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मणिपुर में दो स्त्रियों को नग्न घुमाने वाली भीड़ का हर पुरुष अपराधी क्यो है?

- सर्वेश कुमार तिवारी की कलम से-

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Positive India:Sarvesh Kumar Tiwari:
इस तथ्य को नहीं झुठलाया जा सकता कि आदमी जब बर्बर हो जाता है तो सबसे अधिक स्त्रियों पर ही कहर ढाता है। पुरुषों के माथे पर यह दाग नया नहीं है! पुराना है, बहुत पुराना… उतना ही पुराना, जितना पुराना है सभ्यताओं का इतिहास…
सिकन्दर जब अलेक्जेंड्रिया से विश्व विजय का स्वप्न लेकर निकला तो उसने हर पराजित राष्ट्र की स्त्रियों के साथ अभद्रता की। उन्हें जबरन गुलाम बनाया, यौन दासी बनाया। मेसोपोटामिया, ईरान, मिस्र, सीरिया… भारत में पंजाब तक… और वर्तमान का सत्य यह है कि उस असभ्य राक्षस को दुनिया भर की किताबें “महान” बताती हैं। एलेक्जेंडर द ग्रेट.. जैसे इतिहास में गूंजी आधी दुनिया की स्त्रियों की चीखों पर कोई संवेदना नहीं।
भारत ने तो यह बर्बरता लगभग हजार वर्षों तक भोगी है। अरब, अफगान, तुर्क, मंगोल जो भी आये उन्होंने यह बर्बरता दिखाई… इस असभ्यता का प्रदर्शन इतना हुआ कि स्त्रियों ने जौहर जैसी परम्परा को जन्म दिया। अपमान और अत्याचार से बचने के लिए अग्नि-स्नान की परम्परा…
सभ्य होने के दावे के साथ अंग्रेज आये थे भारत! पर क्या किया? स्त्रियों पर अत्याचार के मामले में वे सबसे बड़े कसाई सिद्ध हुए। गोआ का इतिहास पढ़ेंगे तो कांप उठेंगे आप! सँड़सी से स्त्रियों के स्तन नोचे उन असभ्यों ने, नग्न स्त्रियों के जीवित शरीर को आरे से चीरते रहे… घिन्न आ रही है न? आनी ही चाहिये।
मणिपुर में जो हुआ वह इसी बर्बरता का एक उदाहरण भर है। वरना सीरिया से छूटी किसी नर्स का इंटरव्यू सुनिए। आप पूरा सुन नहीं पाएंगे… आधी दुनिया अब भी सिकन्दर के समय की बर्बरता लेकर जी रही है।
मणिपुर के उन असभ्य युवकों के अस्तित्व पर थूकते हुए भी मैं एक बात पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि हमारा समाज ऐसा नहीं है। यह भारत का मूल चरित्र नहीं है। यह उन लोगों का देश है जिन्होंने हजारों बार स्त्रियों की रक्षा के लिए सामूहिक रूप से बलिदान दिया है।
इस देश में एक माता पद्मावती की प्रतिष्ठा के लिए पचास हजार पुरुषों ने अपनी आहुति दी थी। महारानी कर्णावती की प्रतिष्ठा के लिए जो हजारों मरे वे भी पुरुष ही थे, और महारानी दुर्गावती के साथ जिन्होंने अपनी आहुति दी वे भी पुरुष ही थे।
लोकतांत्रिक सत्ता द्वारा थमाए गए झुनझुने की छीना झपटी में असभ्य हो गए मणिपुर के उन नीच पुरुषों के कुछ समर्थक भी होंगे, और उन असहाय स्त्रियों का वीडियो पाने के लिए कुत्तों की तरह झपटते लोग भी असँख्य होंगे। स्त्रियों की नग्न देह परोस कर पैसा बटोरने की सिनेमाई परम्परा से सीख लेकर पैसा कमाने उतरे असँख्य युट्यूबर्स भी होंगे जिन्होंने उस असभ्यता को भी व्यू पाने का माध्यम भर माना होगा। मैं बावजूद इसके कहूंगा, यह मेरे भारत का मूल स्वभाव नहीं है। हम ऐसे नहीं है। कल यदि सरकारी बुलडोजर उन बर्बरों के ऊपर से गुजरे तो इस देश का आम पुरुष प्रसन्न होगा, उसे सन्तोष मिलेगा…
मणिपुर में उन दो स्त्रियों को नग्न घुमाने वाली भीड़ का हर पुरुष अपराधी है। उन्हें कानून जो भी दण्ड दे, कम ही होगा…

साभार:सर्वेश तिवारी श्रीमुख-(ये लेखक के अपने विचार है)
गोपालगंज, बिहार।

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