तुलसीदास ने जो कर दिखाया वह बड़े बड़े सूरमा भी क्यो नहीं कर सके?
-राजकमल गोस्वामी की कलम से-
Positive India:Rajkamal Goswami:
अकिंचन तुलसीदास ने जो कर दिखाया वह बड़े बड़े सूरमा भी नहीं कर सके । उस तमोयुग में धर्मरक्षा का कार्य करना अत्यंत दुष्कर था । धर्म तो धर्म देश का गौरव भी रसातल में जा चुका था । जिन क्षत्रियों पर देश धर्म की रक्षा का भार था उनकी तलवारें कुंद पड़ चुकी थीं या फिर मुग़लों के राज्य विस्तार के लिए उठ रही थीं । मंदिर ध्वस्त कर दिए गए थे । सनातन धर्म की अस्मिता की वही दशा थी कि,
अधम निसाचर लीन्हें जाई । जिमि म्लेच्छ बस कपिला गाई॥
ऐसे घोर कलिकाल में राम नाम को घर घर पहुँचाना और एक सामवेद तुल्य ग्रंथ की रचना कर देना सामान्य बात नहीं थी । तुलसी की यह कृति कालजयी सिद्ध हुई । रामकाव्य तो अनेक लिखे गए पर रामचरितमानस ने लोकप्रियता में वाल्मीकि की रामायण को भी पीछे छोड़ दिया ।
मानस से पहले और बाद में भी अनेक रामकाव्यों की रचना हुई पर किसी हिंदी ग्रंथ को धर्मग्रंथ की मान्यता नहीं मिली । मानस को भी धर्मग्रंथ यूँ ही घोषित नहीं किया गया । कुंभ मेले में तत्कालीन संत अद्वैत वेदांती श्री मधुसूदन सरस्वती जी ने इस ग्रंथ को विचारार्थ प्रस्तुत किया और सभी धर्माचार्यों ने इसे एकमत से धर्मग्रंथ घोषित किया ।
मंदिर नष्ट हो सकते हैं धर्मस्थल ध्वस्त हो सकते हैं लेकिन जन जन के हृदय में प्रतिष्ठित राम को कौन ध्वस्त कर सकता है । रामकथा ही तो भारत की संस्कृति की मार्गदर्शिका है । तुलसी ने जनभाषा में रामकथा की पुनर्प्रतिष्ठा की
मंगल करनि कलिमल हरनि तुलसी कथा रघुनाथ की।
गति कूर कविता सरित की ज्यों सरित पावन पाथ की॥
प्रभु सुजस संगति भनिति भलि होइहि सुजन मनभावनी।
भव अंग भूति मसान की सुमिरत सुहावनि पावनी ॥
महाकवि परमभक्त तुलसीदास जी के अवतरण दिवस पर उन्हें कोटि कोटि नमन ।
साभार:राजकमल गोस्वामी-(ये लेखक के अपने विचार है)