कोरोना की ओट मे छिपे गिद्ध भारत मे अफरा तफरी मचाना चाह रहें हैं
टूलकिट गैंग न केवल सक्रिय है वरन् देश को आग में झोंकने के लिए आतुर भी है।
Positive India:Ajit Singh:
कोरोना की ओट मे छिपे गिद्ध भारत मे अफरा तफरी मचाना चाह रहें हैं.. एक ही पोस्ट को…उन्होने एक जैसी शब्दावली मे ट्विटर,फेसबुक और अन्य सोशल मीडिया के प्लेटफार्म पर परोस करके उन्होने साफ सबूत दे दिया है कि अभी भी टूलकिट गैंग न केवल सक्रिय है वरन् अपने मदारी आकाओं के फेंके रूपयों पर आग लगा देने के लिये आतुर दो कौड़ी के लाखों बदजात दोगले….जो फेक ID बना कर जबरदस्त तरीके से जनता को भयाक्रांत करके किसी भी तरह से मोदी और जनमानस के बीच बने विश्वास के पुल को तोड़ना चाहते हैं………….चीन के अहंकार और घमंड को तोड़ने वाली मोदी सरकार को वही संकर नस्ल वाली प्रजाति बिल्कुल बर्दाश्त नही कर पा रही है जो आज तक चीन और पाक के खुरों को चाट कर अपने को भारत रत्न देते रहे…….या फिर जिनके नथुनो मे माओ,चेग्वेरा और लेनिन के अंडरवियर की गंध बसी है…..वही इस बॉयोलॉजिकल वॉर को डिफेंड करने के लिये जनता का ध्यान भटकाने के लिये बार बार ऑक्सीजन,वैक्सीन और रेडमीसीवर को लेकर छाती पीट रहें हैं….बाकी आप जरा ठंड़े दिमाग से सोचियेगा तो साफ हो जायेगा कि ऐसी भयावह स्थिति भारत के अडोस पड़ोस मे क्यों नही हो रही है….जाने दीजिये…कहना तो बहुत कुछ चाहता हूं लेकिन मै जानता हूं कि कहने लगूंगा तो अपने बीच ही छिप कर बैठे आत्ममुग्ध बिन पेंदी के लोटाओं जैसे बहुतों को अपच हो जायेगी….वो कुतर्क करने की उल्टियां करने लगेंगे………………….बहरहाल विषयांतर तो नही कहूंगा लेकिन कुछ दूसरे तरह से उसी मुद्दो आगे बढ़ाता हूं..!!
मैं जानता हूँ राष्ट्रवादियों का बड़ा वर्ग पिछले कुछ समय की घटनाओ से न सिर्फ उद्वेलित है बल्कि हताशा के चक्रव्यूह में फंसा महसूस कर रहा है..बेचैन भी है…ऐसी विशेष परिस्थितियां तो पिछले सात साल से बनाई जा रही हैं…अब तक तो अभ्यस्त हो जाना चाहिये..खैर..!
अब क्योंकि मेरे और आप में देखने का दृष्टिकोण अलग है इस लिए मैं यह आपकी एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया मानता हूं कि आपका अधीर होकर उद्वेलित हो जाना सामान्य मानव दर्शन के अनुरूप ही है….होना भी चाहिये…लेकिन पता नही क्यों आप भूल जाते हैं कि आप सनातन की वो एक शाखा हैं,जिस वृक्ष पर जाने कितने विधर्मी लकड़हारों ने आघात किया…लेकिन अपने धैर्य,अपनी संस्कृति,अपने संस्कार और अपने पुरखों के ज्ञान और उनके पराक्रम को पीढ़ी दर पीढ़ी सुन कर आप आज भी हिंदू के रूप मे न केवल जीवित है बल्कि अपनी अस्मिता और अपने राष्ट्र की अखंडता को अक्षुण्ण रखने के लिये कटिबद्ध हैं………..!!!
दरअसल आपके अंदर पैदा किये गये सहिष्णुता के वॉयरस के कारण ही (ऐसा मेरा मानना है) आप १५ अगस्त १९४७ से भारत को स्वतंत्र मानते है,इसलिए पिछले ७१ साल की विवशता और छटपटाहट जहां आपको व्यग्र कर दे रही है,वहीं मैं अपने आपको १६ मई २०१४ को स्वतंत्र हुआ मानता हूँ। यह बीते ७ वर्ष मुझे वह दिखा रहे है…..जिसे पहले जानते कुछ ही लोग थे लेकिन अब पूरा भारत भी देख रहा है और दुनिया भी देख रही है…यही उत्तरोत्तर विकास देशी विदेशी,मोदी की आड़ मे छिपी भारत विरोधी ताकतें बर्दाश्त नही कर पा रही हैं….!!!
दरअसल १५ अगस्त १९४७ को अग्रेंजो ने दिल्ली की गद्दी भारत के असली भारतीयों को नही दी थी बल्कि उन्होने जान बूझ कर अपने सर्वश्रेष्ठ गुलामो को सत्ता चाभी दी थी……….जिस गुलाम प्रजाति के संरक्षण और परवरिश के लिए अंग्रेजो ने कांग्रेस नाम की नर्सरी १८८५ मे विकसित की थी उसी में से अंग्रेजो के जान, माल और राष्ट्रमण्डल के रसूख को सुरक्षित रखने के लिए हमारे देश को खंण्डित करके कट्टिबद्ध कश्मीरी गुलाम परिवार मे से एक को भारत और दूसरे को पाकिस्तान की अपनी गद्दी सौंपी थी..!
आप मेरी बात को अतिश्योक्ति मत समझियेगा……भारत में गुलामो को सत्ता पहले भी दी गयी है…और गुलामो ने हमेशा से सत्ता का दुरूपयोग किया…ये मैं नही बल्कि इतिहास कह रहा है….जरा किताबों को कभी पलट कर देखिये तो सही….भारत रतन को लूटने वाले जाने कितने चेहरे नंगे हो जायेंगे…उनकी पृष्ठभूमि को जानने के बाद आपको उनसे नफरत हो जायेगी….आज भले ही कुर्सी से दुत्कारे जाने के बाद रिरिया रहें है,लेकिन उनकी नसों मे बहता म्लेच्छों और अंग्रेजों का खून अपना दोगलापन दिखाने मे बिल्कुल पीछे नही है….न भरोसा हो तो १० लथपथ की फिरंगन के साथ उसके संपोलो और उसके बिलों मे पैदा होकर पले बढ़े लुटियन रेपटाइल्स की सोच,मानसिकता और उनकी हरकतों को कोरोना जैसी महामारी के काल मे देख लीजिये…सब कुछ समझ मे आ जायेगा कि अंग्रेजों के गुलाम ये लोग कोरोना से भी कहीं ज्यादा घातक हैं..और ताकत का कितना दुरूपयोग किया…तभी तो आज भी यह नस्ल बेहयाई से देश की भावुक जनता को सड़को पर उतरने के लिये रोज भड़काने का खानदानी कुटिल प्रयास कर रहा है….!
मध्यकालीन इतिहास को पढ़ियेगा तो जानेंगे कि जैसे भारत से जाते हुये अंग्रेजो ने अपने गुलामो यानी मैकाले की औलादों को कुर्सी सौंपी थी..ठीक उसी तरह मोहम्मद ग़ौरी ने भी पृथ्वीराज चौहान को जयचंद के धोखे से हराने बाद जब दिल्ली को जीतने के बाद जब वह वापस अफगानिस्तान जाने लगा तब उसने दिल्ली की गद्दी की देखभाल के लिए अपने गुलाम को दिल्ली की गद्दी पर बैठाया था…..इस वंश का पहला शासक कुतुबुद्दीन ऐबक था और इस वंश ने दिल्ली की सत्ता पर १२०६ से १२९०ई. तक,यह गुलाम वंश राज किया था……इस वंश के शासक या संस्थापक कुतुबुद्दीन ऐबक ग़ुलाम था इस लिए इसे राजवंश की बजाय आज भी इतिहास मे सिर्फ़ गुलाम वंश कहा जाता है….८४ साल तक इस गुलाम वंश ने राज किया था….इसने भी सत्ता को जनता के लिये नही बल्कि अपने लिये उपभोग की वस्तु बना दिया…!!
इसी तरह इस नेहरू-गांधी जैसे गुलाम वंश भी अलविदा करने में पुरे ६७ साल लगे है और इन सालो में हम भी एक तरह से उस गुलाम की तरह थे जिनके पैरों में सहिष्णुता बेड़ियां डाली गई थी और आँखों,कानो और बुद्धि पर स्वतंत्र होने के एहसास कराने का एहसान लाद कर केवल म्लेच्छ तुष्टीकरण और धर्मांतरण करने की कुटिलता को गंगा जमुनी तहजीब का नाम देकर हमे दशकों तक मूर्ख बनाया गया…..अभी हमारी बेड़ियां हटे केवल ७ साल ही तो हुए है और हम इस चका चौंध से हतप्रभ है की यह हो क्या रहा है..असल यह कुछ नया नही हो रहा है……यह सिर्फ जो होता आया है और जिससे हम आँख चुराते रहते थे उसकी यह आत्मस्वीकृति है..!!
फिलहाल देसी विदेसी राष्ट्र और सनातन विरोधी ताकतों की छटपटाहट और उनका बिलबिलाना देख कर मुझे लगता है की हमने अपनी वास्तविक स्वतंत्रता के केवल ७ साल के शैशव काल में ही काफी दूरी तय कर ली है और आगे भी जो देखना और होना है वह व्यर्थ नही होगा……बाकी बस इतना और कहूंगा कि कांगी,वामी और सोरास के रूपयों पर अपनी आत्मा बेचने वाले उन लोगों के मायावी चक्रव्युह से बच कर रहियेगा जो अपने शरीर रूपी शव को खुद ढ़ो कर अपने जीवित होने की गलफहमी मे जी रहे हैं..अभी ये कोरोना से भी गंभीर चोट कर सकते है…लेकिन मुझे भरोसा कि मेरा प्रधान सेवक ट्रम्प जैसा नही है…जो इन देश और सनातन विरोधी शक्तियों की झूठी,धोखेबाजी,प्रपंची और डालरों तथा दीनारों के दम पर पैदा की जा रही मायावी आँधी मे ट्रम्प की तरह उड़ जायेगा…यह महादेव का वो भक्त है जिसे सनातन राष्ट्रवाद की विचारधारा का विरोध करने वालो के विनाश के लिये स्वयं कैलाशपति ने भेजा है….अभी तो यह शांत है…अभी तांडव बाकी है…क्योंकि हीराबेन के इस सपूत का मौन बेहद घातक और निर्मम होता है….देख लीजियेगा…जल्द ही वो समय आयेगा…बाकी जय राम जी की!!!
(यह लेखन अश्रुपूरित नेत्रों से अपने प्रिय मित्र बैकुंठवासी पवन अवस्थी जी को अंतर्मन से समर्पित )
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साभार:अजीत सिंह-एफबी(ये लेखक के अपने विचार हैं)