छत्तीसगढ़ सरकार ने निजी अस्पतालों को लूट की छूट क्यों दी?
कैसे प्राइवेट अस्पतालों ने कोरोनावायरस की आपदा को अवसर में तब्दील किया?
Positive Indi:Raipur:
अप्रैल माह तथा मध्य मई तक कोरोना कहर बन कर लोगों पर टूट पड़ा। चारों तरफ त्राहि-त्राहि मच गई। क्या प्राइवेट अस्पताल, क्या सरकारी अस्पताल हर तरफ बेड फुल हो गए। हालात ऐसे हो गए कि मरीजों को बेड मिलना मुश्किल हो गया। इन्हीं सब चीजों का फायदा निजी अस्पतालों ने ढूंढ लिया और पुराना मरीजों से लूट चालू कर दी। निजी अस्पताल कोरोना मरीजों के परिजनों की मजबूरी का फायदा उठाने लगे और कई कई गुना फीस वसूलने लग गए।
कोरोना मरीजों को अस्पतालों के कहर से बचाने के लिए भूपेश बघेल सरकार ने गाइडलाइन जारी की; ताकि कोरोना मरीजों को प्राइवेट अस्पतालों की लूट से बचाया जा सके, जिसमें साफ तौर पर अलग-अलग अस्पतालों, ऑक्सीजन बेड, आईसीयू, बिना वेंटीलेटर तथा आईसीयू वेंटीलेटर के रेट तय कर दिए गए। परंतु अफसोस! किसी भी निजी अस्पताल ने इसकी परवाह नहीं की तथा मनमानी रूप से मरीजों को तबियत से लूटा ।
हद तो तब हो गई जब डेढ़ से दो लाख के बिल के बजाय प्राइवेट अस्पताल 8 से 10 लाख तक लोगों से वसूलने लगे। सबसे बड़ी परेशानी उन मरीजों को आई जो आईसीयू में भर्ती थे, या आईसीयू वेंटीलेटर पर थे। परिजनों को मिलने की सख्त मनाही थी। कोई परिजन यह जान नहीं पाता था कि उनके पेशेंट के साथ क्या हो रहा है? कौन सी दवाई दी जा रही है? इसका अस्पतालों ने भरपूर फायदा उठाया।
कंसल्टेशन फीस के साथ 1 – 1 राउंड की फीस 5000 – 5000 हजार अस्पतालों ने चार्ज की ।अस्पतालों ने एक दिन का चार्ज 40000 से ₹50000 तक कोरोनावायरस के मरीजों से वसूली की।, जिसका जीवंत उदाहरण है बिरगांव का सुबोध जो 10 दिन तक बिरगावं के एक प्राइवेट नर्सिंग होम में भर्ती रहा और अस्पताल ने डिस्चार्ज करते वक्त 5,10,000 का बिल उसे थमाया। उसने शिकायत तो की परंतु अभी तक उसकी शिकायत पर सुनवाई तक नहीं हुई।
निजी अस्पतालों ने रेमडेसीविर इंजेक्शन की किल्लत के समय जबरदस्त चांदी काटी। एक तरफ कोरोना मरीज के परिजन इंजेक्शन की कमी से जूझ रहे थे, तो वहीं दूसरी तरफ अस्पताल शारटेज के नाम पर रेमडेसीविर इंजेक्शन की मनमानी कीमत वसूल रहे थे। रेमडेसीविर इंजेक्शन के मामले में हेल्थ डिपार्टमेंट ने किसी एक भी प्राइवेट अस्पताल पर कार्रवाई नहीं।