भारतीय लड़कियां इस्लाम क्यों कबूल करती हैं ?
-राजकमल गोस्वामी की कलम से-
Positive India:Rajkamal Goswami:
लड़कियाँ इस्लाम इसलिए नहीं क़ुबूल करतीं कि वे अपने धर्म की जानकारी नहीं रखतीं, वे इस्लाम इसलिए क़ुबूल करती हैं कि उनकी इस्लाम के बारे में जानकारी सिफ़र होती है ।
जिस जन्नत के लिए इतना खून खराबा सदियों से चल रहा है उस जन्नत में अल्लाह ने लड़कियों के लिए कोई भी वादा नहीं किया है , न वहाँ उनके लिए शौहर मिलने का कोई वादा है न शराब । जबकि मर्दों को वहाँ खूबसूरत और हमेशा जवान रहने वाली हूरों का बंदोबस्त है । तरह तरह की शराबें और शरबत उनकी ख़िदमत में पेश किए जायेंगे । औरतों को लुभाने के लिए भी कोई वादा नहीं किया गया है बल्कि औरतों का जन्नत में कहीं कोई ज़िक्र ही नहीं किया गया है । पाकिस्तानी पत्रकार आरज़ू काज़मी के यूट्यूब चैनल पर मौलाना रशीदी का इंटरव्यू सुनिए कभी ।
इस दुनिया में भी उनकी ज़िंदगी पूरी तरह शौहर के रहमो करम पर है । जवानी से लेकर घोर वृद्धावस्था में भी शौहर दो मिनट में तलाक़ देकर घर से बाहर कर सकता है वह भी सिर्फ़ शादी के वक़्त तय हुए मेहर की छोटी सी रक़म देकर जो महीने भर गुज़ारे के लिए भी काफ़ी नहीं होती । शाहबानो बेचारी पैंसठ साल की औरत थी जिसे भारत का सुप्रीम कोर्ट तक गुज़ारा भत्ता नहीं दिला पाया ।
धर्म चाहे कोई भी हो उसके विरूद्ध अनंत तर्क दिए जा सकते हैं और कुछ भी साबित नहीं किया जा सकता । लेकिन धरातल पर क्या है यह तो लड़कियों को पता होना चाहिए ।ऐसा नहीं है कि मुस्लिम समुदाय में विवाह सफल नहीं होते लेकिन तलाक़ की तलवार जिस तरह हर समय सर पर लटकी रहती है वह अंतर्मन पर गहरा असर डालती है । पति को क़ुरान अधिकार देती है वह अपनी पत्नी को पीट सके , एकतरफ़ा तलाक़ दे दे , सीने पर सौतन लाकर बिठा दे । औरत को कोई अधिकार नहीं है , वह खुला माँग तो सकती है मगर उसकी माँग स्वीकार की जाए यह बिलकुल ज़रूरी नहीं है ।
यह कहना कि इस्लाम में जातिवाद नहीं है एकदम सिरे से झूठ है । पिछड़ी जातियों के आरक्षण में एक मोटा हिस्सा पिछड़ी मुसलमान जातियों ने घेर रखा है । हिंदुस्तान के किसी मुसलमान की औक़ात नहीं है कि सऊदी अरब से दुल्हन ब्याह लाए । यहाँ भी कोई सैयद किसी जुलाहे को बेटी नहीं देगा ।
असल में होता यह है कि प्रेम में पड़ी लड़की कुछ सुनना नहीं चाहती । वह इतने खुले माहौल में पली बढ़ी होती है कि आने वाली आपदा का अनुमान भी नहीं लगा सकती । उसे अपने प्रेमी में शाहरुख़ ख़ान और नवाब पटौदी जैसे रोल मॉडल दिखाई देते हैं । इस चकाचौंध में वह सैफ़ की पहली हिंदू बीवी और आमिर की डरपोक हिंदू पत्नी का हश्र नहीं देख पाती । जेमीमा गोल्डस्मिथ तो विलायत से अपने ख़्वाबों के शहज़ादे इमरान खान से शादी करने आई थी और इमरान के दिल से उतरने के बाद तलाक़ का दाग़ माथे पर लेकर लौट गई । इमरान आज कल नई दुल्हन ढूँढ रहे हैं । युवावस्था में तो प्रेमी बहुत मिल जाते हैं । रूप सौंदर्य ढल जाने के बाद भी जीवन भर साथ निभाने वाले पति सनातनी ही होते हैं । आजकल ज़रूर सनातनी संस्कारों का क्षरण हो चला है ।
अपवाद तो सभी जगह होते हैं पर सनातन धर्म में विवाह कोई अनुबंध नहीं अपितु संस्कार होता है जीवन का पंद्रहवाँ संस्कार और इसके बाद फिर अंतिम संस्कार ही होता है ।
सनातन धर्म छोड़ना बहुत आसान है पर वापसी लगभग असंभव है । जिस धर्म को हमारे पुरखों ने क़ुर्बानियाँ देकर या जज़िया देकर सदियों से सँभाल कर यह थाती तुम्हें सौंपी है उसे अगली पीढ़ियों के लिए सँभाल कर रखो ।
सुधर जाओ बच्चियों समय रहते ।
साभार:राजकमल गोस्वामी-(ये लेखक के अपने विचार है)