क्या है मिस यूनिवर्स अर्थात ब्रह्मांड सुंदरी का संपूर्ण विश्लेषण ?
-विशाल झा की कलम से-
Positive India:Vishal Jha:
मिस यूनिवर्स अर्थात ब्रह्मांड सुंदरी।
ब्रह्मांड की सबसे सुंदर हसीना कहिए। ऑर्गेनाइजेशन मिस यूनिवर्स ने ब्रह्मांड की सबसे सुंदर हसीना को विश्व की लगभग चार अरब महिलाओं में से छांट कर निकाल लिया है। इस संगठन ने ये नहीं बताया कि अब इस सुंदरी का करना क्या है? क्या इसका अर्थ ये होता है कि ब्रम्हांड के सत्य से इस सुंदरी का साक्षात्कार हो गया है? बिल्कुल पूछना चाहिए ऐसा। क्योंकि सुंदरत्व का सबसे निकटतम संबंध सत्य से ही है। और सत्य मतलब? स्वयं शिव से कम क्या? सत्यम् शिवम् सुंदरम्!
लेकिन ना! पहले सुंदरता की कसौटी तो देख लीजिए। यह तो तय होता है मुख की ज्यामिति और फिगर के साइज से। इस प्रपंच का आंतरिक सुंदरता से कहां लेना देना? लेकिन बाद में चलकर इस घृणात्मक पैमाने को थोड़ा मानवीय दिखाने के लिए व्यक्तित्व, बुद्धिमत्ता, आचरण आदि जैसे मानदंड इसमें जोड़ दिए गए। ये सारे मानदंड निजी इंटरव्यूज के आधार पर इवेलुएट किए जाते हैं। बाद में मंच से उत्तर उच्चार करा दिए जाते हैं। लेकिन असल तो मूल होता है।
मूल तो जुड़ा है अमेरिका के अटलांटिक सिटी से। तटीय शहर है। संसाधन के नाम पर प्राकृतिक कुछ भी नहीं। इंटरटेनमेंट सिटी कहते हैं इसको। कसिनोज हैं। बीचेज हैं। लेकिन विगत सदी 20 के दशक में जब यहां पर टूरिस्ट्स को लुभाने के लिए कुछ भी ना था, तब कुछ स्थानीय व्यापारियों के द्वारा पर्यटकों को लुभाने के लिए एक ब्यूटी पेजेंट का आयोजन किया गया।
पेजेंट मतलब मेला। जहां हम अपनी जरूरत की चीजें खरीदने नहीं जाते। बल्कि आकर्षित होकर जाते हैं और आकर्षक वस्तुएं खरीदते हैं। तो यहां बाजार लगाया गया सुंदरियों का। 1921 में। नाम दिया गया ‘मिस अमेरिका’। 1 लाख लोग इस आयोजन में जुटे। एक ऐसा शहर जिसकी जनसंख्या आज भी 40,000 से कम है।
जीतकर आई 16 बरस की मार्गरेट गोर्मन। खिताब क्या दिया गया ‘द मोस्ट ब्यूटीफुल बाथिंग गर्ल इन अमेरिका’। श्री सीताराम! महज $100 का अवार्ड देकर मार्गरेट की सुंदरता का बाजार प्राइस पेमेंट के साथ संपन्न हुआ। गोर्मन आगे भी खिताब जीतती चली गई। 1995 में उसका निधन हो गया। लेकिन वह अपनी भौतिक सुंदरता का दर्शन जो कह गई, इतिहास उसे निगल नहीं सकता। वह कहीं कि उसे कभी मिस अमेरिका नहीं बनना था। उसे बहुत उबाउ लगा सब कुछ। यह सब वह भूल जाना चाहती थी।
लेकिन मिस अमेरिका की लोकप्रियता से इंटरटेनमेंट का बाजार रंगत में आ चुका था। ब्यूटी पेजेंट को ब्यूटी कंटेस्ट के नाम पर व्यापार भुनाने की लहर उठ चली। ऐसे चार और पेजेंट संगठन तैयार किए गए। 1951 में मिस वर्ल्ड। 1952 में मिस यूनिवर्स। मिस यूनिवर्स का फाउंडेशन किया गया कैलिफोर्निया के कपड़ा कंपनी पेसिफिक मिल्स के द्वारा। पेसिफिक मिल्स अंडरवियर बनाने वाली 1960 की स्थापित कंपनी बैंट्ज नीटिंग थी। 1928 में इसका नाम बदलकर केटैलिना कर दिया गया। स्विमवीयर और बिकनी बनाती है। 1956 में संगठन मिस यूनिवर्स ने पहला मेला कराया। आज उत्तरी अमेरिका की यह कंपनी दक्षिण अमेरिका के ब्राजील में मैन्युफैक्चरर केंद्र स्थापित कर चुकी है। साथ ही दक्षिण अमेरिका की कई देश अर्जेंटीना, ब्राज़ील, पूरुग्वे और उरुग्वे आदि में इसका अच्छा व्यापार चल रहा है।
बाजार को तो ऐसे आयोजनों ने तो बहुत कुछ दिया। लेकिन किस कीमत पर? एक स्त्री को समझाने में यह पूरी तरह सफल है कि सुंदरता ही उसका सत्य है। सुंदरता ही उसकी सीमा है। स्त्री का असल स्त्रीत्व छीनकर कुंठा हाथ धरा दिया है इस घिनौने बाजारवाद ने। ऐसा नहीं है कि पश्चिम के पोप ने विरोध नहीं किया था। आंदोलन चलाया था 50 वर्ष हो गए। नाम था आंदोलन का ‘कैट्ल ऑक्शन’। लेकिन लोकसमाज में कुरीतियां आंदोलनों से कहां रुकने वाली। इसके लिए तो सक्षम उपकरण है लोकाचार। जो कि केवल भारतीय संस्कृति में है। लेकिन हमारी भी हरनाज कौर संधू तो हो आई इजराइल से। गर्व है उसपर भारत को।
साभार-विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार हैं)