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जब भारत के ग्यारहों खिलाड़ी केवल जीतने के लिए खेल रहे हों तो उन्हें जीतने से कोई नहीं रोक सकता।

-सर्वेश कुमार तिवारी की कलम से-

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Positive India:Sarvesh Kumar Tiwari:
सन 2003
विश्व कप खेलने गयी भारतीय टीम के लिए हम दर्शकों ने अधिकतम यही सोचा था कि “काश! टीम सेमीफाइनल खेल लेती…” यह ‘काश’ इसलिए था, क्योंकि विश्वकप के ठीक पहले न्यूजीलैंड में सात मैचों की सीरीज खेलने गयी टीम इंडिया को बुरी तरह से धोया था कीवियों ने… वीरेंद्र सहवाग को छोड़ कर कोई भी बैट्समैन खेल नहीं पाया था, ना ही श्रीनाथ को छोड़ कर कोई दूसरा बॉलर ही चल पाया था।

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तब हमने पहली बार यह आश्चर्यजनक बात सुनी थी कि सीरीज से पहले कीवियों ने भारत के हर खिलाड़ी की अनेकों वीडियो देख देख कर उनकी कमजोरियां पकड़ीं और उनके विरुद्ध रणनीति बनाई थी। और यही कारण था कि भारत 5-2 से सीरीज हार कर लौटा था। खैर…

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विश्वकप के अपने पहले ही मैच में टीम इंडिया नीदरलैंड जैसी फिसड्डी टीम के विरुद्ध 204 रन पर ऑलआउट हो गयी, और दूसरे मैच में ऑस्ट्रेलिया से जब बुरी तरह पराजित हो गयी। तब एक स्वर में सबने कहा था,”इनसे न हो पायेगा…”

देश भर में बवाल हो गया। देश भर में क्रिकेट प्रसंशकों ने टीम इंडिया की शवयात्रा निकाली। कप्तान सौरभ गांगुली के घर पर लोगों ने पथराव कर दिया। यहाँ तक कि सौरभ के बड़े भाई स्नेहाशीष गांगुली ने मीडिया के सामने कहा, “लौट आओ भाई! तुमसे नहीं हो सकेगा…”

इतनी गालियां पड़ीं, इतनी आलोचना हुई, कि गांगुली की टीम के लिए करो या मरो की स्थिति हो गयी। फिर वे उसी तरह खेले और सारे मैच जीतते हुए सेमीफाइनल तक पहुँच गए। संयोग से सेमीफाइलन में मिल गयी कीनिया जैसी टीम, जो स्टीव टिकोलो की कप्तानी अनेक उलटफेर करते हुए सेमीफाइनल तक पहुँच गयी थी। कमजोर स्पीनरों के लिए काल रहे दादा ने फिर सेंचुरी ठोक दी, और टीम फाइनल में।

पर टीम की यात्रा यहीं तक थी, क्योंकि सभी उतने में ही संतुष्ट हो गए थे। फाइनल जीतने का जज्बा न टीम के पास था, न ही भारतीय दर्शकों में… फाइनल मैच के बाद हर एक्सपर्ट ने यह माना था कि भारतीय टीम फाइनल खेलने उतरी थी और ऑस्ट्रेलिया टीम फाइनल जीतने… यही होना था, यही हुआ था।

पर बीस साल बाद 2023 के पहले ही मैच में ऑस्ट्रेलिया के दो सौ के भीतर ऑल आउट कर के टीम इंडिया ने यह एनाउंस कर दिया कि यह विश्वकप हमारा है। पूरे टूर्नामेंट के दौरान केवल एक न्यूजीलैंड की टीम ही रही जो भारत से जूझ सकी है। अब तक खेले अपने दस मैचों में एक भी मैच को इन्होंने केवल खेलने के लिए नहीं खेला है, सब जीतने के लिए खेले हैं। मेरे हिसाब से जीतने के लिए केवल इसी जज्बे की आवश्यकता होती है।

जब टीम के ग्यारहों खिलाड़ी केवल जीतने के लिए खेल रहे हों तो उन्हें जीतने से कोई नहीं रोक सकता। यह विश्वकप भारत का है, केवल भारत का… आज के लिए टीम इंडिया को शुभकामनाएं! हमलोग मैच से अलग, छठ मनाएंगे।

साभार:सर्वेश तिवारी श्रीमुख-(ये लेखक के अपने विचार हैं)
गोपालगंज, बिहार।

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