लेकिन पहलवान मुलायम को आज करहल में कराहते देखना गुड क्यों नहीं लगा?
-दयानंद पांडेय की कलम से-
Positive India:Dayanand Pandey:
मुलायम सिंह यादव का भाषण समझना पहले भी बहुत कठिन होता था। मैं ने मुलायम सिंह के दर्जनों इंटरव्यू भी किए हैं , उन की बात समझने के लिए बहुत चौकन्ना रहना पड़ता था। कई बात फिर भी दुबारा पूछनी पड़ती थी। पर आज करहल में मुलायम को देख कर दुःख हुआ। उन का स्वास्थ्य अब उन को ठीक से बोलने भी नहीं दे रहा था। वह वोट मांगने तो अखिलेश के लिए आए थे। पर अखिलेश का नाम भी नहीं याद कर पा रहे थे। कह रहे थे कि जो भी उम्मीदवार हैं , उन को वोट दीजिए।
पहले अखिलेश के चचेरे भाई ने कागज़ पर लिख कर अखिलेश का नाम मुलायम को दिखाया। पर मुलायम नहीं समझ पाए तो उन के कान में बताया , अखिलेश यादव। इस के पहले भी मुलायम को याद दिलाया गया कि वोट मांगना है। भर्राई हुई आवाज़ में मुलायम को बोलते देखना , ठीक नहीं लगा। ऐसे स्वास्थ्य को देखते हुए अखिलेश को मुलायम को करहल ले आए जाने से बचना चाहिए था। वैसे भी अखिलेश यादव करहल से क्लियर कट जीत रहे हैं। वृद्ध मुलायम के आए बिना भी।
पर अखिलेश कहीं न कहीं बहुत असुरक्षित दिख रहे हैं। इसी लिए करहल में आज मुलायम ही नहीं , समूचा परिवार इकट्ठा कर लिया था। लेकिन पहलवान मुलायम को आज करहल में कराहते देखना गुड नहीं लगा। उन की भर्राई और भूल में घुली आवाज़ सुनना सुखद नहीं था। तमाम सहमति-असहमति के बावजूद मुलायम सिंह को लंबे समय तक कवर किया है। बहुत सा समय उन के साथ गुज़ारा है। उन के तमाम शानदार दिन देखे हैं।
पर आज पाया कि इस पहलवान को अब राजनीति के अखाड़े से दूर हो जाना चाहिए। पिता के वृद्ध जीवन को अब और फ़ज़ीहत करवाने से बचना चाहिए , अखिलेश को भी। हां , मुलायम के आज करहल आने से अखिलेश यादव को एक बड़ा लाभ ज़रुर मिलेगा ,वह यह कि कुछ यादव वोट जो सपा से टूट कर भाजपा की तरफ बढ़ गए थे , सपा की तरफ वापस लौट सकते हैं। मुलायम का वह कहा भूल सकते हैं कि जो अपने बाप का नहीं हो सकता , किसी का नहीं हो सकता। अपर्णा यादव के भाजपा में जाने पर पानी पड़ सकता है। सुरक्षा के साथी रहे बघेल की धार भी मुलायम का आना कुंद कर सकता है।
साभार:दयानंद पांडेय-(ये लेखक के अपने विचार हैं)