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लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला के इमरजेंसी के निंदा प्रस्ताव पर समूची कांग्रेस गुंडई पर क्यों उतर आई?
-दयानंद पांडेय की कलम से-
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Positive India: Dayanand Pandey:
बहुत आदर के साथ यह कहने की अनुमति चाहता हूं कि ‘ यह कृत्य लोक विरोधी था ‘ का स्वर बहुत मुलायम और मीठा है। ख़ैर , कांग्रेस की कभी कोई सार्वजनिक माफ़ी तो दिखी नहीं। न इमरजेंसी को ले कर न 1984 के सिख दंगों के बाबत। बल्कि आज ही देखा होगा आप ने लोकसभा में जब अध्यक्ष ओम बिरला ने इमरजेंसी का निंदा प्रस्ताव पढ़ा तो समूची कांग्रेस पूरी गुंडई से बंद करो , बंद करो ! के नारे लोकसभा में निरंतर लगाती रही। इमरजेंसी के लिए कभी कांग्रेस ने अगर माफ़ी मांगी होती तो यह मंज़र पेश न होता।
सत्ता सभी निर्मम और निरंकुश होती हैं। त्रेता की हों , द्वापर की हों , मुग़लों की हों या ब्रिटिशर्स की या आज़ादी के बाद की , सभी की सभी निर्मम और निरंकुश होने की हामीदार रही हैं , हैं। रही बात इमरजेंसी की या उस से पहले की , निर्ममता और निरंकुशता की अति न होती तो धूमिल और दुष्यंत की आवाज़ उस की तल्ख़ी को तेवर इस तरह न दे पाती। कि जन-जन की ज़ुबान पर चढ़ गई।
मुझे नहीं याद आता कि बीते दस साल में जिस अघोषित आपातकाल का ज़िक्र आप कर रहे हैं , उस में धूमिल और दुष्यंत सा कोई कवि या उस की कविता प्रतिरोध में सामने आई हो। परसाई सा कोई गद्य भी आया हो। क्यों नहीं आया ? तब जब कि कुछ कवि , कुछ गद्यकार लगभग रोज ही वर्तमान सरकार के निंदा पुराण का गीत गाते मिलते हैं। कालजयी रचना कोई एक तो आती जिसे दुष्यंत के किसी शेर की तरह , धूमिल की किसी कविता की तरह लोगों की ज़ुबान पर चढ़ जानी चाहिए थी। नहीं चढ़ी तो इस लिए कि या तो सत्ता के अत्यचार में कोई खोट है या रचनाकार चुक चुके हैं। आख़िर कुछ तो कारण होगा ही। इस की पड़ताल होनी चाहिए।
[दयानंद पांडेय का उनके एक मित्र की पोस्ट पर प्रतिवाद का प्रत्युत्तर -ये लेखक के अपने विचार है]