विदेशियों को आध्यात्मिक प्यास बुझाने हमारे शरण में क्यो आना पड़ता है?
भारत की स्त्री को अपनी परिभाषा स्वयं ही गढ़नी होगी।
Positive India:Raipur;4 Oct 2020:
#यत्र_नार्यस्तु_पूज्यंते
स्त्री को सार्वजनिक स्थानों पर अधिक सावधान रहना होता है। खुली सोच का परिणाम ये होता है कि आपको खुली दूकान समझ कर कोई भी लफंगा टटपूंजिया अपनी विकृत मानसिकता का परिचय दे सकता है। सोशल मीडिया भी एक सार्वजनिक स्थान है।
स्वतंत्रता की वामपंथी अवधारणा का उद्देश्य मात्र सांस्कृतिक विनाश है। आज पश्चिम में वो हो चुका है। आपके सौभाग्य से आप अभी बची हुई हैं।
इस स्वतंत्रता का दीर्घकालीन परिणाम होता है। एक देश पूरी तरह कुचारित्रो से भर सकता है। तब वहां उत्तम संतान जन्म नहीं ले सकती। उत्तम कोटि की आत्माओं को गर्भ भी उनके स्तर के ही चाहिए होते हैं। और यदि वो नहीं मिल सकते तो वे जन्म नहीं ले पातीं।
इसलिए हमारे यहां स्त्री को विशेष रूप से रखा गया था कि स्त्री मानसिक और शारीरिक रूप से सबल और उच्च स्तरीय बने। तमाम व्रत उपवासों के मूल में यही अवधारणा है।
एक संस्कृति के DNA की चलित जीवंत बैंक है एक लड़की। और बैंक को विशेष सुरक्षा की आवश्यकता होती है।
जिनका निर्माण ही सांस्कृतिक विनाश के लिए हुआ है उन्होंने सबसे बड़ा आघात पूरे विश्व में यदि कहीं किया है तो वो स्त्री की मानसिकता पर किया है। स्वतंत्रता के नाम पर चारित्रिक पतन थोपा गया है।
फ्रांस की कथित महान क्रांति के समय वहां नैतिक पतन इस स्तर तक पहुंच गया था कि यदि १५ वर्ष के पहले किसी लड़की का कौमार्य भंग नहीं हुआ हो तो उसे रुग्ण माना जाता था। स्वच्छंद यौन संबंध तब से सम्मानित होने लगे हैं और आज पश्चिम किस स्थान पर है देख लीजिए।
आध्यात्मिक प्यास बुझाने के लिए उन्हें हमारी शरण में आना होता है। वहां परिवार नामक संस्था नष्ट हो चुकी है और उसका परिणाम समाज की मानसिकता पर हो रहा है। भौतिक संसाधनों की चकाचौंध के नीचे एक सिसकती बेबस मनुष्यता है जो कभी भी सामुहिक आत्मघात कर सकती है।
ऐसे ऐसे विचित्र मनोरोग वहां पैदा हो रहे हैं जिनका आपके इधर अस्तित्व ही नहीं है।
भारत की स्त्री को अपनी परिभाषा स्वयं ही गढ़नी होगी। पश्चिमी मॉडल असफल हो गया है। आपके साथ उपनिषद की गार्गी,मैत्रेयी हैं। शंकराचार्य को पसीना छुड़वा चुकी भारती है। रावण वध में अपने पति के साथ एक विराट जनांदोलन का नेतृत्व करने वाली सीता है। प्रेम की पराकाष्ठा में अद्वैत की अवस्था को प्राप्त राधा और मीरा हैं।
आपको वामी खलकामी बौद्धिक वैश्याओं से स्वतंत्रता का उपदेश लेने की आवश्यकता नहीं है।
मर्यादा में रहने को गुलामी नहीं कहते हैं।
साभार:सुजीत तिवारी-एफबी