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पवन खेरा की जमानत की घटना कोई मामूली घटना क्यो नहीं है?

-विशाल झा की कलम से-

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Positive India:Vishal Jha:
पवन खेरा वाली जमानत की घटना कोई मामूली नहीं है। यह ठीक है कि जमीन से लेकर संगठन और एकोसिस्टम तक सब कुछ धीरे-धीरे दुरुस्त हो रहा है। लेकिन जिस स्तर तक दुरुस्त हुआ है, उस पर अभी भी बहुत काम किए जाने की आवश्यकता है। गलती से यदि ऐसा कहा जाए कि मोदीराज के सत्ता से बेदखल होने पर पुराने भारत की वापसी में कितना वक्त लगेगा? जवाब बहुत मुश्किल नहीं है।

1:00 बजे सुप्रीम कोर्ट में अभिषेक मनु सिंघवी द्वारा अर्जी पर 2 घंटे के भीतर 3:00 बजे सुनवाई शुरू और 3:45 पर महज 45 मिनट में जमानत! सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऑब्जरवेशन में नूपुर शर्मा को आदेश देने की तरह यह भी नहीं कहा कि पवन खेरा वापस वहीं जाकर सार्वजनिक माफी मांगे। इकोसिस्टम की दाद देनी पड़ेगी। एकोसिस्टम का सबसे उत्तम उदाहरण अर्बन नक्सल इकोसिस्टम के अलावा और क्या होगा?

मेरे एक वामपंथी मित्र ने कहा था, मोदी के सत्ता से वापसी होते ही मोदीराज में तैयार की गई सारी इंस्टीट्यूशनल व्यवस्थाएं ध्वस्त हो जाएंगी। जिस प्रकार आज 3 घंटे भी नहीं हुए, सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल जाती है, लगता है कि न्यायपालिका से लेकर तमाम क्षेत्र में इकोसिस्टम के स्तर पर तमाम कार्य करने की गुंजाइश अभी बची ही हुई है।

दूसरा सत्य बड़ा स्पष्ट है, नफरत के बाजार में मोहब्बत की दुकान सजाने का नारा देकर कांग्रेस के एआईसीसी के मेंबर स्तर के नेता एयरपोर्ट पर ‘मोदी तेरी कब्र खुदेगी’ जैसा नारा लगाते हैं। कितना खतरनाक है कि मोहब्बत के नाम पर एक देश के संवैधानिक रूप से चुने हुए प्रधानमंत्री की कब्र खोदी जा सकती है, कि जितनी हिम्मत आज दुश्मन देश का आतंकवादी हाफिज सईद बोलने की हिम्मत नहीं कर पा रहा, अर्बन नक्सल गिरोह और सोरोस गिरोह बड़ी आसानी से कर पा रहा। इस नफरत को यदि मिटाना है तो वास्तव में सत्ता नहीं बल्कि देश की जनता को हर स्तर पर पर्याप्त कार्य करने की आवश्यकता है।

साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार है)

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