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बॉलीवुड का कुत्ता भी सरवाइव क्यो नहीं कर पा रहा आज?

-विशाल झा की कलम से-

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Positive India:Vishal Jha:
जुबैर की एक आवाज पर उम्मत के 57 मुल्क जाग उठे थे। सबने भारत के राजनयिकों को तलब करना शुरू कर दिया था। समर्थन में भारत की सड़कों पर जिहाद की तलवारे नाचने लगी थीं। दरगाह, शरीफ, मजार, मस्जिद कोई इमारत ऐसा न बचा जहां से सर तन से जुदा का ऐलान ना निकला हो। सोशल मीडिया पर इस्तिहार निकलने लगे। आज वह जुबैर कहां है? पाकिस्तान के कटोरे में दो मुठ्ठी आटा डाल देता!

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हमारे यहां पठान बनाने के नाम पर ढाई सौ करोड़ रुपए की बजट खर्च कर दी जाती है। कम क्या होगा, जब इसे सुपरहिट दिखाने के लिए 500 करोड़ और खर्च किए जाएंगे। जो कि तकरीबन दस करोड़ डॉलर हुए। क्योंकि हमारे शाहरुख खान खरबपति हैं उनके पास पैसों की कमी नहीं है। एक फिल्म को लेकर भारत में जितनी बजट खर्च की जाती है, अमेरिका जैसा बड़ा देश कर्ज के नाम पर दस करोड़ डॉलर पाकिस्तान के कटोरे में डालने जा रहा है। शाहरुख खान गर्व से कहते हैं, जब पाकिस्तान जीतता है मुझे लगता है मेरे वालिद का साइड जीत गया है। आज शाहरुख खान के पास इतनी शर्म बची है कि वे कह सकें, उनके पिता के हाथ में भीख का कटोरा है? नहीं।

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क्योंकि पाकिस्तान और बॉलीवुड दोनों ही के हाथ में कटोरा है। फलेगा फूलेगा तो दोनों एक साथ ही। पाकिस्तान कंगाल हो जाए और बॉलीवुड फले फुले संभव नहीं। आज बॉलीवुड का तो कुत्ता भी सरवाइव नहीं कर पा रहा। अर्जुन कपूर की एक फिल्म आई, कुत्ते। जिसके पहले दिन की ही कमाई दूर दूर तक एक करोड़ को भी छू नहीं सकी। अर्जुन कपूर एनडीटीवी पर बैठकर दर्शक से एक अवसर की भिक्षा मांग रहा। क्या दर्शकों ने इनके एक अवसर का ऋण खाया है? अर्जुन कपूर कितने खुश थे जब सिनेमा समाज के नाम पर भारत में 2015 में एआइबी की शो सजा रहे थे। जिस सिनेमा की जिम्मेवारी समाज का दर्पण उठाने की थी, अप्राकृतिक यौनिक अश्लीलता का मसखरा उठा रहे थे। अब कौन सा एक अवसर चाहिए बॉलीवुड को? जिहादी मानसिकता के नियोजित 8 दशकों ने बॉलीवुड को एआइबी का शो बनाकर खड़ा कर दिया है।

स्वाभाविक, कटोरा कांग्रेस के हाथ में भी है। जो भारत जोड़ो जैसी उक्ति का दुरुपयोग कर कश्मीर से कन्याकुमारी तक घूम गई है। तो सत्य यह है कि पाकिस्तान और बॉलीवुड नहीं, बल्कि कांग्रेश की हालात भी साथ-साथ पतीत होगी। क्योंकि जब धर्म का उत्थान होता है, अधर्म का पतन चहुँओर नजर आने लगता है। इसका मतलब यह भी कि पतन जिसका जिसका भी हो रहा है, जितना ही हो रहा है, उसका उसी अनुपात में अधर्म से नाता था। उसी अनुपात में गांधीत्व का भी पतन होगा और सावरकर-सुभाष का उदय। पाकिस्तान को 55 करोड़ दिलाने के लिए गांधी धरना पर बैठ गए थे, वह 55 करोड़ भी आज पाकिस्तान के कटोरे में दो मुट्ठी आटा का जुगाड़ नहीं कर पा रहा। हिसाब सबका चुकता होगा। वक्त कहां किसी को छोड़ता है?

साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार है)

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