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भारत में कोयले की कमी कहां है?

-विशाल झा की कलम से-

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Positive India:Vishal Jha:
भारत में कोयले का भंडार लगभग 300 अरब टन है। कोयला भंडार की उपलब्धता वाले देशों की सूची में भारत का स्थान पांचवा है। सरकार ने जब बयान जारी कर कहा है कि कोयले की कमी नहीं है, जिन राज्यों को जितना कोयला चाहिए मिल सकता है। राजस्थान ने 1740 करोड़ रूपया का भुगतान कुछ माह पहले किया है। तब जाकर राजस्थान को कोल इंडिया लिमिटेड से कोयला की आपूर्ति आरंभ की गई। बावजूद इसके कि 1060 करोड़ रुपया अभी भी बकाया है कोल इंडिया लिमिटेड का। हजारों करोड़ का बकाया विभिन्न राज्यों के ऊपर होना पुरानी बात है। फिर आपूर्ति कैसे होगी?

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स्वाभाविक कोल इंडिया लिमिटेड भी खनन राज्यों को भुगतान नहीं कर पाती। पिछले दिनों हेमंत सोरेन ने खनन के कार्य पर रोक लगाने की धमकी दी है। हालांकि उनसे प्रश्न में पूछा गया था कि अधिग्रहण व जमीन विवाद को लेकर विवादों का निपटारा सरकार क्यों नहीं कर रही? निपटारा के लिए दायित्व तो राज्य सरकार का ही है। हम भी जानते हैं कि संविधान के सातवीं अनुसूची के हिसाब से खनिज समवर्ती सूची का विषय है।

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कोल इंडिया लिमिटेड को सार्वजनिक क्षेत्र में उपक्रम के तौर पर 1975 में स्थापित किया गया। 1973 में कोयला खदानों का राष्ट्रीयकरण करके बावजूद इस देश में कोयला का आयात किया जाता रहा। इंडोनेशिया, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका से। क्योंकि हमारा कोल इंडिया लिमिटेड सरकारी भ्रष्टाचार और नौकरशाही की भी भेंट चढ़ता रहा। पारदर्शिता की कमी रही। निवेश की कमी रही। नवीन तकनीकों का विकास नहीं हो पाया।

मोदी सरकार ने आमूलचूल परिवर्तन किए। ईज आफ डूइंग बिजनेस के तहत निवेशकों को आकर्षित किया। स्वयं मोदी सरकार द्वारा भी आधारभूत संरचना के विकास के लिए 50000 करोड़ का निवेश लगाकर 2023-24 तक एक बिलियन टन वार्षिक कोयला उत्पादन का लक्ष्य निर्धारित किया गया। कोयला को आयात कर निर्यात करने की भी व्यवस्थाएं उपलब्ध करायीं। नेपाल, बांग्लादेश को आज भी यहां से कोयला निर्यात होता है। आयात कर निर्यात करने वाले व्यापारियों को काफी खुशी हुई।

थर्मल कोयले की आवश्यकता को ही खत्म कर देने के लिए मोदी ने विश्व स्तरीय कदम भी उठाया। भारत ने इंटरनेशनल सोलर एलाइंस की स्थापना की। लॉन्चिंग में फ्रांसीसी राष्ट्रपति मैनुअल मैक्रोन भी शामिल थे जब 2015 में पेरिस में यूएन क्लाइमेट कॉन्फ्रेंस किया जा रहा था। प्रधानमंत्री मोदी को इसके लिए 26 सितंबर 2018 को यूनाइटेड नेशन की हाईएस्ट एनवायरमेंटल अवॉर्ड “चैंपियन ऑफ द अर्थ” भी दिया गया।

कोयले की अच्छी उत्पादकता बनाए रखने के लिए पिछले 7 सालों में अनगिनत काम हुए हैं। समस्या होगी चीन को कि जो आयातित कोयले पर दुनियाभर को मैन्युफैक्चरर्ड गुड्स निर्यात करने वाली इंडस्ट्रीज लगा रखा है। आज उन इंडस्ट्रियों को महज 12 घंटे की बिजली आपूर्ति की स्थिति बन गई है। कंपनियां चीन से भागकर भारत ना आ जाए, इसके लिए मोदी का राजनीतिक विरोधी “कोयला ही खत्म है” बताकर पूरी जोर लगाए हुआ है।

साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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