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हम भारत के लोग!

-सर्वेश कुमार तिवारी की कलम से-

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Positive India : Sarvesh Kumar Tiwari:
एक बलिदानी का परिवार है, जिसमें सास और बहू के बीच में कोई असहमति सी दिखी है। बस हमारे लिए इतना ही बहाना काफी है, हम अपने ही बीच में दो खेमा बना कर लड़ पड़े हैं। हम अपनी बात मनवाने के चक्कर में यह बात भूल गए हैं कि वह एक बलिदानी सैनिक का परिवार है। उन्हें हमारी ओर से तनिक सम्मान भी मिलना चाहिये।

सोच कर देखिये, जितना विवाद उस सास- बहू में दिख रहा है उतना किस घर में नहीं दिखता? हर मुहल्ले में दर्जनों ऐसी बहुएं मिलेंगी जो मायके जाती हैं तो अपनी अलमारी, बॉक्स और कमरे तक में ताला लगा कर जाती हैं, कि सास कुछ निकाल न ले। और उसी मुहल्ले में दर्जनों सास ऐसी होती है जो बहु के गहने तक अपनी अलमारी में रखती हैं। यह इस देश के लिए कोई नई बात है क्या?

विपत्ति बदहवासी ले कर आती है। दुर्भाग्य का मारा व्यक्ति उस बदहवासी में अपने ही लोगों के विरुद्ध बोलने लगता है। तो क्या ऐसी ही किसी एक बात की पूंछ पकड़ कर एक बलिदानी की विधवा और माता का सोशल मीडिया ट्रायल कर दें?

अभी चार दिन पहले तक उस सैनिक की पत्नी को सोशल मीडिया पर इसी देश के एक सम्प्रदाय के लोग गन्दी गन्दी गालियां दे रहे थे। तब हमें और आपको इससे कोई मतलब नहीं था। हम उन नीच लोगों का बाल भी बांका नहीं कर सके, पर आज यह बताने के लिए मरे जा रहे हैं कि सास बहू में पैसे किस आधार पर बांटे जाँय।

यूपी में शिक्षकों का कोई एकदिवसीय आंदोलन था। वे लोग, जिनके बच्चे सरकारी विद्यालयों में नहीं पढ़ते, ना ही उनके परिवार का कोई व्यक्ति इस पेशे से जुड़ा है, वे भी शिक्षकों को गाली दिए जा रहे हैं। एक जिम्मेवार नागरिक की तरह कभी पड़ोस के सरकारी विद्यालय में जा कर उन्होंने व्यवस्था देखने या सुधारने का प्रयास नहीं किया होगा। सरकार ग्रामीणों से बीस साल से कह रही है कि सरकारी स्कूल में जा कर मध्याह्न भोजन चखें, उसकी गुणवत्ता की जांच करें, शिक्षा व्यवस्था देखें, पर उसके लिए किसी के पास समय नहीं। हां, मौका मिलते ही गाली देने को तैयार खड़े हैं।

मैं शिक्षक होने के नाते बता रहा हूँ। यदि पूरी तरह से अस्त-व्यस्त ध्वस्त विद्यालय को भी ठीक कर देना हो, तो गाँव के चार लोग बस सप्ताह में एक बार विद्यालय का निरीक्षण कर लें। यकीन कीजिये, महीने दिन में विद्यालय में सबकुछ ठीक हो जाएगा। यदि गाँव के दो लोग भी विद्यालय की समस्याओं को लेकर प्रखंड या जिला शिक्षा पदाधिकारी को फोन भर कर लें, तो हर दिक्कत दूर हो जाएगी। पर इतना करने का समय किसी के पास नहीं। हाँ फेसबुक पर ज्ञान अवश्य देना है।

उधर अम्बानी के यहाँ विवाह का कार्यक्रम चल रहा है। पैसा उसका, लोग उसके, कार्यक्रम उसका, पर जल हम रहे हैं। हमें दिक्कत होने लगी है उनसे… हजारों लोग सोशल मीडिया में गाली देने लगे हैं। क्यों भाई? वह दस साल तक भी जश्न मनाए तो हमारा क्या नुकसान होने वाला है? पारंपरिक तरीकों को याद करें तो एक सामान्य व्यक्ति की शादी में भी बरच्छा, देखौकी, रिंग सेरेमनी, तिलक, आदि के बहाने दर्जनों आयोजन होते हैं। और हर व्यक्ति अपनी औकात के अनुसार जलसा भी लगाता है। अब यदि आप अपने पच्चीस हजार की तनख्वाह वाले लड़के की शादी में नचनिया नचवा कर छाती चौड़ी कर सकते हैं, फिर वह तो अम्बानी है।

जिनकी बात उनके गाँव-मुहल्ले में कोई नहीं सुनता, बल्कि उनके परिवार तक में कोई नहीं सुनता, वे भी गालियों की दम्बूक ताने खड़े हैं कि हमारी बात मानो! हम जो कह दिए हैं वही सत्य है।
यही हम हैं, हम भारत के लोग। यही हमारा बौद्धिक स्तर है।

साभार:सर्वेश तिवारी श्रीमुख-(ये लेखक के अपने विचार हैं)
गोपालगंज, बिहार।

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