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रवीश कुमार ने ऐसा क्यों कहा कि वे वह चिड़िया है जिसका घोंसला लेकर कोई और उड़ गया?

-विशाल झा की कलम से-

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Positive India:Vishal Jha:
रवीश कुमार ने कहा, मैं वह चिड़िया हूं जिसका घोंसला लेकर कोई और उड़ गया। इस बयान में वही अहंकार आज भी मौजूद है, जिसके कारण रवीश कुमार आज यहां तक चले आए। क्या रवीश कुमार बताएंगे कि यह घोंसला किसका था? चिड़ियां अपना घोंसला स्वयं बनाते हैं। भारे के घोसले में नहीं रहते। पुरुषार्थ करते हैं। क्या चिड़ियों की तरह रवीश कुमार ने अपना घोंसला स्वयं बनाया था? और कोई दूसरा लेकर उड़ गया? झूठ और मक्कारी की यही मानसिकता ने रवीश कुमार को अंधविरोधी बनाया।

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प्रणय राय के घोंसले में रवीश कुमार को संरक्षण मिला। प्रणय राय के घोसले ऋण की उन शर्तों पर बनाई गई थी, जिसमें ऋण न चुकाने पर राय का घोसले पर स्वामित्व नहीं रह जाएगा। राय ऋण चुकाने में विफल रहे और अंततः घोंसले पर से स्वामित्व छोड़ना पड़ा। इसमें कौन सी बड़ी बात है? खुली कॉलर में बिना टाई के सूट पहनकर हर शाम प्राइमटाइम करने का इतना ही शौक है तो कम से कम घोंसला अपना बना लो। कौन रोकता है? इसके लिए भी दूसरे का घोंसला चाहिए। और वह भी जबरदस्ती। क्या जमीर झकझोरता नहीं? इससे अच्छा तो टिक टॉक बनाने वाले शार्ट वीडियो क्रिएटर हैं। कम से कम उनके पास आत्मस्वाभिमान तो होता है।

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जीरो टीआरपी एंकर का तमगा ढ़ोते रवीश कुमार को बहुत गर्व हो रहा था। लेकिन क्या जीरो टीआरपी एंकर का तमगा ढ़ोना इतना आसान है? अपना जमीर बेच कर कोई जीरो टीआरपी एंकर नहीं रह सकता। जीरो टीआरपी एंकर होने के लिए भी पुरुषार्थ करना पड़ता है। तमाम चैनलों की टीआरपी के लिस्ट में एनडीटीवी को देखें तो सबसे निचले स्तर पर पहुंच चुका था। एकदम मनहूस मृत सा हो गया था एनडीटीवी। क्यों ऐसा हुआ? दर्शकों का तो भर भर कर आभार प्रकट कर रहे हैं। रविश कुमार जब दर्शकों की कमी ही नहीं थी तो एनडीटीवी अपना ऋण क्यों नहीं उतार सका? दूसरों के हक के घोसले में बैठकर जीरो टीआरपी एंकर होने का तमगा पहनने में शर्म और घृणा होनी चाहिए थी।

वास्तविकता तो यह है कि दर्शक जनता थोड़ी सी जाग चुकी है। अर्बन नक्सलियों को थोड़ी सी पहचान चुकी है। दर्शकों ने एनडीटीवी को बिल्कुल नकार दिया था। एनडीटीवी की उत्पादकता शून्य हो चुकी थी। एनडीटीवी निर्जीव हो चुका था। यह एक से एक एजेंडावाद पत्रकारों की बिषैले एजेंडे का परिणाम था। कुछ लोग यदि एनडीटीवी को देखते भी थे तो सिर्फ यह देखने के लिए कि एनडीटीवी का नैतिक पतन कितना हुआ है। आज भी अभी यूट्यूब पर लोग रवीश कुमार को देखने जाते हैं, तो केवल यह देखने के लिए कि रवीश कुमार अपनी निर्लज्जता को कितनी कलात्मकता से परोसते हैं। वामपंथियों का कितना पतन हुआ है। ऐसे ही व्यूज़ को रवीश कुमार कहते हैं कि यह हमारे दर्शकों का प्यार है, हमारी दौलत है।

साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार है)

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