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हम सौ साल तक भारत से जंग नहीं चाहते – पाकिस्तान

-राजकमल गोस्वामी की कलम से-

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Positive India: Rajkamal Goswami:
भाई सौ साल बाद भी क्यों जंग करना चाहते हैं ? सौ साल तो दुनिया के इतिहास में कुछ भी नहीं होते । महमूद ग़ज़नवी का आख़री हमला सन १०२७ ई में हुआ था उसके १६४ साल बाद मुहम्मद ग़ोरी ने ११९१ में फिर हमला किया । इस्लाम ने भारत के कमज़ोर होने का और आपसी फूट पड़ने का इंतज़ार किया ।

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इस्लाम का लक्ष्य पूरी दुनिया को इस्लामी झंडे के नीचे लाना है । ग़ज़वा ए हिंद उनकी हदीसों में दर्ज है । सौ बरस का इंतज़ार कर लेंगे वह । एक ईमानदार बयान तो यही होना चाहिये कि हम भारत से जंग नहीं चाहते । मगर यह कहने के बाद वह उन लाखों मुजाहिदों को कैसे समझा पायेंगे जो भारत के ख़िलाफ़ जिहाद के लिये मदरसों में तैयार किये जा रहे हैं । वह एक रणनीति के तहत भारत से सौ नहीं हॹार बरस तक जंग टाल तो सकते हैं पर इरादा तर्क नहीं कर सकते ।

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७१२ में अरबों की सिंध विजय के बाद ३०० साल तक भारत में गुर्जर प्रतिहार जैसा सशक्त राजवंश सत्ता में था तो उन्होंने कोई हमला नहीं किया । आप कितने भी ताकतवर हों कभी न कभी तो कमज़ोर पड़ेंगे ही और उन्हें उसी एक कमज़ोर क्षण का इंतज़ार है । उस एक कमज़ोर क्षण में वो आपको नेस्तो नाबूद कर देंगे और दुबारा उठने का अवसर नहीं देंगे । उस एक हमले में वह आपके अंदर इतने लोगों को मार मार कर मुसलमान बना देंगे फिर आपकी अगली पीढ़ियाँ अपने कन्नर्टेड मुसलमानों से ही लड़ती रहेंगी ।

पृथ्वीराज चौहान और लक्ष्मण सेन कोई अकेले उदाहरण नहीं हैं । विजयनगर का वैभवशाली हिंदू साम्राज्य ३०० साल तक फलता फूलता रहा । इस बीच उसने पड़ोसी बहमनी सुल्तानों को कई बार हराया । कृष्णदेव राय जैसा महान राजा हुआ । लेकिन केवल एक बार सन १५६४ में तालीकोट के युद्ध में विजयनगर पराजित हुआ और बहमनी सुल्तान ने रणभूमि में ही रामराजा का सिर काट लिया । उसके बाद विजयनगर का विशाल नगर खंडहरों में बदल गया । कर्नाटक में हाम्पी में वे खंडहर आज भी देखे जा सकते हैं ।

वह मचान पर बंदूक लिये बैठे हैं आप होंगे जंगल के शेर वह आपको सर्कस का शेर बनाने का इरादा ठान कर बैठे हैं आप भले ही स्वयमेव मृगेंद्रता के दर्प में चूर हों ।

शत्रु और रोग दोनों को जन्मकुंडली में एक ही कोष्ठक आवंटित किया गया है । शत्रु और रोग को जड़ मूल से नष्ट न करने वाला स्वयं नष्ट हो जाता है ।

रथ के पहिये को संभालते हुए कर्ण का प्रस्ताव उसकी घातक प्रवृत्ति का परित्याग नहीं है । पुन: रथारूढ़ होने तक की अवधि चाहता है वह । अर्जुन की तरह मोह में पड़ने की आवश्यकता नहीं हैं । हृषीकेश बार बार कर्तव्यबोध कराने नहीं आयेंगे ।

साभार:राजकमल गोस्वामी-(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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