www.positiveindia.net.in
Horizontal Banner 1

योगी जी की तस्वीर के साथ टेरर शब्द शीर्षक का भारत ने क्यों बहिष्कार कर दिया ?

-विशाल झा की कलम से-

laxmi narayan hospital 2025 ad

Positive India:Vishal Jha:
कारवां पत्रिका के कवर पेज पर योगी जी की तस्वीर के साथ ‘टेरर’ शब्द शीर्षक का भारत ने बहिष्कार कर दिया और स्वयं ही एक नया शब्द शीर्षक दिया- ‘सैफ्रॉन मोंक’।

मजे की बात है कि ‘सैफ्रॉन मोंक’ लिखी कवर पेज अधिक तीव्रता से साझा की जा रही है। शब्द बदल जाने के बावजूद कवर पेज पर जो एक चीज नहीं बदला, वह है योगी जी की छवि। छवि वही है, यथावत है।

टेरर शब्द लिखने वालों ने बड़ी सोच समझकर वो तस्वीर छापी। आंखों से जैसे अंगारे निकल रहे हों। अंगारों की दहक में जैसे कोई सामने पड़े तो जलकर राख हो जाए। आंखों में इसी दहक को कारवां ने टेरर के रूप में डिजाइन कर दिया।

अब सवाल है जब कवर पेज के शब्द बदल दिए गए, तो तस्वीर क्यों नहीं बदले गए? वह इसलिए कि सही तस्वीर पर गलत शब्द डिजाइन किए गए थे। योगी जी की जिन आंखों में डिजाइनर जर्नलिस्ट ने अंगारे डिजाइन किए थे, दरअसल वह अंगार तो समाज के क्रुर तत्वों के लिए था। लोकसमाज के लिए उनकी आंखों में अंगारे तो दरअसल करुणा का सुर्ख वर्ण है।

तारीख याद दिलाना चाहता हूं 12 मार्च 2007। सोमनाथ चटर्जी तब लोक सभा की अध्यक्षता कर रहे थे। संसद में योगी जी ने खड़े होकर जो कुछ भी कहना चाहा, पर वे कह नहीं पा रहे थे। उनकी आंखों में आंसुए फूट रही थी। हां, वे फूट-फूट कर रो रहे थे। 15 लाख लोगों वाले संसदीय क्षेत्र गोरखपुर के दुलारे सांसद थे वे। राजनीति में एक बार कदम रखने के बाद हारना तो दूर, चुनाव-दर-चुनाव मत संख्या में हजारों की वृद्धि होती गई। लेकिन 2006 में जब पूर्वांचल सांप्रदायिकता की आग में झुलस रहा था, योगी जी जब वहां जाने निकले तो ना केवल उन्हें 12 घंटे हिरासत में बंद रखा, बल्कि 11 दिन जेल में भी रखा गया। घोर पुलिसिया यातनाएं दी गई।

तो मसला है संदर्श का। किसी को उन आंखों में अंगार दिखाई देता है, किसी को उन्ही आंखों में करुणा दिखाई देता है। उनकी आंखों में अंगार देखने वाले उनकी शासनकाल को आतंक का शासन काल कहते हैं। जबकि उनकी आंखों में करुणा देखने वाले उन्हें एक भगवा संत अर्थात सैफ्रॉन मोंक के रूप में देखते हैं।

कितनी सुंदर बात है कि एक शासक का शासन उसकी आंखों से परिभाषित होती है। समाज के क्रूर तत्वों के लिए उन आंखों में आतंक के अंगारे भरे हुए हैं। वही सुख-शांति की कामना रखने वाला आम जनमानस उसी आंखों में करुणा देखता है। और एक पत्रिका की कवर पेज पर भी उन्हें भगवा संत ही लिखा होना पसंद करता है।

साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार हैं)

Leave A Reply

Your email address will not be published.