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भारत में अशांति पैदा करने वाले जुबेर को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए क्यों नामित किया गया?

-विशाल झा की कलम से-

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Positive India:Vishal Jha:
न केवल भारत में बल्कि विश्व भर में अशांति पैदा करने वाले को ‘शांति का नोबेल पुरस्कार'(Nobel Peace Prize) के लिए नामित किया गया है। जी हां जुबेर (Juber)नामित हुआ है। वही जुबेर जिसके समर्थन में तालिबान सामने आ गया था। अशांति फैलाने के जुर्म में जो जेल काट चुका है। जमानत पर है। मामला अदालत में चल ही रहा है।
ऐसे में ये वैश्विक शक्तियां किस प्रकार से भारत के विरुद्ध देश विरोधी ताकतों को उर्जा दे रही हैं, राष्ट्रवादी तबकों के लिए एक बड़ा सबक है।

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डिस्मेंटलिंग ग्लोबल हिंदुत्व(Hindutva) नाम से कॉन्फ्रेंस विश्व भर में चल रहा है। हार्वर्ड, स्टैनफोर्ड समेत 50 से अधिक संस्थान इस कांफ्रेंस को स्पॉन्सर करते हैं। ऐसी ऐसी शक्तिशाली ताकतें आज केवल इसलिए अपने काम पर लग गए हैं, कि भारत में कुछ हिंदू जाग गए हैं। कुछ मतलब एकदम न्यून। इसका अंदाजा आप ऐसे लगाएं कि मोदी को वोट देने वालों में अधिकतम 15 से 20% लोग ऐसे होंगे जो प्रचंड हिंदुत्व के नाम पर मोदी को वोट करते होंगे। सारा गुणा गणित बैठा लेंगे तो हिंदू समाज से बमुश्किल 4 से 5% लोग आपको ऐसे मिल जाएंगे। और केवल इतने भर जागृति से डरकर हिंदू विरोधी तमाम वैश्विक शक्तियां बौखला गई हैं। इसलिए जुबेर जैसे हिंदुत्व विरोधी तालिबानी ताकतों को नोबेल प्राइज के लिए नामित किया गया है।

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सवाल है इन बाहरी ताकतों से लड़ने के लिए हिंदू समाज की रणनीतियां क्या हैं? प्रशंसा की बात है कि देश के भीतर के तमाम देश विरोधी संस्थानों की जड़ें तो हिंदुत्ववादियों ने हिला कर रख दी है। अथवा तो कम से कम चुनौती अवश्य पेश कर रहे हैं। संघर्ष अवश्य कर रहे हैं। बाजार के खोमचे वालों से सौदा खरीदने से लेकर बॉलीवुड की फिल्मों तक, पत्रकारिता की सिंगल हेडलाइन से लेकर न्यायपालिका के निर्णय प्रक्रिया तक, हिंदू समाज अब एक एक चीज को अपने विवेक के अधीन पड़खने लगा है। लेकिन देश के बाहरी ताकतों का हिंदू समाज ने निजी तौर पर क्या करना है, यह तय करने का वक्त अब आ चुका है।

डिस्मेंटलिंग ग्लोबल हिंदुत्व से लड़ाई न केवल मोदी की लड़ाई है और ना ही मोदी सरकार की। यह हिंदू समाज की निजी लड़ाई है। लेकिन उल्लेखनीय है कि मोदी प्रधानमंत्री होते हुए इस दिशा में कहीं ना कहीं पहले दिन से काम करते नजर आ रहे हैं। जिस प्रकार हिंदुत्व के खिलाफ लड़ने के लिए दुनिया भर में तमाम वामपंथी संगठन स्थापित हैं, जो किसी सरकार द्वारा संचालित है नहीं कहा जा सकता। बल्कि यह कहना ठीक होगा कि दुनिया भर की तमाम वामपंथी सरकारें इन संगठनों के इशारे पर कार्य करती हैं। पैगेसस को हथियार बनाकर जब भारत में मोदी के विरोध में प्रोजेक्ट किया गया था, तो यह केवल कुछ इंटरनेशनल मीडिया कंसोर्टियम का निजी प्रयास था। और इस कंसोर्टियम में शामिल दसियों मीडिया संगठन बड़े-बड़े हस्ती वाले वामपंथियों के निजी प्रतिष्ठान थे, जिसे वे एक नॉनप्रॉफिट ऑर्गेनाइजेशन के नाम पर चलाते हैं। खुलकर लिखते हैं कि वे नैरेटिव के लिए काम करते हैं, ना कि व्यवसाय के लिए।

मोदी जब भी विदेश दौरे पर जाते हैं, जिस देश में भी जाते हैं वहां रहने वाले भारतीयों को अथवा भारतीय मूल के लोगों को अवश्य संबोधित करते हैं। उन्हें न केवल भारत में हो रहे बदलाव के बारे में बताते हैं, न केवल भारत के प्रति विश्वभर में क्या नजरिया बना है इस बारे में बताते हैं, बल्कि भारत के चुनौतियों की तरफ भी संकेत करते हैं। इस संवाद से भारतीय मूल के लोगों में राष्ट्रवाद की एक अलग ही तरंग फैलती है। भारत के बाहर रहने वाले ऐसे 100 लोग भी यदि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वामपंथी संगठनों को चुनौती देने वाला एकोसिस्टम खड़ा करते हैं, तो मामूली नैरेटिव मीडिया संगठन से लेकर नोबेल पुरस्कार संगठन तक का एक दिन हम सामना करने की स्थिति में आ जाएंगे। बस इस काम के लिए हिंदू समाज को अब भारत की सीमा के बाहर तक श्रम करना होगा।

साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार है)

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