Positive India:Vishal Jha:
आचार्य धीरेंद्र शास्त्री बिल्कुल युवा आयु के हैं। एक कथावाचक संत के लिए यह आयु तप एवं उपासना के लिए एक संघर्ष काल होता है। मुरारी बापू ने भी युवानी में राम मंदिर संघर्ष यात्रा में सक्रिय भूमिका निभाई थी। आयु के साथ यश और कीर्ति बढ़ती जाती है। फिर एक वक्त आता है, देखा गया है जब कानून ‘अपना काम’ करता है और वर्षों जेल की सजा काटनी होती है। आचरण पर प्रश्न चिह्न से तमाम यश और कीर्ति विस्थापित हो जाते हैं। और बची खुची उम्र समाप्त हो जाती हैं।
सत्ता के प्रभाव से महाराष्ट्र पुलिस ने आचार्य धीरेंद्र शास्त्री जी के खिलाफ एफआईआर लॉज नहीं किया। अन्यथा एफआईआर होते ही गिरफ्तारी का प्रावधान, हाल ही में विधानसभा से पारित हुए अंधविश्वास नियंत्रण कानून के अनुसार है। धीरेन्द्र शास्त्री जी का आध्यात्मिक जीवन अपने युवा काल में ही समाप्त हो जाएगा, ऐसा बिल्कुल एक चिंताजनक प्रश्न है। किंतु इसका उत्तर बहुत ही साधारण है।
संतों के खिलाफ आज तक हुई कार्रवाई को तीन स्तरों में बांट कर देखा जा सकता है। पहला, व्यक्तिगत आचरण के कारण कार्रवाई। दूसरा, संत द्वारा खड़ी की गई किसी मूर्त अमूर्त संस्था के कारण कार्रवाई। तीसरा, संत की विचारधारा के कारण कार्रवाई। आचरण के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई वाले मामले एक-दो दिन के लिए खबर बनते हैं। बात खत्म हो जाती है। दूसरे स्तर की कार्रवाई थोड़ी भयानक होती है, जब मामला व्यक्तिगत ना होकर एक संस्था के विरुद्ध होता है। जैसे आसाराम बापू लगातार ईसाई मिशनरियों के खिलाफ काम करते थे। कानून ने ‘अपना काम’ किया और आज भी बिना चार्जशीट के आसाराम बापू जेल में हैं। ऐसी घटना संत के एक परिपक्व आयु में आकर ही घटित होती है। तीसरे स्तर की कार्रवाई एकदम संवेदनशील होती है। यह संत को परिपक्व आयु तक पहुंचने का अवसर भी नहीं देती। इसमें संत पर कोई व्यक्तिगत अथवा संस्थागत आक्षेप नहीं लगता। विचारधारा से विचारधारा टकराती है।
अंधश्रद्धा उन्मूलन संस्था की चुनौती तो कोई प्रश्न है ही नहीं? बागेश्वर धाम का अगला दरबार जहां भी लगेगा, संस्था वाले चाहे तो अपना जूरिडिक्शन फैला कर वहाँ जा सकते हैं। छत्तीसगढ़ अगला कार्यक्रम है। इत्तेफाक से राज्य भी कांग्रेसी है। वहां उनकी गिरफ्तारी भी आसान हो जाएगी। पर प्रश्न है बागेश्वर धाम के आचार्य धीरेन्द्र शास्त्री कब तक बचेंगे? वैचारिक टकड़ाहट बहुत ही खतरनाक होती है। धाम की शक्ति की भी अपनी मर्यादा है। बौद्धिक वर्ग तो धाम की शक्ति को मनोवैज्ञानिक उपकरण का कपटपूर्ण प्रदर्शन मानकर पहले ही किनारे हो चुका है। मनोवैज्ञानिक शक्ति प्रदर्शन के लिए जितना बुद्धि विलास होना चाहिए, मुझे नहीं लगता शास्त्री जी के पास उतना बौद्धिक विलास है। वे ठीक से लिखना भी नहीं जानते। फिर धीरेंद्र शास्त्री कैसे एक मनोवैज्ञानिक हो सकते हैं, जिन्हें बौद्धिक सजावट से अपनी बात कहने ना आती हो?
धीरेंद्र शास्त्री जी को लेकर दिव्य दरबार के प्रदर्शन के बारे में मनोविज्ञान की बात करना निश्चित तौर पर बेवकूफाना है। चमत्कारिक शक्तियां है अथवा नहीं ऐसा निश्चित निर्णय से कहा जाए, एक साधारण प्रेक्षक के लिए कहना संभव नहीं। लेकिन तंत्र विद्या से सिद्धि प्राप्त करके तांत्रिक शक्तियां प्राप्त की जा सकती है, ऐसा समझना कौन सा मुश्किल काम है। हां इन शक्तियों पर नियंत्रण बना रहे और साधक का मानसिक संतुलन भी बना रहे यह एक चुनौती होती है। अगर शक्ति सकारात्मक है तो किसी देवी या देवताओं के दरबार की मर्यादा का पालन करके ऐसा सहज रूप से कर सकते हैं। लेकिन जहां शक्ति नकारात्मक हो वहां साधक स्वयं नष्ट हो जाता है। धीरेंद्र शास्त्री जी सकारात्मक शक्तियों के साथ हनुमान जी के दरबार की मर्यादा से आते हैं। इसलिए धीरेंद्र शास्त्री जी को लेकर मेरे मन में किसी भी प्रकार का कोई संशय नहीं। मैं उनके साथ खड़ा हूं।
साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार है)