जब दिलीप मंडल ने काल्पनिक मुस्लिम महिला फातिमा को पहली शिक्षिका घोषित किया था
-सर्वेश कुमार तिवारी की कलम से-
Positive India: Sarvesh Kumar Tiwari:
इतिहास कैसे बनता है?
दो चार साल पहले दिलीप मंडल फेसबुक पर एक फर्जी चरित्र गढ़ते हैं, “देश की पहली शिक्षिका फातिमा थी।” वे बताते हैं कि फातिमा महात्मा ज्योतिबा फूले के विद्यालय में पढ़ाती थी। मंडल तब तब सुबह से शाम तक ब्राह्मणों को कोसने का काम करते थे। अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने इस काल्पनिक मुस्लिम महिला को पहली शिक्षिका घोषित किया था। मंडल की तब ठीक ठाक फैन फॉलोइंग थी, लोग उनकी बात सुनते/मानते थे, सो धीरे धीरे उन्होंने अपनी बात स्थापित कर दी।
एक दो साल में फेसबुक पर फातिमा की जयंती मनाई जाने लगी, तस्वीर बन गयी और घूमने भी लगी, जयंती की बधाई दी जाने लगी… यहाँ तक कि कुछ बड़ी पार्टियों के पोस्टर पर दिखने लगीं।
इसी बीच मंडल जी पलटी मार गए। उस खेमे से इस खेमे में आ गए। अब एक दिन मंडल धमाका करते हैं कि वह कैरेक्टर मेरा गढ़ा हुआ है। दरअसल फुले के यहाँ इस नाम की एक नौकरानी रहती थी, जिसे मैंने शिक्षिका बता कर मूर्खों को एक्स्ट्रा मूर्ख बनाया था। किसी भी पुस्तक में उसका नाम भी हो तो दिखा दे कोई… बात सच भी है।
सच पूछिये तो अपने देश की किताबों में पढ़ाये जा रहे इतिहास का एक बड़ा हिस्सा ऐसे ही गढ़ा गया है। आतंकियों को संत बताया गया, लुटेरों को महान बनाया गया, डकैतों को स्कॉलर पढ़ाया गया। और हम सब चुपचाप उसे ही सत्य मानते रहे।
आज से छह सात वर्ष पहले की बात है, उन दिनों हम इस पटल पर हम कहानियां ही लिखा करते थे। उन्ही दिनों मैंने एक कहानी लिखी- तक्षक! वह कहानी कुछ अधिक ही प्रसिद्ध हो गयी। इतनी प्रसिद्ध हो गयी कि कथा साहित्य की समझ न रखने वालों तक भी पहुँची और खूब पढ़ी गयी। अब गड़बड़ यह हुई कि लोग उसे इतिहास मानने लगे। कुछ तो मुझसे ही उलझ गए कि यह सत्य घटना है। कुछ स्वघोषित विद्वान तो ऐसे निकले जो मुझपर इतिहास विकृत करने का आरोप लगाने लगे। एक दो मूर्ख तो अब भी इस बहाने यदा कदा गाली देते रहते हैं। अब मैं क्या ही उत्तर देता, और क्यों ही उत्तर देता? जिन मूर्खों को कहानी और इतिहास के बीच का अंतर नहीं पता हो, उन्हें क्या ही समझा सकेंगे हम?
यह देश किस्से कहानियों में जीने वाला देश है। राही मासूम रजा ने महाभारत सीरियल में द्रौपदी से कहलवा दिया, “अंधे का बेटा अंधा” यहां के लोग उसे ही सत्य मान कर द्रौपदी को अपराधी मानने लगे। किसी ने लिख दिया कि कर्ण को आचार्य द्रोण ने अपने गुरुकुल में शिक्षा ग्रहण करने नहीं दिया, लोग उसी को सत्य मान कर द्रोणाचार्य को अपराधी मानने लगे। किसी मूर्ख ने लिख दिया कि द्रोणाचार्य ने जाति के कारण एकलव्य का अंगूठा कटवा लिया, लोग उसे ही सत्य मानने लगे।
ये लोग यदि महाभारत पढ़ते तो जानते कि द्रौपदी ने दुर्योधन पर कोई व्यंग नहीं किया था। कर्ण और उसके जैसे समस्त दासों के बच्चे उसी गुरुकुल में राजकुमारों के साथ ही विद्या ग्रहण करते थे। और एकलव्य का अंगूठा इसलिए कटा क्योंकि वह हस्तिनापुर के शत्रु राष्ट्र के सेनापति का पुत्र था। पर हम भारत के लोग… अद्भुत ही हैं।
किताबों में छपा इतिहास कुछ प्रभावशाली कलमों की नोंक पर हुआ खेल भर है, जिसका बहुत बार सत्य से कोई लेना देना नहीं होता।
साभार:सर्वेश तिवारी-(ये लेखक के अपने विचार हैं)
गोपालगंज, बिहार।