क्या छत्तीसगढ़ पुलिस कर्मियो के परिवारजन का धरना व्यर्थ चला जायेगा?
रायपुर:छत्तीसगढ़ की राजधानी रायुपर में पुलिस के भारी बन्दोबस्त के बावजूद पुलिस कर्मियों के परिजनों का एक दिवसीय महाधरना बहुत कुछ कह गया. सरकार और पुलिस की अति सतर्कता की वजह से चाहे इस धरने में कम प्रदर्शनकारी पहुंच सके, परन्तु सन्देश साफ था। पार्टी लाईन से हट कर सभी पार्टियां साथ थी। और फिर पुलिस भी तो साथ थी। बस एक मजबूरी थी कि वे कानूनन इसमे खुल कर न ही शामिल हो सकते है न ही इस तरह के आन्दोलन का समर्थन कर सकते है।
आन्दोलनकारियो को समर्थन देने वाले संगठनों के भीड़ की धरना स्थल पर मौजूदगी यह साफ संकेत दे गई कि इन पुलिस कर्मियो के परिजनों की मांगे जायज है। राजधानी रायुपर में रोक के बावजूद यह ‘महाप्रदर्शन’ पुलिस कर्मियों के वेतन, भत्ते और सुविधाओं की मांग को लेकर था जिनसे ये वर्षो से वंचित है। चलते तो ये मोटरसाइकिल से है परन्तु भत्ता इन्हे साइकिल का मिलता है। ये कितना हास्यपद है। सरकार अपनी इन्ही नीतियो के जरिये इन्हे भ्रस्टाचार करने के लिये उकसाने का काम करती है। और ये भारत के हर राज्य मे हो रहा है। ये बात अवश्य है कि छत्तीसगढ़ मे पुलिस कर्मियो के परिजनों ने छत्तीसगढ़ सरकार के इन नीतियों के विरूध आवाज उठाने की हिम्मत की।
सरकार और पुलिस की तरफ से पहले से ही सतर्कता बरती जा रही थी. यही वजह है कि सोमवार सुबह से रायपुर का चप्पा – चप्पा पुलिस छावनी मे तब्दील हो गया था
पुलिस ने नाके बन्दी करके सभी को शहर के बाहर ही रोक दिया था। तभी तो आंदोलन में शामिल होने के लिए आए लोग शहर में प्रवेश ही नहीं कर सके, उसके बावजूद पुलिस को चकमा दे कर लोग ईदगाह भाटा पहुँच ही गये।
इस महा प्रदर्शन को विफल बनाने के लिए पुलिस वालो से हलफनामा भरवाया था. इसमे साफ लिखा था कि उनके परिजन प्रदर्शन में शामिल नहीं होंगे, वरना उनके खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी. सरकार का यह नजरिया कितना सही है?
लगभग आधा दर्जन जिलों में 9 पुलिस कर्मियों की बर्खास्तगी की गई है। क्यो? क्या पुलिस कर्मियों के परिजनों को अपना जायज हक़ माँगने का भी अधिकार नही है? ये एक बड़ा प्रश्न चिन्ह है छत्तीसगढ़ सरकार की कार्यप्रणाली पर। क्या मुख्यमन्त्री डॉक्टर रमन सिंह पुलिस की जायज मांगो पर ध्यान देकर उन्हे पूरा करने का कष्ट करेंगे??