उपचार की गति भी धीमी हो गई। मैं भी अनसुना सा होकर सुनने लगा।
कश्मीर वाले डॉक्टर साहब ने बड़े खुले जुबान में कहा कि नहीं हम आजाद होना चाहते हैं। हम न पाकिस्तान में मिलना चाहते हैं और ना ही भारत में। जब सुप्रिया जी ने पूछा कि कश्मीर आजाद हो जाएगा तो बाकी के संसाधन कश्मीर को कहां से उपलब्ध होंगे? इस पर उन्होंने जवाब दिया कि कश्मीर के पास अपनी जरूरत के लिए पर्याप्त संसाधन हैं। समस्या क्या है, तो सुरक्षा सैनिक रास्ते में खड़े रहते हैं और जाते-आते सबका झोला बैग चेक करते रहते हैं। सुप्रिया जी को सहसा मेरे ऊपर ध्यान आया, उन्होंने मुझसे कहा बाहर इनसब बातों को नहीं बोलिएगा।
मैंने जब सोचा मुझे आश्चर्य हुआ। एम्स में डॉक्टर है। देश की राजधानी में इंटर्नशिप कर रहा है। देश की माटी का खाया, पिया, पढ़ा और सुरक्षा का लाभ लिया है। एक पढ़ा लिखा व्यक्ति है। नौजवान है। हमने तो सुन रखा था, वहां का हर मजहबी नौजवान वैसा नहीं है। भारत से उसकी देशभक्ति है। लेकिन यहां देखिए एक शिक्षित और व्यवस्थित कश्मीरी नौजवान से बेहतर कौन हो सकता है? और इसके भी विचार कश्मीर को भारत से काटने का है। तो फिर बाकी जाहिल मजहबियों का कश्मीर में क्या मानसिकता होगी? टेररिज्म और सुरक्षा कारणों से देश की सेना कश्मीर में लोगों के थैले चेक कर लेती थी तो इतना तकलीफ होता था। क्या वह कश्मीरी डॉक्टर नहीं चाहता था कि कश्मीर आतंकवाद से मुक्त हो? अगर एक डॉक्टर बना हुआ कश्मीरी नौजवान आतंकवादियों से सिंपैथी रखता था, तो हम कैसे मान लें कि पढ़े-अनपढ़ तमाम मजहबी लोग वहां के टेररिज्म के समर्थक नहीं थे।
असल बात तो ये है कि कश्मीरी हिंदुओं के पलायन के पश्चात कश्मीर के आम मजहबी नागरिकों ने मान लिया था कि कश्मीर आजाद हो गया है। बच गया है तो केवल एक ऐलान सा कुछ। यासीन मलिक, गिलानी से लेकर तमाम अलगाववादियों को कश्मीर का स्टेकहोल्डर बताया जाता था। स्टेकहोल्डर्स का पाकिस्तान के हाफिज सईद से भी मिलना हुआ करता था और भारत के मनमोहन सिंह जी से भी। मीडिया और इंटेलेक्चुअल समाज तो आजादी के तराने की डफली तो पीटते ही रहते थे। शायद किसी को अंदाजा नहीं था कि भारत में कोई ऐसा नेता आएगा जो इस आजाद हुए कश्मीर को पाकिस्तान के हलक में हाथ डाल कर निकाल लेगा। अचंभा सा लगा होगा तब जब 5 अगस्त 2019 को राज्यसभा में अमित शाह ने खड़े होकर बोला, “जिस दिन राष्ट्रपति इस घोषणा पर हस्ताक्षर करेंगे उस दिन से अनुच्छेद 370 के सभी खंड लागू नहीं होंगे।”
साभारः विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार हैं)