मनोज मुंतशिर को यदि हम वामपंथी ही मान लें तो उन्हें क्या फर्क पड़ता है?
-विशाल झा की कलम से-
Positive India:Vishal Jha:
मनोज मुंतशिर को यदि हम वामपंथी ही मान लें तो उन्हें क्या फर्क पड़ता है? तरुणाई चढ़ते ही जैसे वामपंथी हो जाना पश्चिमी बौद्धिकता का सूत्र है, मनोज मुंतशिर(Manoj Muntashir) भी इससे गुजरे हैं। अपने नाम के आस्पद में शुक्ला हटाकर मुंतशिर हो गए थे। इस घटना के पीछे उनका कोई वैचारिक जिद नहीं था; क्योंकि वामपंथ की शुरुआत बड़े इनोसेंस में होती है। मनोज मुंतशिर ने श्रम किया और बिना किसी गॉडफादर के आज जिस मंच पर पहुंचे हैं, एक बात तो कोई भी बड़ी मजबूती से कह सकता है एक सफल मंच पर पहुंचकर कोई वामपंथी घर वापसी कर ले, ऐसा असंभव है।
मनोज मुंतशिर वामपंथी रहते हुए अपने मुकाम हासिल किए हैं और एक सफल व्यक्तित्व लेकर कोई घर वापसी करता है, वो भी बॉलीवुड में रहकर, मैं कह सकता हूं कोई दिलेर ही ऐसा फैसला कर सकता है। यह जानते हुए कि मुगलों को उनकी औकात दिखाने वालों के लिए बॉलीवुड में कोई जगह नहीं है। लेकिन वक्त बदला। देश में जागृति हुई। और मनोज मुंतशिर सोनी टेलीविजन के महीन नैरिटिव वाले मंचों पर मुगलों की बखिया उधेड़ से नजर आए। अब बॉलीवुड मनोज मुंतशिर के इस छवि को बेचना चाहता है। अथवा शिकार करना चाहता है।
मनोज मुंतशिर शुक्ला डायलॉग के शख्सियत हैं। आदिपुरुष में इन्होंने काम किया है। टीजर में जो कुछ भी आया है, गेटअप से लेकर किरदार की झलक तक, मनोज की इसमें कोई भूमिका नहीं। संभव है डायलॉग जब निकल कर आएंगे हमें अवश्य लगेगा आदिपुरुष में मनोज मुंतशिर बोल रहे हैं। और यदि कोई फिल्म मनोज मुंतशिर से डायलॉग लेना चाहता है, लिखवाना चाहता है, तो मेरी राय में उन्हें अवश्य यह काम करना चाहिए। जब तक उत्तर प्रदेश में भारतीय वर्जन की अपनी फिल्म इंडस्ट्री नहीं हो जाती, मनोज जैसे फिल्म कार्यकर्ताओं के लिए वैचारिक संघर्ष का मसला बनता है।
घर वापस आए अपने लोगों की सुरक्षा करना, उन्हें काम देना हमारी जिम्मेदारी है। जब कभी कोई सामाजिक वैचारिक संक्रमण होता है, उस वक्त जवाबदेही से तो दोनों पक्षों को गुजड़ना पड़ता है। लेकिन मुझे अफसोस है कि लोग एकतरफा मनोज मुंतशिर को नकार रहे हैं। क्या ऐसे में घर वापसी के लिए आगे से कोई हिम्मत करेगा? मनोज हमारे अपने लोग हैं। आदिपुरुष पर तीखी आलोचना करते हुए भी हम मनोज मुंतशिर को तिरस्कृत नहीं करेंगे।
मनोज मुंतशिर यदि आगे आकर आदिपुरुष(Adipurush) की वकालत भी करते हैं, तो मुझे लगता है अब लोग इतने परिपक्व अवश्य हो गए हैं कि फिल्म की प्रकृति और कृत्रिम वकालत की दूरी को समझ लेंगे। फिल्म इंडस्ट्री के फिलहाल दोनों हाथ में लड्डू है। या तो मनोज मुंतशिर के वकालत से आदि पुरुष चल जाएगी अथवा मनोज मुंतशिर को इसी बहाने निपटा दिया जाएगा। यहां पर हमारी समझदारी की खासा आवश्यकता है। मनोज मुंतशिर को डायलॉग लिखने के अपने काम के पैसे मिल चुके होंगे अथवा मिल जाएंगे। हम फिल्म की खुलकर आलोचना कर सकते हैं, इससे मनोज जी को कोई आपत्ति नहीं हो सकती।
साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार है)