IMA द्वारा मेडिकल बिल के विरोध का विश्लेषण
ऐलोपैथी पंच सितारा की चाय है और आयुर्वेद टपरी की चाय, बस यही अंतर है ।
Positive India:Dr.Chandrakant Wagh:
मोदी जी के द्वारा लाए गए मेडिकल बिल का विरोध स्थानीय स्तर पर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक हो रहा है। एक बार तो लाजिमी भी, पर स्तर इतना निम्न है जो सोचने पर मजबूर करता है कि ऐसी आलोचना भी प्रोफेशनल लोग कर सकते है ? जब हम सर्व धर्म संभाव की बात कर सकते है, जब हम गंगा जमुना सरस्वती की बात कर सकते हैं, तो ऐलोपैथी होम्योपैथी आयुर्वेद के संभाव की बात क्यो नही कर सकते ? जब सभी चिकित्सा पद्धति का सिद्धांत जन हिताय है तो फिर आपसी मतभेद क्यो ? क्या कारण है कि इस बिल पर IMA ने इतना हाय तौबा मचा हुआ है? वाटसअप के माध्यम से तीखी आलोचना और व्यंग की बौछार की जा रही है ।
” जिनके घर शीशे के हो उन्हे दूसरों के घर पत्थर नहीं फेंकना चाहिए “। ये दिखाना चाहते हैं कि इस कदम से लोगों का अहित होने वाला है। यदि इसे एक बार मान भी लू, फिर यह चिंता पहले क्यो नहीं नजर आई ? जब पूरे देश में विशेषकर छत्तीसगढ़ और राजस्थान मे smart कार्ड जनहित योजना, जो निम्न व मध्यम वर्ग के लिए लागू की गई थी, ऐसी जनहित के राष्ट्रीय कार्यक्रम को जिस तरह से लूटा गया और फिर ये लोग कसम खाते है जो मानवता के भी विपरीत है ।
कितना दुखद है कि अपने निजी हित के लिए चर्चित ” गर्भाशय कांड, ” जिसमे कम उम्र के महिलाओं के साथ जहां गर्भाशय निकाला गया और ताजिंदगी उसके दूसरे साइड इफेक्ट के लिए जीने के लिए छोड़ दिया गया है, तब IMA के किसी भी मैडिकल बंदो को जनहित के लिए आवाज उठाते हुए नहीं देखा गया । किसी एक ने भी आवाज उठाई इस जघन्य कृत्य के लिए? उस वक़्त धृतराष्ट्र के सभा जैसे ही IMA के लोग चुप्पी साधे रहे ? इस अपराध की सजा क्या है? अगर यही केस यूरोप के किसी देश में हुआ रहता तो आजीवन कारावास की सजा मिलती। इस्लामिक देशों में क्या सजा तय होती, इसकी कल्पना से ही आदमी सिहर उठेगा । अर्थात यह तय है कि अगर आपके पास डिग्री है तो आपकों सभी काम करने की अनुमति प्रदान है ।
साहब यह वो लोग है जहां इनके एमसीआई(MCI) के अध्यक्ष को प्राइवेट मेडिकल कॉलेज के अनुमति के लिए करोड़ों रुपये का घूस लेते आज से तीन चार साल पहले पकड़ा गया था। पता नहीं उन्होंने ऐसे कितने प्रायववेट, गुणवत्ता विहीन मेडिकल कॉलेजों को अनुमति दी हो । इन मेडिकल कॉलेजों से निकले चिकित्सक कितने पैमानों मे खरे उतरेंगे, कभी चिंता दिखाई है ? उल्लेखनीय है कि वही बंदा फिर उस पद पर पहुंच गया! इससे समझा जा सकता है कि यह लाॅबी कितनी तगड़ी है ।
कभी IMA के पदाधिकारियों ने चिकित्सको के उस बड़ी फीस पर चिंता जताई, जिसके कारण सामान्य व्यक्ति भी दिखाने की हिम्मत नहीं कर पाता। यहां तो ऐसा है कि कपड़े से ज्यादा सिलाई की कीमत नजर आतीं हैं।
मध्यप्रदेश का व्यापम घोटाला भी याद है, जिसमे करीब 39 लोगो की मृत्यु हुई । यह सब किस लिए था ? आज से तीन चार साल पहले का मध्यप्रदेश के हाईकोर्ट का निर्णय, जिसमे पांच सौ चिकित्सक छात्रों के एडमिशन को अमान्य माना गया और उन्हे चिकित्सा के लिए अनुपयुक्त घोषित कर दिया गया है। यह वो मामले है, जो जन सामान्य के सामने आए हैं। फिर बड़ी पहुंच वालो के या जिनका राजनीतिक पहुंच रहती हैं वो तो प्रवेश भी ले लेते हैं और बनकर निकल भी जाते है जिसकी हवा भी नहीं लगती ।
आप पैसे के बल पर या राजनीतिक वजूद से डिग्री हासिल कर ले, फिर आपको पूरी चिकित्सीय छूट है। फिर आप गर्भाशय निकाल लो या फिर कोई भी शल्य चिकित्सा कर लो, जिसकी आवश्यकता नहीं है, पर अफसोस IMA के पदाधिकारियों की नैतिकता वहा नहीं दिखाई देगी । पर किसी ने इमानदारी से बीएएमएस(BAMS) किया है तो यही लोग उसे झोला छाप की श्रेणी में डाल देते हैं। यही झोला छाप मंझोले किस्म के नर्सिंग होम की लाइफ लाइन होता है। यही झोला छाप डॉक्टर जिस किसी एलोपैथिक डॉक्टर को भी मरीज रिफर करता है, तो उनके लिए मित्र बन जाता है। इन्ही झोला छाप चिकित्सकों के लिए सीएमई(CME) आयोजित हो जाती है । सब व्यवसायिक संबंध पर डिग्री का मूल्यांकन होता है।
चिकित्सा जगत में एक परंपरा थी कि किसी भी नर्सिंग होम(Nursing Home) के उदघाटन के लिए देश के ख्यातिनाम चिकित्सक को बुलाकर उद्घाटित कराया जाता था। फिर उनके उसी से संबंधित विषय पर लेक्चर होता था, फिर उस विभाग के गंभीर मरीजो के लिए सलाह भी ली जाती थी । अब सब व्यवसायिक हो गये है। अब जो भी मुख्यमंत्री हो उससे उदघाटन कराने की परंपरा सी चल पड़ी है । फिर चाहे बंदा वो बंदा क्यो न हो जिसकी डिग्री को पानी पी पी कर कोसते हैं। इसके जरिए शासकीय सेवा मे मैडिकल कर्मचारियों को जो मिलता है उसके लिए अधिकृत होने की भी दौड़ शामिल रहती हैं।
फार्मास्यूटिकल कंपनियों(Pharmaceutical Companies)से मिलने वाले बड़े गिफ्ट, दवा लिखने की एवज में मोटा कमीशन, दवा कंपनियों द्वारा प्रायोजित बड़े-बड़े डॉक्टरों की विदेश यात्राओं के खिलाफ किसी ने प्रश्न किया है ? क्या यह सब नैतिकता मे शामिल है ?
इस बिल पर एक बहुत बड़े चिकित्सक ने इस बात पर प्रश्न चिन्ह खड़ा किया कि क्या इन चिकित्सको से नेता लोग अपना इलाज करायेंगे तो यह बात साफ कर दू कि जब यह नेता बडे नेता नहीं बनते तो इन नेताओ का, हम ही लोग है जो इनका इलाज करते है! कई बार तो उधारी मे भी हो जाता है!! माननीय होने पर बडी डिग्रियां वाले ही उनके इलाज के लिए अपनी पहुंच का इंतजाम करते हैं, जिससे लेटर पैड मे फलाना फलाना का चिकित्सक लिखा जा सके । एक बात पूछना चाहता हूँ कि जैसे यह लोग माननीय का इलाज सावधानी से करते है क्या आम आदमी के लिए भी वहीं सतर्कता और इज्जत दी जाती है? किसी एक महिला चिकित्सक ने अपने वीडियो मे पूछा क्या ये नेता लोग बीएएमएस से इलाज करायेंगे? मै उन मोहतरमा को बता दू कि ये लोगों जिस मिट्टी के बने है उसकी उम्मीद आप लोग नहीं कर सकते । स्वदेशी आंदोलन के प्रणेता राजीव दीक्षित को जब हार्ट अटैक आया तो चिकित्सको ने उन्हे स्टैंट डालने की सलाह दी, पर स्टंट विदेशी था इसलिए उन्होंने लगवाने से इंकार कर दिया, जिससे उनकी मौत तक हो गई, पर उन्होंने अपने सिद्धांतों के चलते कोई समझौता नहीं किया। वहीं जानकारी के लिए बता दूं कि प्रधानमंत्री मोदी(PM Modi) जी का परिवार शासकीय चिकित्सालय मे अपना इलाज करवाते हैं और यह तक नहीं बताते कि प्रधानमंत्री के रिशतेदार है । जहां तक मोदी जी का सवाल है एक तो संयमित जीवन और योग उनको किसी भी बीमारी से बचाएगा। अगर कभी नौबत भी आ गई तो इलाज करवाने से इंकार नहीं करेंगे। आज तो स्वास्थ्य मंत्री डा.हर्षवर्धन है, जो देश की स्वास्थय सेवाओं से भलीभांति परिचित हैं। उल्लेखनीय है कि स्वास्थय मंत्री दिल्ली आईएमए(IMA) के प्रेसिडेंट भी रहे है । उनके लिए दुविधा पूर्ण स्थिति मे भी उन्होने सरकार का पक्ष लिया है।
किसी समय चिकित्सक को भगवान माना जाता था। अब क्या कारण है कि लोगों को इन पर विश्वास नही रह गया। चाहे उपभोक्ता फोरम हो या न्यायालय मे किस पैथी के चिकित्सको के केस चल रहे है और वहां इसमें कितने आयुर्वेद के चिकित्सक है ? आयुर्वेद के चिकित्सकों को अपनी लक्ष्मण रेखा मालूम है। मैं मान सकता हू कि मानवीय भूल हो सकतीं है । पर जान बूझकर तो अपराध शायद ही किसी ने सुना हो । कुछ नहीं अंत मे ऐलोपैथी पंच सितारा की चाय है और आयुर्वेद टपरी की चाय, बस यही अंतर है । यह IMA की जनहित या स्वहित की चिंता है, यह अब आम लोगों को भी पता चल रही है। मेरे खयाल से इसे अब लोगों के विवेक पर छोड़ देना चाहिए। वैसे भी कोई भी खोखली चीज ज्यादा दिन तक बाजार में नहीं रह सकती । फिर इन झोला छाप चिकित्सक से क्या खौफ खाना ? बस इतना ही।
लेखक:डा.चंद्रकांत रामचन्द्र वाघ-अभनपूर (ये लेखक के अपने विचार हैं)