यदि राहुल गांधी की सदस्यता फिर से बहाल हो जाती है तो मोदीजी की ’24 वाली राजनीति का क्या होगा?
-विशाल झा की कलम से-
Positive India:Vishal Jha:
मोदी जी के समीक्षकों में भय का वातावरण है, कि ऊपरी अदालत में अपील के पश्चात यदि राहुल गांधी की सदस्यता फिर से बहाल हो जाती है तो मोदीजी की ’24 वाली राजनीति का क्या होगा? कितनी बड़ी आफत आ जाएगी! राहुल गांधी ने तो सब कुछ एक रणनीति के तहत किया है! जानबूझकर सजा अपने माथे पर लिया, ताकि माहौल को इकट्ठा करके अदालती लड़ाई जीतकर मोदी को बैकफुट पर ले आएंगे।
मोदी के समर्थकों की यही सबसे बड़ी समस्या है। समर्थकों को लगने लगता है कि मोदी जी के टीम में जितने भी रत्न हैं, उनका मूल्य माटी है। और मोदीजी अपनी राजनीति के लिए अपने समर्थकों की सूझबूझ पर आश्रित हैं। ठीक वैसे ही जैसे मोदी जी के समर्थक यदि ‘तारीख नहीं बताएंगे’, नहीं कहा होता, तो आज राम मंदिर नहीं बनता। ‘370 कब हटाएंगे’, नहीं पूछा होता, तो 370 नहीं हटता। मोदी जी के समर्थकों में निष्पक्षता की एक अलग ही लालसा पाई जाती है।
मोदी सरकार नैरेटिव से नहीं रणनीति से चलती है। इतनी मामूली सी बात भाजपा को भी मालूम होगी कि उपरी अदालत में राहुल गांधी के मामले पर फैसला पलट भी सकता है और भाजपा के लिए अपना डिफेंस मुश्किल हो सकता है। अदालत का एकोसिस्टम भाग्य से पूरी तरह राहुल गांधी के पक्ष में भी आ जाए, तो बीजेपी के पास सीन कंट्रोल के पर्याप्त रास्ते हैं। आज पूरा पंजाब उधेड़बुन के बाद अमृतपाल कहां गया कौन पूछ रहा है? कोई नहीं। क्योंकि मीडिया के पास राहुल गांधी की नई कहानियां पहुंच चुकी है।
भाजपा अपना चुनाव मुद्दों पर लड़ती है। ’19 का चुनाव लड़ने के लिए भाजपा के पास अनुच्छेद 370 हटाने का मुद्दा था, यदि पुलवामा नहीं हुआ होता तो। ’24 के लिए भी पर्याप्त मुद्दे पहले से तय हैं। मुद्दों की इस आंधी में राहुल गांधी की सदस्यता वापसी भी कोई विषय है, उस वक्त के प्राइमटाइम को सोचना पड़ेगा।
दूसरी बात कि राहुल गांधी की नागरिकता मोदी वाली भाजपा का एक रोचक चैप्टर है। सुब्रमण्यम स्वामी ने राहुल गांधी की नागरिकता रद्द करने के लिए पर्याप्त कागजात तत्कालीन गृहमंत्री राजनाथ सिंह को उपलब्ध करा दिया था। राजनाथ सिंह जी ने नोटिस भी किया। राहुल गांधी की तरफ से आज तक जवाब नहीं आया है। भले राहुल गांधी की सांसदी वापस हो जाए, नागरिकता ही खत्म हो जाएगी तो न्यायपालिका कहां तक थाम सकती है। नागरिकता को लेकर अंतिम फैसले गृह मंत्रालय लेता है। अमित शाह फैसले लें ना लें, कम से कम समीक्षा ही कर दें तो यह मुद्दा ’24 के तमाम कांग्रेसी एजेंडों को इंगेज कर सकता है। ‘किसी से नहीं डरता’ वाली सारी चतुराई राहुल गांधी जी की धरी की धरी रह जाएगी।
साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार है)