www.positiveindia.net.in
Horizontal Banner 1

दूसरे विश्वयुद्ध का खलनायक हिटलर को क्यो माना जाता है ?

-राजकमल गोस्वामी की कलम से-

laxmi narayan hospital 2025 ad

Positive India:Rajkamal Goswami:
दूसरे विश्वयुद्ध का खलनायक हिटलर को माना जाता है क्योंकि इतिहास में हेर फेर सिर्फ भारत में नहीं पूरी दुनिया में किया जाता है । जीतने वाला अपने हिसाब से इतिहास लिखवाता है ।

२३ अगस्त १९३९ को रूस और जर्मनी में समझौता हुआ कि पोलैंड पर हमला करके दोनों देश पोलैंड को आपस में बाँट लेंगे । इसी २३ अगस्त सन ३९ को विश्वयुद्ध का प्रारंभ माना जाना चाहिये था लेकिन पहली सितंबर को विश्वयुद्ध का प्रारंभ माना जाता है जिस दिन जर्मनी ने पोलैंड पर हमला किया था । ठीक १६ दिन बाद रूस ने पोलैंड पर पूर्वी छोर से हमला किया और दोनों देशों ने पोलैंड को आपस में बाँट लिया । रूस फिर रुका नहीं और बाल्टिक देशों की ओर मुड़ गया और लिथुआनिया लाटिविया जैसे छोटे देशों पर टूट पड़ा ।

पोलैंड और ब्रिटेन ने जर्मनी के विरुद्ध संधि कर रखी थी इसलिये ब्रिटेन जर्मनी के विरुद्ध युद्ध में कूद पड़ा । यह संधि जर्मनी के ही विरुद्ध थी इसलिये रूस और ब्रिटेन का टकराव टल गया । रूस अपना काम ख़ामोशी से करता रहा और दुनिया जर्मनी जापान और इटली में उलझी रही ।

उत्तर में बढ़ते बढ़ते ३० नवंबर १९३९ को रूस ने फिनलैंड पर हमला कर दिया । रूस की माँग थी कि उसका नगर लेनिनग्राद फिनलैंड सीमा से मात्र ३२ किमी था इसलिये उसकी सुरक्षा के लिये फिनलैंड अपनी सीमा पर्याप्त पीछे ले जाये ताकि लेनिनग्राद की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके । फिनलैंड और रूस की ताकत का कोई मुकाबला नहीं था लेकिन फिनलैंड ने सिर्फ तीन महीने के युद्ध में रूस के सवा लाख सैनिक मार डाले और हजारों टैंक ध्वस्त कर दिये । फिनलैंड और रूस का युद्ध विंटर वॉर के नाम से भी जाना है जहाँ कड़ाके की ठंड में हजारों रूसी सैनिक ठंड से मर गये । यद्यपि यह युद्ध मॉस्को संधि पर समाप्त हुआ और फिनलैंड को अपनी ९% भूमि रूस को देनी पड़ी । लेकिन रूसी सेना की प्रतिष्ठा को बहुत क्षति पहुँची । हिटलर बहुत ग़ौर से युद्ध को देख रहा था । रूसी सेना की दशा देख कर ही उसके मन में रूस पर हमला करने का विचार आया होगा । बाद में जर्मनी और फिनलैंड ने मिल कर रूस पर हमला किया लेकिन स्टालिनग्राद के मोर्चे पर जर्मनी की हार के कारण युद्ध रूस के पक्ष में ख़त्म हुआ ।

जर्मनी की पराजय रूस पर हमले के कारण ही हुई । यदि हिटलर रूस पर अकारण हमला न करता तो शायद उसका इतना अपमानजनक हश्र न होता ।

रूस के ये युद्ध छल कपट नारियाँ पर अत्याचार और अनेक युद्ध अपराधों के साक्षी रहे हैं । युद्ध के बाद धुरी राष्ट्रों के युद्ध बंदियों पर युद्ध अपराधों के लिये मुकदमे चलाये गये । न्यूरम्बर्ग ट्रायल हुआ । बहुतों को फाँसी मिली लेकिन रूस चूँकि विजेता देश था और मित्र राष्ट्रों के गुट में था इसलिये उस पर उँगली किसी ने नहीं उठाई । जीत के जश्न में अपने ज़ुल्म नहीं देखे जाते ।

आज भी रूसी इतिहास में द्वितीय विश्वयुद्ध में रूस की भूमिका की चर्चा नहीं की जाती है । जून २०२० में व्लादिमिर पुतिन ने पश्चिमी जगत को दूसरे विश्व युद्ध में जर्मनी को हराने में रूस की भूमिका की याद दिलाई लेकिन रूस द्वारा पोलैंड, लिथुआनिया लातिविया और एस्टोनिया पर हमले को बिलकुल नज़रंदाज़ कर दिया । विश्वयुद्ध शुरू करने में रूसी साम्राज्यवाद की भूमिका को भी भुला दिया ।

लेव टॉलस्टॉय की कहानी है ‘कितनी ज़मीन’ जिसमें एक आदमी और ज़मीन और ज़मीन की हवस में दौड़ते दौड़ते मर जाता है । रूस की हवस भी उसी कहानी की तरह हो गई । पूर्व में प्रशांत महासागर से पश्चिम में अटलांटिक महासागर और उत्तर मे आर्कटिक महासागर तक फैले हुए रूस की विस्तारवादी हवस पूरी होती नहीं दिखाई देती ।

फिलहाल फिनलैंड ने यूक्रेन की मदद करनी शुरू कर दी है ।
रूस कीव पर कब्जा भी कर ले तो भी युद्ध जारी रहेगा । द्वितीय विश्वयुद्ध में जर्मनी ने फ्रांस पर कब्जा कर लिया था मगर युद्ध फ्रांस ही जीता ।

साभार:राजकमल गोस्वामी-(ये लेखक के अपने विचार है)

Leave A Reply

Your email address will not be published.