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आदिपुरुष में भगवान राम के पांव में चमड़े का चप्पल ! माता सीता, हनुमान तथा रावण के किरदारों को विकृत रूप में क्यो पेश किया गया?

-विशाल झा की कलम से-

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Positive India:Vishal Jha:
एक वक्त था जब किसी भी फिल्म को लेकर मीडिया स्टारकास्ट का इंटरव्यू करता था। शुभकामनाएं देता था और फिल्म से अमुक अभिनेता का कद कितना बढ़ा है, उसका मूल्यांकन करता था। तमाम क्रिटिक्स नेक्सस 4-5 स्टार देकर किसी फिल्म को बेहतरीन घोषित कर देता था। फिल्म मेकर्स और ऑडियंस के बीच का संवाद एकतरफा हुआ करता था। बॉलीवुड जो थोप देता था ऑडियंस उसे देख लेते थे। आज वक्त है कि जब टीजर निकलते ही फिल्म का आचरण पुर्जा पुर्जा खोलकर बिखेर दिया जाता है। सही को सही और गलत को गलत। अब मेनस्ट्रीम मीडिया भी किसी फिल्म को लेकर ठीक वही कवरेज करता है जो सोशल मीडिया के विमर्श में चलता है। टीवी चैनल बताता है कि इस फिल्म को लेकर दर्शक अपनी क्या राय रख रहे हैं।

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ठीक राजनीति भी वैसे ही होती थी, बस थोड़ी कठिन थी। हाँ हालात ठीक वैसे ही थे। तब रिपोर्टर्स से लेकर स्तंभकार, इतिहासकार, प्रोफेसर्स तक के नेक्सेस की लगाम हाथ में होनी चाहिए। तमाम तरह की सुविधा और पुरस्कार मुहैया कराकर लगाम लगाना एक बढ़िया तरीका था। फिर थोड़ी कमी वृद्धि के साथ वंशागत और भ्रष्ट राजनीति बड़ी सुविधा से की जा सकती थी। जनता और राजनेताओं के बीच का संवाद एक तरफा हुआ करता था। पांचो वर्ष बस केवल राजनेता और उनके नेक्सस बोलते थे। जनता बस चुनाव के वक्त वोट देकर अपना मत रखती थी। पर मतदान के वक्त तक जनता के विवेक को आजाद कहां छोड़ा जाता था? तमाम तरह के इमोशनल हथकंडे लगाकर उनके विवेक पर भी कब्जा कर लिया जाता था। आज वक्त बदला। 5 साल में जनता कम से कम 5 बार किसी सत्ता को हिलाने की क्षमता रखती है। संवाद लगातार दो तरफा होता रहता है। ऐसे में डायपर पहनकर पालने में पलने वाले युवराजों की वंशागत राजनीति पसीने से तरबतर हो जाती है। और फेल कर जाती है। जनता कहने लगती है कि अब इनसे राजनीति नहीं होगी। जबकि सत्य यह है कि उनके वंश की राजनीति हर दिन से ऐसी ही होती थी। अब बस फर्क इतना हो गया है कि उनकी राजनीति में जनता का दखल हो गया है।

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फिल्म हो, राजनीति हो, पत्रकारिता हो अथवा न्यायपालिका ही क्यों ना हो! अब कोई भी यांत्रिकी एक तरफा अपना निर्णय नहीं थोप सकती। अब हर कोने में जनता का दखल कायम हो रहा है। हर जगह लोकतंत्र जागृत हो रहा है। इस जागृति से हर क्षेत्र का विकार धीरे-धीरे दूर हो रहा है। राजनीति में जातिवाद, वंशानुगत और भ्रष्टाचार का विकार दूर हो रहा है, तो वहीं बॉलीवुड में नेपोटिज्म का विकार दूर होकर, कितना टैलेंट है बॉलीवुड में सामने आ रहा है। बॉलीवुड के पास आदिपुरुष बनाते हुए इतनी भी मेधा नहीं है कि वह तय कर सके, भगवान राम के पांव में चमड़े का चप्पल और कलेजे पर तरकश वाली चमड़े की बेल्ट बिल्कुल नहीं होनी चाहिए। माता सीता के परिधान को किस प्रकार से चित्रित किया है, जान कर भी ग्लानि महसूस होता है। भगवान हनुमान के किरदार के साथ तो खैर आदि पुरुष के फिल्मकारों ने जितना अन्याय किया है, देखने से भी जैसे पाप लगेगा। कथानक में तो इनलोगों ने और न जाने क्या ही किया होगा!

साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार है)

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