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ईरान का इस्राइल पर मिसाइल अटैक इतना लचर क्यों था?

-राजकमल गोस्वामी की कलम से-

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Positive India:Rajkamal Goswami:
जब कहीं युद्ध छिड़ता है तो सारी दुनिया उत्सुकता से देखती है जैसे मुहम्मद अली और जो फ़्रेज़ियर के बीच मुक्केबाज़ी का मुक़ाबला हो रहा हो । युद्ध पीड़ितों पर क्या गुज़र रही होती है उसकी परवाह किसी को नहीं होती । ख़ैर जो फ़्रेजियर ने भी सन ७१ में मुहम्मद अली को एक राउण्ड में नॉक डाउन करके मुक़ाबला अंकों से जीत लिया था ।

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ईरान से कहीं अधिक आक्रामक और कामयाब तो हमास का ७ अक्टूबर वाला हमला था । उसने कुछ दुश्मनों को मारा था कुछ को बंधक बना लिया था और ऑयरन डोम को भी भेदने में उसे आंशिक सफलता मिली थी । ईरान से तो कुछ भी न हो सका साथ ही साथ ताक़त की पोल और खुल गई । ईरानी हमले को देख कर सद्दाम हुसैन की स्कड मिसाइलों की याद आ गई जो सद्दाम ने सऊदी अरब और इस्राइल पर बरसाईं थीं । स्कड को इस्राइल की पैट्रियट ने हवा में ही तबाह कर दिया था ।

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ऐसा लगता है कि सीरिया में अपने दूतावास में अपने सैन्य कमांडर की हत्या से बौखलाए ईरान को इस्राइल पर हमले की औपचारिकता पूरी करनी ही थी । उसने अपनी पुरानी जंग खाती मिसाइलों को इस्तेमाल किया और अपने ड्रोन आज़माये । कुछ मिसाइलों को तो जॉर्डन ने ही गिरा लिया । कोई भी देश अपने वायुक्षेत्र का इस्तेमाल पराए युद्ध के लिए क्यों करने देगा भला ? फिर अमेरिका और ब्रिटेन की भी वहाँ मौजूदगी थी जिसने इस्राइल का काम हल्का कर दिया ।

ईरान के प्रशंसक बरसों से इस हमले की प्रतीक्षा कर रहे थे । पहली बार तो ईरान ने इस्राइल पर हमला किया वह भी इतना लचर । बड़ी निराशा हुई उन्हें लेकिन प्रशंसक बड़ी से बड़ी हार को भी जीत के रूप में प्रोजेक्ट करने में समर्थ होते हैं । सन पैंसठ की जंग को पाकिस्तान भारत के ऊपर अपनी विजय मान कर हर साल ६ सितंबर को डिफ़ेंस डे मनाता है ।

इस्राइल का कहना है कि हम ऐसे हमले को दरगुज़र नहीं कर सकते, जवाब तो हमें देना ही पड़ेगा वह भी ऐसा कि दोबारा कोई ऐसी जुर्रत न कर सके । तो देर सवेर इस्राइल का शो शुरू होना ही है । युद्ध प्रेमी उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रहे हैं उधर ईरान दुनिया से गुज़ारिश कर रहा है कि इस्राइल को रोको ।

युद्ध किसी के चाहने से न रुक सकते हैं और न शुरू किए जा सकते हैं । युद्ध की भावनाएँ भड़कते भड़कते एक दिन युद्ध करना मजबूरी हो जाती है । १९७९ की इस्लामी क्रांति के बाद से ही ईरान में युद्धोन्माद भरा जा रहा है वरना राजशाही के दौर में ईरान और इस्राइल में मैत्रीपूर्ण संबंध थे ।

सबसे मूर्खतापूर्ण युद्ध वह होता है जो भगवान के नाम पर भगवान के लिए लड़ा जाता है । क्रूसेड और जिहाद इसी तरह के युद्ध हैं जिन्होंने मानवता का भारी नुक़सान किया है । जो इस बात पर विश्वास करता है कि किसी दिन दुनिया में एक ही धर्म वालों का राज होगा उसके पास अपना बुद्धि विवेक है ही नहीं । यह बिलकुल वैसी बात है कि दुनिया में एक ही प्रजाति के वृक्ष शेष रहेंगे और बाक़ी सब नष्ट हो जायेंगे ।

चाहे जितना युद्ध कर लो दुनिया रंग बिरंगी है और रंग बिरंगी ही रहेगी । किसी एक रंग का राज दुनिया में नहीं हो सकता ।

चलिए एक और जंग से रूबरू होते हैं

साभार:राजकमल गोस्वामी-(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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