Positive India:Rajkamal Goswami:
मुसलमान क़ौम जब भी कभी पराजित होती है तो अपनी जड़ें तलाशती है । क़ुरान कहती है कि क़ुरान की रस्सी को मजबूती से पकड़े रहो तो संसार तुम्हारे कदमों पर होगा । मुग़ल साम्राज्य के पतन के बाद मुसलमानों की एक शाखा ने देवबंद में मदरसा स्थापित किया और एकदम शुद्ध इस्लामी शिक्षा प्रारंभ कर दी जहाँ क़ुरान , इस्लामी न्यायशास्त्र यानी फिका, और अरबी साहित्य , हदीस के ग्रंथ आदि की शिक्षा दी जाती है । यह संस्थान केवल मौलवी तैयार करने का काम करता है जो अपने ढंग के शुद्धतावादी सुन्नी दृष्टिकोण का प्रचार प्रसार करता है ।
सर सैयद अत्यंत दूरदर्शी थे । उन्होंने ताड़ लिया कि आधुनिक शिक्षा के बिना मुसलमानों का कल्याण संभव नहीं है । जब उन्होंने मोहमडन एंगलो ओरियंटल स्कूल की स्थापना की तो मुस्लिम समाज की ओर से इतना विरोध हुआ कि उनके ख़िलाफ बीसियौं फतवे निकाले गये । उन्हें काफिर घोषित किया गया और तो और लोग सऊदी अरब से भी उनके ख़िलाफ फतवा ले आये । अंग्रेजों की हुक़ूमत न होती तो शायद कोई सिरफिरा उनका काम भी तमाम कर देता । सबसे अधिक एतराज़ तो इस बात पर था कि कॉलेज में सुन्नी धर्म शास्त्र और शिया धर्म शास्त्र दोनों के अलग अलग विभाग खोले गये । यह बात तो नाक़ाबिले बर्दाश्त थी ।
सर सैयद का मदरसा आगे चल कर विश्वविद्यालय बन गया । पूरे उपमहाद्वीप में मुसलमानों की तरक्की में अलीगढ़ का बहुत योगदान है जबकि देवबंद ने पहले से फिरकों में बंटे मुसलमानों को एक और फिरका देने के सिवा कुछ नहीं दिया । अरब की जड़ों में वह इस कदर घुसे हुए हैं कि भारत में होते हुए भी पंचतंत्र जैसे महान संस्कृत ग्रंथ का अरबी अनुवाद ‘कलीला व दमना’ पढ़ाते हैं ।
अलीगढ़ प्रवास के दौरान एएमयू से रत्न परीक्षण में एक साल का डिप्लोमा करने का सौभाग्य मुझे भी प्राप्त है । पढ़ाई कितनी सस्ती हो सकती है इसका अंदाज़ इसी से लगाया जा सकता है कि पूरे वर्ष की फीस लगभग ६००/ थी और यूनिवर्सिटी ने कम से कम १००००/ रुपये मेरे ऊपर शैक्षिक भ्रमण आदि में ख़र्च कर दिये होंगे । सारे भारत में लोगों ने अपनी संपत्तियाँ अलीगढ़ विश्वविद्यालय को वक़्फ कर रखी हैं
यहाँ के पूर्व छात्रों ने राजनीति, साइंस, इंजीनियरिंग, मेडिकल आदि क्षेत्रों में सारी दुनिया में नाम कमाया है । मुसलमान सर सैयद से कभी उऋण नहीं हो सकते !
आज सर सैयद के जन्म को २०० वर्ष पूरे हो रहे हैं । अलीगढ़ में हर साल १७ अक्तूबर को सर सैयद डे मनाया जाता है । सर सैयद नै राजनीति से दूर रह कर विशुद्ध शैक्षिक उद्धार के लिये यह इदारा क़ायम किया था लेकिन अलीगढ़ में ही पाकिस्तान के बीज बोये गये जो सर सैयद की शायद कभी अभिलाषा न रही हो । वह हिंदू मुसलमान दोनों की उपमा अपनी दो आँखों से देते थे ।
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से जुड़े हुए सभी लोगों को मैं सर सैयद डे की बधाई देता हूँ ।
साभार:राजकमल गोस्वामी-(ये लेखक के अपने विचार हैं)