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वित्त आयोग ने की कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के साथ बैठक

अपने कृषि सुधार के एजेंडे पर राज्यों को प्रोत्साहित करने के लिए

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पॉजिटिव इंडिया: दिल्ली ;27 जून 2020 .

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चेयरमैन एन.के. सिंह की अगुआई में 15वें वित्त आयोग और उसके सदस्यों की आज केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और उनके मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बैठक हुई। 20 लाख करोड़ रुपये के वित्तीय राहत पैकेज की तीसरी किस्त के मद्देनजर भारत सरकार ने कृषि को प्रोत्साहन देने के लिए कृषि, मत्स्य पालन तथा खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्रों में इन्फ्रास्ट्रक्चर लॉजिस्टिक को मजबूत बनाने और क्षमता निर्माण के लिए विभिन्न उपायों की घोषणा की थी। टीओआर के खंड 7 के प्रकाश में निर्यात के लिए कृषि सुधारों और प्रोत्साहनों पर प्रस्तावित नियमन को लागू करने के क्रम में एफसी-15 ने केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री के साथ इस पर विचार-विमर्श की मांग की थी और इसीलिए यह बैठक हुई थी।
इससे पहले 15वें वित्त आयोग ने आईटीसी के सीएमडी श्री संजीव पुरी की अध्यक्षता में कृषि निर्यात पर एक समिति का भी गठन किया गया था। समिति की बैठकों में विचार विमर्श के लिए रखे गए कृषि निर्यात से संबंधित कुछ प्रमुख बिंदु निम्नलिखित हैं :
भारत विश्व में दूसरा सबसे बड़ा कृषि उत्पादक देश है और कई प्रमुख कृषि श्रेणियों में विश्व में सबसे आगे है। अपनी विविध कृषि-जलवायु परिस्थितियों से निर्मित विविध संभावित फसल पोर्टफोलियो के कारण उसे कृषि में अन्य देशों पर प्रतिस्पर्धा के लिहाज से अच्छी बढ़त हासिल है; देश में दो मुख्य फसल सत्र (खरीफ और रबी) हैं और तुलमात्मक रूप से श्रम तथा विनिर्माण की लागत कम है। हालांकि प्रतिस्पर्धा के लिहाज से बढ़त को देखते हुए कृषि निर्यात में वैश्विक स्तर पर भारत सिर्फ 11वें पायदान पर है।
कृषि योग्य भूमि (हेक्टेयर में) में वैश्विक बढ़त के बावजूद भारत डॉलर प्रति हेक्टेयर निर्यात के मामले में कई छोटे देशों से भी काफी पीछे है, जिसकी मुख्य वजहों में (क) कम आय और कृषि उत्पादकता (ख) मूल्य संवर्धन पर कम जोर, जिससे वियतनाम जैसे अन्य देशों को कब्जा करने का मौका मिल गया (ग) विशाल घरेलू बाजार शामिल हैं।
भारत से प्रसंस्कृत उत्पादों का निर्यात लगातार बढ़ रहा है, लेकिन उसकी वैश्विक स्तर पर प्रसंस्कृत सामान की तुलना में कच्चे माल की बड़ी हिस्सेदारी है।
पिछले 10 साल से भारत के कृषि निर्यात में उतार-चढ़ाव बना हुआ है, लेकिन हाल में यह स्थिर है।
वैश्विक स्तर पर मूल्यों में गिरावट और 2014, 2015 तथा 2016 के दौरान लगातार सूखे के कारण 10 प्रतिशत सीएजीआर दर से निर्यात में गिरावट आई। हाल की वृद्धि दर से पता चलता है कि घरेलू मांग में बढ़ोतरी की तुलना में कृषि-खाद्य उत्पादन तेजी से बढ़ रहा है और निर्यात के लिए सरप्लस में भी तेज बढ़ोतरी हो रही है। इससे विदेशी मुद्रा हासिल करने के लिए विदेशी बाजारों का रुख करने की संभावनाएं पैदा होती हैं और अवसर मिलते हैं। इससे उत्पादक भी अपनी कृषि उपज के लिए अच्छी कीमतें हासिल करने में सक्षम होते हैं।
भारत की शीर्ष 50 कमोडिटीज और कृषि उत्पादों की इसके कुल निर्यात में 75 प्रतिशत हिस्सेदारी है।
भारत अपने 70 प्रतिशत कृषि उत्पादों (मूल्य के हिसाब से) का निर्यात 20 देशों को करता है; स्पष्ट है कि यूरोप और अमेरिकी देशों को ज्यादा निर्यात की काफी संभावनाएं हैं।
जहां भारत 20 अरब डॉलर के कृषि उत्पादों का आयात करता है, लेकिन उसने 18 अरब डॉलर के अतिरिक्त व्यापार को अभी तक बरकरार रखा है।
आज का विचार-विमर्श हाल में सरकार द्वारा कृषि क्षेत्र के संबंध में की गईं घोषणाओं (कोविड के बाद) पर केन्द्रित था, जिनको 15वें वित्त आयोग द्वारा 2021-22 से 2025-26 की अवधि के लिए अपने आवंटन के समय ध्यान में रखा जाएगा। इसके प्राथमिक बिंदु इस प्रकार हैं:
वित्तीय राहत पैकेज के भाग के रूप में कृषि से संबंधित सुधारों का विवरण।
आवश्यक वस्तु (कमोडिटीज) अधिनियम में संशोधन।
कृषि उपज व्यापार एवं वाणिज्य (प्रोत्साहन एवं सुविधा) अध्यादेश, 2020।
मूल्य आश्वासन एवं कृषि सेवाओं पर किसान (सशक्तिकरण एवं सुरक्षा) समझौता अध्यादेश, 2020।
मंत्रालय द्वारा एक विस्तृत प्रस्तुतीकरण दिया गया, जिसमें केन्द्र सरकार द्वारा क्षेत्र के उत्थान के लिए हाल में उठा गए कदम शामिल थे। आयोग ने भी 2021-22 से 2025-26 के दौरान कृषि शोध एवं शिक्षा विभाग (डीएआरई)/आईसीएआर केन्द्रीय क्षेत्र की योजनाओं के कार्यान्वयन और बजट आवश्यकता पर एक ‘प्रस्तुतीकरण’ दिया था।बैठक में 15वें वित्त आयोग द्वारा 2020-21 के लिए कृषि सुधारों के लिए राज्यों को मिलने वाले प्रदर्शन अनुदान से संबंधित अपनी रिपोर्ट में उल्लिखित ढांचे/ सिफारिशों पर भी विचार-विमर्श किया गया। एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में वित्त आयोग ने कृषि मंत्रालय के साथ मिलकर 15वें वित्त आयोग के सदस्य (श्री रमेश चंद), सचिव (कृषि) और सचिव (डीएआरई) को मिलाकर एक समूह का गठन किया गया, जो आयोग की अंतिम रिपोर्ट में की गई सिफारिशों के समावेशन के उद्देश्य से कृषि सुधार के एजेंडे के क्षेत्रों में राज्यों को प्रोत्साहन देने का तंत्र विकसित करेगा।

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