बार-बार बुलेट ट्रेन के आगे कोयले का इंजन खड़ा कर देने का क्या तुक ?
-दयानंद पांडेय की कलम से-
Positive India:Dayanand Pandey:
हरदम विभाजन विभीषिका के दहन में दहकता गुड बात नहीं। जश्न-ए-आज़ादी पर नफ़रतों के तीर-तलवार की नहीं मिठास और हंसी-ख़ुशी की ज़रुरत है। लेकिन असहमति इस क़दर नफ़रत में तब्दील है कि वह आज भी सिर्फ़ नेहरु को ही प्रधानमंत्री मानते हैं। यहां तक तो फिर भी ठीक है। पर 75 वीं सालगिरह पर डिजिटल इंडिया के प्रणेता के सामने आधुनिक भारत के निर्माता को बारंबार खड़ा कर देते हैं।
यह कौन सी खीझ है भला ? कौन सा जहर है भला ?
बुलेट ट्रेन के आगे कोयले वाला इंजन खड़ा कर देते हैं। यह गुड बात तो नहीं ही है। हैरिटेज कार रैली तो है नहीं। जश्न-ए-आज़ादी है। तो इस तरह आधुनिक भारत के निर्माता को खड़ा कर अपमानित करने से बचना चाहिए नफ़रत के तीर चलाने वाले बेदम हुए योद्धाओं को। सेक्यूलरिज्म की तो ऐसी-तैसी होती ही है , नेहरु की भी हो जाती है। सच को स्वीकार कर लेना चाहिए। कि नेहरु ज़रुर पहले प्रधानमंत्री थे , पर आज नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री हैं। ब्लैक एंड ह्वाइट की अपनी ब्यूटी है , कलर की अपनी व्यूटी है। दोनों की अपनी-अपनी अदा है।
आज के दिन नेहरु को यादों में रख कर , मोदी से ही काम चलाना होगा यही हक़ीक़त है। आज़ादी के 75 वें सालगिरह पर मुंगेरीलाल के हसीन सपने देखना सरासर पाप है। अपराध है। जनता जनार्दन आप की इस घृणा को लगातार दर्ज कर रही है। समय रहते यह बात समझ लेने की है। सो आज की दुनिया और आज के दिन में लौटो बंधु ! दिन को रात कहने की बीमारी को त्याग दो। नहीं आज के डिजिटल बच्चे बहुत शरारती हैं। समझ रहे हो न बंधु !
नेहरु हमारी विरासत हैं , शान हैं , नरेंद्र मोदी जीता-जगता सच ! शानदार सच। सपने बुरे नहीं होते पर सच भी सुंदर होता है। सपना भी सुंदर , सच भी सुंदर। कभी ऐसे भी देख कर देखिए। बात फिर दुहरा दूं कि हरदम विभाजन विभीषिका के दहन में दहकना गुड बात नहीं। नफ़रत के तीर त्याग कर असहमति की पतवार चलाते रहिए , कोई हर्ज़ नहीं। बस देश की नाव चलती रहनी चाहिए। तरक़्क़ी की नदी में यह नाव बहती रहनी चाहिए।
साभार:दयानंद पांडेय-(ये लेखक के अपने विचार हैं)