वेश्यावृति को लेकर सरकार ने अपनी नीति स्पष्ट क्यों नहीं की ? सुप्रीम कोर्ट ने पूछा
-संदीप तिवारी "राज" की कलम से
Positive India:Sandip Tiwari “Raj”:
सवाल यह उठता है कि वेश्यावृति को लेकर सरकार ने अपनी नीति स्पष्ट क्यों नहीं की है। सरकार के सामने ऐसी क्या मजबूरियां हैं कि वह इसे न तो कानूनी मान्यता देती है और न ही इसे पूरी तरह से समाप्त करने का संकल्प उठाती है..
वेश्यावृति कानून को लेकर एक बार फिर से बहस छिड़ गयी है कि इसे वैधता प्रदान की जाय या नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार को कहा है कि अगर आप इसे समाप्त नहीं कर सकते हैं और यह भी मानते हैं कि यह सदियों से चला आ रहा एक पेशा है तो फिर कानूनी मान्यता देने में क्या अड़चन है।
दरअसल कोर्ट की यह नाराज़गी सरकारी तंत्र की विफलता पर थी तभी तो माननीय न्यायाधीशों ने यह भी टिप्पणी कर दी कि जब देश में 37 फीसदी लोग गरीबी रेखा के नीचे जी रहे हैं वैसी स्थिति में विकास के क्या अर्थ हैं।
अब सवाल यह उठता है कि वेश्यावृति को लेकर सरकार ने अपनी नीति स्पष्ट क्यों नहीं की है। सरकार के सामने ऐसी क्या मजबूरियां हैं कि वह इसे न तो कानूनी मान्यता देती है और न ही इसे पूरी तरह से समाप्त करने का संकल्प उठाती है।
क्या सरकार को यह पता नहीं है कि कोई शौक़ से इस धंधे को अपनाता है। दुनिया का सबसे पुराना पेशा बताने के पीछे लोगों की यही मंशा है कि देह खरीदने को बाकी धंधों की तरह का एक और धंधा बताया जाय। कई संगठन इसे सही भी मानते हैं। लेकिन यह तो बाज़ार के आगे हारने की बात है। दुनिया में कई देश ऐसे हैं जिन्होंने वेश्यावृति को समाप्त करने के लिए कदम उठाए हैं और वह सफल रहा है। सोवियत रुस ने इसे खत्म कर दिखा दिया कि इस कलंक को मिटाना नामुमकिन नहीं है। इसलिए कई समाजसेवियों की यह राय है कि या तो सरकार इसे पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दे और इस पेशे से जुड़ी महिलाओं की शिक्षा और उन्हें रोजगार प्रदान करने के लिए पर्याप्त कदम उठाए। या नहीं तो उन्हें कानूनी संरक्षण दे दे ताकि वह इसे पेशा के तौर पर सम्मान के साथ अपना सकें और पुलिस को कानून न होने की आड़ में शोषण करने का मौका न मिल सके।
जहां तक समाज के तथाकथित नैतिक ठेकेदारों की बात है तो उनके क्या कहने। वे देवी दुर्गा की मूर्ति बनवाने के लिए तवायफ़ों के घरों से मिट्टी मंगा सकते हैं लेकिन मंदिर में उन्हें तवायफ़ की छाया से भी नफ़रत होने लगती है। ऐसे लोग रात के अंधेरे में कोठी पर जाने से परहेज़ नहीं करते लेकिन दिन के उजालों में सुचिता का पाठ पढ़ाते दिख जाते हैं। इसी मानसिकता के व्यक्ति लड़कियों की मजबूरियों का फायदा उठाकर उन्हें कोठे पर जीने को धकेल देते हैं लेकिन दिन में औरतों के बड़े पैरोकार बने फिरते हैं। इसलिए जरूरत है तो सरकार के निर्णायक फैसले की ताकि वेश्यावृति पर समाज की सोच बदल सके और उन्हें भी सम्मान के साथ जीने का हक़ मिल सके। वे भी अन्य लोगों की तरह समाज की मुख्यधारा में रहकर अपनी मजबूरियों से निज़ात पा सकें ताकि उनकी अगली पीढ़ी को इस धंधे में आना नहीं पड़े…!!!…
साभारःसंदीप तिवारी “राज” की सोनागाछी से विशेष रपट: