नेशन नहीं यूनियन आफ स्टेट का एक्सटेंशन और शाहीनबाग़ की वापसी क्यों है यह हिजाब की किताब ?
-दयानंद पांडेय की कलम से-
Positive India:Dayanand Pandey:
हिजाब के बहाने कहीं यह शाहीनबाग़ की वापसी की ज़मीन तो नहीं बनाई जा रही है। मुझे आशंका इसी बात की है। नहीं , यह कोई मुद्दा ही नहीं है। आप इस मामले को लोकसभा में राहुल गांधी के दिए गए भाषण से भी जोड़ सकते हैं जिस में उन्हों ने संविधान को ग़लत ढंग से कोट करते हुए कहा था कि इंडिया नेशन नहीं , यूनियन आफ स्टेट है। उस भाषण को राहुल गांधी ने जान बूझ कर हिंदी में नहीं अंगरेजी में दिया था ताकि दक्षिण भारत के प्रदेशों को एड्रेस कर दक्षिण भारत में आग लगाई जा सके। तो कुल हासिल यह है कि नेशन नहीं , यूनियन आफ स्टेट का एक्सटेंशन और शाहीनबाग़ की वापसी है यह हिजाब की किताब।
फिर अब जब प्रियंका गांधी ने बिकनी पहन कर घर से निकलने तक की बात कर दी है और किसी को इस पर ऐतराज भी नहीं है तो मामला खत्म हो जाना चाहिए। आप बिकनी पहनिए , हिजाब पहनिए , नंगी घूमिए , यह आप का अपना विवेक है। अपना अधिकार है। मौलिक अधिकार संविधान हर चीज़ की छूट देता है। यह राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के बयान का फर्क भी नहीं है। इन दोनों बातों को दो फ्रंट के रुप में समझिए। यही बात इस पूरे मामले का शातिर मोड़ है। आप इसे जिस एंगिल से समझना और जोड़ना चाहिए , समझिए और जोड़िए। यह आप की सुविधा और आप का विवेक है। बाक़ी जय श्री राम है। उन्हीं पर छोड़ दीजिए। लेकिन यह हिजाब की किताब या ऐसे अन्य मामले देश में तब तक चलते रहेंगे जब तक समान नागरिक संहिता नहीं लागू हो जाती।
कोई ताक़त यह हिजाब जैसे मामले नहीं रोक सकती। हिजाब की किताब छपती रहेगी। जींस पहन कर घूमती रहेगी और हिजाब पहन कर अल्ला हू अकबर करती रहेगी। क्या कर लेंगे आप ? देश को अस्थिर करने के लिए नए-नए शाहीनबाग़ बनते रहेंगे। समान नागरिक संहिता लागू होने तक यह हिज़ाब वग़ैरह का फालतू का ड्रामा चलता रहेगा। लिखा था कभी मजाज लखनवी ने :
तिरे माथे पे ये आँचल बहुत ही ख़ूब है लेकिन
तू इस आँचल से इक परचम बना लेती तो अच्छा था
लेकिन हमारे देश के सेक्यूलर चैंपियंस और कठमुल्ले मजाज की इस बात को लात मार कर मुस्लिम औरतों को बुरक़े में ही रख कर तालिबानी सभ्यता लागू कर स्त्रियों को ग़ुलाम बनाए रखना चाहते हैं। तिस पर तुर्रा यह कि बता रहे हैं कि भाजपा उत्तर प्रदेश चुनाव में लाभ लेना चाहती है। सच यह है कि कर्नाटक की इस आग में घी डाल कर मुस्लिम वोटों के ध्रवीकरण की क़वायद अखिलेश यादव और ओवैसी दोनों की है। जो लूट ले जाए। पांच लाख उस लड़की को इनाम के तौर पर वैसे ही नहीं दिए गए हैं।
दुनिया भर के ज़्यादातर स्कूल , कालेज का एक ड्रेस होता है। कर्नाटक हाईकोर्ट में इस मामले की सुनवाई करने वाले जस्टिस ने भी कहा है कि हम जब पढ़ते थे तो सारे स्कूल का रंग एक होता था। लेकिन इस जस्टिस ने बिजली के इस नंगे तार को छूने की हिम्मत नहीं की। बड़ी बेंच को रेफर कर दिया यह मामला। तो क्या सुप्रीम कोर्ट या किसी हाईकोर्ट में महिला वकील या जस्टिस लोग हिजाब में कभी दिखेंगी ? हम ने तो संसद या किसी विधान सभा में भी किसी स्त्री को हिजाब में अभी तक नहीं देखा। किसी प्रशासनिक या पुलिस अधिकारी , जो स्त्री हैं , को भी कभी हिजाब में नहीं देखा। हां , घरेलू स्त्रियों यहां तक की भीख मांगती तमाम स्त्रियों को भी हिजाब में देखता रहता हूं। कहने में तकलीफ होती है पर देह बेच रही तमाम स्त्रियों को भी हिजाब में देखा है। हां , कर्नाटक में हिजाब का ऐलान अल्ला हू अकबर कहते हुए इस लड़की की कई फोटुओं में इसे बेहिजाब भी देखा है।
कहते हैं कि खाना और पहनना अपने मन का ही होना चाहिए। लेकिन क्या इस तरह हिंसक और विवादित माहौल बना कर। कभी तीन तलाक़ के ख़िलाफ़ नाराजगी , कभी गो मांस खाने को अपना अधिकार बताना , सारी सड़क या सार्वजनिक जगह घेर कर नमाज पढ़ना , कभी म्यांमार में भी कुछ हो जाए तो भारत में आग लगाना , कभी क्रिकेट में पाकिस्तान की जीत पर जश्न मनाना , कभी आतंकियों की पैरवी में खड़े हो जाना , कश्मीर में कभी सेना पर , पुलिस पर हर जुमे को पत्थरबाज़ी करना जैसे तमाम मामले हैं जिन पर भारत का मुस्लिम समाज अकसर कटघरे में खड़ा होता आया है।
कुछ राजनीतिक दल और सेक्यूलर चैंपियंस इन कठमुल्लों की मिजाजपुरसी करते हुए देश का माहौल ख़राब करने के लिए इस आग में घी डालने में अकसर आगे आ जाते हैं। स्कूल हो या आफिस धार्मिक या राजनीतिक मामले निपटाने के लिए नहीं होते। इस के लिए और जगह हैं। ख़ास कर स्कूल में पढ़ाई ही होनी चाहिए। कोई ड्रेस , हिजाब या जय श्री राम और अल्ला हू अकबर करने के लिए कोई स्कूल , कालेज और यूनिवर्सिटी नहीं बनाई गई है।
हिजाब ?
अरे गांधी तो कहते थे कि सोने-चांदी के गहने भी औरतों को गुलाम बनाने के लिए ही पुरुषों ने बनाए हैं। दुनिया भर में औरतें परदेदारी से , विभिन्न किस्म की गुलामी से छुट्टी लेने की लड़ाई लड़ रही हैं और जीत रही हैं। बीते दिनों अफगानिस्तान में तालिबानों को औरतों को हिजाब में रखने की ज़बरदस्ती करते हुए पूरी दुनिया ने देखा। दुनिया ने यह भी देखा कि तमाम जुल्म के बावजूद अफगानिस्तान की औरतों ने तालिबानों का डट कर मुक़ाबला किया और हिजाब का विरोध किया। पर हमारे भारत में मुट्ठी भर वोट के लिए , शाहीनबाग़ की नई दुकान के लिए , कठमुल्लों ने हिजाब के पक्ष में जंग छेड़ दी है।
और श्वान प्रवृत्ति के सेक्यूलर चैंपियंस ने इन कठमुल्लों का मन बढ़ाने के लिए इन की मिजाजपुर्सी शुरु कर दी है। उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में वोट वगैरह मिलना कुछ नहीं है , इस बिना पर किसी को लेकिन मक़सद देश का माहौल ख़राब करना है। नए शाहीनबाग की तैयारी है यह , कुछ और नहीं। बाक़ी तो जो है , सब जय श्री राम है ! भाजपा की भी आख़िर अपनी दुकान है। हिजाब के आगे अपनी दुकान बंद करने से रही भाजपा। मदारी और बंदर का खेल नहीं है यह लेकिन। बहुत ख़तरनाक खेल है यह। अफगानिस्तान बनाने , तालिबानी सोच को परवान चढ़ाने और देश को सुलगाने की साज़िश है यह। यह बात दुहराने की कृपया मुझे अनुमति दीजिए कि इंडिया नेशन नहीं , यूनियन आफ स्टेट है का एक्सटेंशन और शाहीनबाग़ की वापसी है यह हिजाब की किताब।
साभार:दयानंद पांडेय-(ये लेखक के अपने विचार हैं)