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भारत की चुनावी राजनीति बड़ी दरिद्र राजनीति क्यों है ?

-दयानंद पांडेय की कलम से-

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Positive India:Dayanand Pandey:
भारत की चुनावी राजनीति भी बड़ी दरिद्र राजनीति है। वोटर हो , प्रत्याशी हो , पार्टी या मीडिया सब के सब यही हिसाब लगाते हैं कि मुसलमान किसे वोट देगा , दलित किसे वोट देगा , ब्राह्मण किसे वोट देगा , यादव किसे वोट देगा , पिछड़ा , सवर्ण किसे वोट देगा , सिख किसे वोट देगा , बनिया किसे वोट देगा आदि-इत्यादि । गरज यह कि वोट न हो , जातियों की जागीर हो । धर्म की बपौती हों । किसिम-किसिम की जातियां , किसिम-किसिम के धर्म , किसिम-किसिम की पार्टियां । विकास , भ्रष्टाचार , मंहगाई , बेरोजगारी आदि-इत्यादि सारी बातें हाशिए पर । कोई इस बात पर चर्चा नहीं करता कि अच्छा और ईमानदार प्रत्याशी कौन है और उसे कौन वोट देगा । इसी लिए आहिस्ता-आहिस्ता अच्छे और ईमानदार लोग मुख्य धारा की राजनीति से , चुनावी राजनीति से , कब के बाहर हो गए। पहले राज्य सभा या विधान परिषद में ऐसे कुछ लोग दिख जाते थे , अब वहां से भी बाहर हो गए यह लोग । स्थिति इतनी बदतर हो गई है कि साफ सुथरी राजनीति अब सपना भी नहीं रह गई है । समूची चुनावी राजनीति धर्म , जाति , धनपशुओं और बाहुबलियों की बपौती हो गई है । उन्हीं के वोट , उन्हीं की सत्ता । उन्हीं की दुनिया । साहिर लुधियानवी लिख ही गए हैं , ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है !

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साभार:दयानंद पांडेय-(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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