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राहुल गांधी के बयान को विवाद का विषय मानने के बजाय विमर्श का विषय क्यो मानना चाहिए?

-विशाल झा की कलम से-

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Positive India:Vishal Jha:
राहुल गांधी के खिलाफ भारत की मीडिया में बड़ा प्रसारित हो रहा है कि भारत के लोकतंत्र के लिए उनका कैंब्रिज में दिया गया बयान विवाद का विषय है। इस बात से कितना सहमत हुआ जा सकता है? राहुल गांधी के बयान को विवाद का विषय मानने के बजाय विमर्श का विषय मानना चाहिए? राहुल गांधी क्या बोलते हैं, के बजाय क्यों बोलते हैं, इस पर बिल्कुल अलग तरीके के विमर्श की आवश्यकता है। विवाद मानने से हल नहीं हो सकता।

राहुल गांधी क्यों कैंब्रिज में जाकर बोलते हैं, भारत के लोकतंत्र को बचाने के लिए अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों को रिएक्ट करना चाहिए? इस प्रश्न पर विमर्श होगी तो नई पीढ़ी को बहुत बातें समझ आ जाएगी कि राहुल गांधी कैसे अंग्रेज की कांग्रेस पार्टी के उस विरासत से आते हैं जिस पार्टी की शुरुआत अंग्रेजों से तो हुई, आजाद भारत में भी तमाम गवर्नर जनरल पद से लेकर शपथ ग्रहण तक अंग्रेजी निष्ठा से चले, लेकिन आज तक उसका समापन नहीं हुआ। सुब्रमण्यम स्वामी को ऐसे विमर्शों में याद किया जाना चाहिए। किसी भी चैनल वालों ने उन्हें याद नहीं किया। आखिर भाजपा ने केवल एकसूत्री इसी काम के लिए ही तो उन्हें पार्टी में बना रखा है। वह बड़ा बढ़िया से बताते हैं कि राहुल गांधी कैसे आज भी ब्रिटेन के नागरिक हैं और एक ब्रिटिश नागरिक अपने ब्रिटेन से किसी दूसरे देश के लोकतंत्र में हस्तक्षेप के लिए क्यों नहीं दुहाई डाल सकता? और यही राहुल गांधी कर रहे हैं।

लोकतंत्र का आम चुनाव इजराइल में हो अथवा अमेरिका में, विगत चुनावों में देखा गया है कैसे भारत के प्रधानमंत्री मोदी के नाम पर वहां के राजनीतिक दलों ने वोट मांगे हैं। इजराइल की गगनचुंबी इमारतों पर मोदी के चेहरे की बड़ी-बड़ी बिलबोर्ड्स, मोदी को बुलाकर अमेरिका में बड़ी चुनावी रैलियां, ऐसी बड़ी महाशक्ति देशों में आम चुनाव में भारत के प्रत्यक्ष प्रभाव ने लोकतंत्र जगत में भारत की छवि को इतना ऊंचा कर दिया है, कि विश्व भर में कांग्रेस की रही सही नैरेटिव भी शिथिल पड़ गई।

राहुल गांधी को अपने ही देश में पप्पू बना दिया गया। चुनाव दर चुनाव राहुल गांधी की हार ने उनके पप्पू होने पर ठप्पा लगा दिया। मैं इस पक्ष में रहता हूं कि उनकी छवि का कारण कांग्रेसी डीएनए के आईक्यू का कम होना नहीं है। बल्कि मोदी जैसी शख्सियत का सामना पर जाना असल कारण है। आज भारत की राजनीति से मोदी जैसे चेहरों को हटा दिया जाए, फिर ऐसा दिखने में समय नहीं लगेगा कि राहुल गांधी उतने ही मजबूत नेता हैं, जितना कभी राजीव गांधी, इंदिरा गांधी और पंडित नेहरू हुआ करते थे। इसलिए कहीं ना कहीं राहुल गांधी का जो राजनीतिक आचरण है, वह उनके संपूर्ण कांग्रेस और कांग्रेसी नेताओं का ही एक अनुक्रम प्रतिफल है। इसलिए विमर्श के तरीके को बदलने की महती आवश्यकता है।

साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार है)

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