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कश्मीर पर कब्जा करने के सपने देखते रहे इमरान को जूते मार मारकर क्यों भगाया गया?

-सतीश चन्द्र मिश्रा की कलम से-

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Positive India:Satish Chandra Mishra:
केवल 7 महीने बाद ही मौसम पूरी तरह बदल चुका है। इसीलिए मुद्दा चाहे जैसा भी हो, जो भी हो। मैं तत्काल विचलित या भ्रमित नहीं होता।😊
आजकल पाकिस्तान में हो रहे हाहाकार और इमरान खान पर हो रही जूतों की बरसात देख मुझे केवल 7 महीने पहले का घटनाक्रम याद आ रहा है।

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उस समय भारतीय न्यूजचैनलों पर पाकिस्तान और तालिबानी गुंडों की ताक़त और दहशत का बड़ा शोर मच रहा था।

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चीन और पाकिस्तान से मिलीं 2 नंबरी बंदूकों तोपों और हथगोलों तथा अमेरिकी सैनिकों द्वारा अफगानिस्तान में छोड़ दी गयी हथियारों की जूठन से लैस तालिबानी गुंडों का सबसे बड़ा मददगार पाकिस्तान का प्रधानमंत्री इमरान खान बना हुआ था। तालिबान की मदद से पाकिस्तान द्वारा कश्मीर पर हमले की आशंका और डर वाली वेताल कथाओं की खबरों का कैबरे डांस लुटियन न्यूजचैनलों के एंकर एडिटर लगातार कर रहे थे।
आज 7 महीने बाद स्थितियां पूरी दुनिया के सामने हैं। भूखों मर रहे तालिबानी गुंडे भारतीय अनाज और दवाओं की दया पर जिंदा हैं। खौराए, कटहे कुत्ते की तरह पाकिस्तान का जीना हराम किए हैं। 7 महीने पहले तालिबान के बल पर कश्मीर पर कब्जा करने के सपने देखते रहे इमरान को जूते मार मारकर किस तरह पाकिस्तान से ही खदेड़ा जा रहा है। दुनिया आज यह भी देख रही है।
लेकिन मैं 7 महीने पहले ही इस सच्चाई को समझ रहा था। उन दिनों लुटियन न्यूजचैनलों के एंकर एडिटर कश्मीर पर तालिबानी हमले का कैबरे डांस जब कर रहे थे तब 5 सितंबर को अपनी पोस्ट में मैंने लिखा था कि…
भारत पर यह दोनों इंटरनेशनल भिखमंगे मिलकर हमला कर सकते हैं, उसपर भारी पड़ सकते हैं। देश को डराने, उसका मनोबल तोड़ने वाले ऐसे मूर्खतापूर्ण सपने ना मैं देखता हूं ना दिखाता हूं। यह कुकर्म केवल कुछ न्यूजचैनलों के हाहाकारी एंकर/रिपोर्टर/एडिटर करते हैं। या फिर डेढ़ 2 हजार रुपए प्रति डिबेट के किराए के हिसाब से न्यूजचैनलों की डिमांड के अनुसार चीखने चिल्लाने गरजने बरसने वाले फलाने, ढिकाने विशेषज्ञ विश्लेषक ऐसे कारनामों को अंजाम देते हैं।
सच यह है कि इन दोनों भिखमंगों की भारत में घुसने की औकात नही है। अगर दोनों भिखमंगों ने गलती से ही ऐसा कोई दुस्साहस कर भी दिया तो भारतीय सेना इनकी खाल में भूसा भर देगी। 1948, 1965, 1971, 1999 में भारतीय सेना ऐसा कर के दिखा भी चुकी है।

अपनी उपरोक्त पोस्ट का अंत मैंने यह लिख कर किया था कि… थोड़ी प्रतीक्षा करिए। क्योंकि मौसम तेजी से बदल रहा है।😀।
आज केवल 7 महीने बाद वो मौसम पूरी तरह बदल भी चुका है। इसीलिए मुद्दा चाहे जैसा भी हो, जो भी हो पर मैं तत्काल विचलित या भ्रमित नहीं होता। निश्चिंत रहता हूं, और अगर उस मुद्दे में नरेन्द्र मोदी की भी कोई भूमिका हो तो शत प्रतिशत निश्चिंत हो जाता हूं कि… मोदी जहां चाहेंगे, भारत का खटोला वहीं बिछेगा।😊

साभार:सतीश चंद्र मिश्रा-(ये लेखक के अपने विचार है)

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