पॉजिटिव इंडिया:रायपुर;10 दिसंबर 2020,
इस कहानी की शुरुआत होती है सन 1480 से । कलचुरी शासक बाहरेंन्द्र साय ने बिनझवार जनजाति के बिसहूँ ठाकुर को उनकी वीरता से प्रभावित होकर सोनाखान की ज़मींदारी (कर मुक्त) उपहार स्वरूप भेंट की । तब से लेकर उनके वंशज अपने पराक्रम और वीरता से इस ज़मींदारी और जनता की देख-रेख करते रहे ।सन 1830 में वीरनारायण सिंह अपने पिता के मृत्यु के बाद सोनाखान के ज़मींदार बने।
1854 में अंग्रेजी शासन का सम्पूर्ण छग में प्रत्यक्ष शासन स्थापित हुआ । अंग्रेज़ी शासन को केवल सोनाखान ज़मींदारी से कर (टकोली) प्राप्त नहीं होता था इस वजह से वे वीरनारायण सिंह को पसंद नहीं करते थे और उनसे बदला लेने के लिए सही मौक़े की तलाश में थे ।
1856 को सोनाखान क्षेत्र में भीषण अकाल पड़ा । जनता खाने को तरसने लगी ऐसे वक़्त में वीरनारायण सिंह ने जनता की मदद की और अपने पास रखे सभी अनाज को उनमें बाँट दिया । पर वह भी जल्द ख़त्म हो गया । उसके बाद वीरनारायण सिंह ने कसडोल के व्यापारी माखन सिंह से मदद माँगी पर माखन सिंह ने साफ़ इनकार कर दिया । भविष्य में डेढ़ गुना मूल्य अत्यधिक देने का आशवासन भी दिया किंतु माखन नहीं माना । जनता की भलाई और उनके हित में वीर नारायण सिंह ने माखन सिंह के अनाज से भरे गोदाम को आधी रात में लूटकर अनाज को ग़रीबों में बँटवा दिया । माखन सिंह इस घटना से तिलमिला उठा और उसने इसकी शिकायत तत्कालीन छग के डिप्टी कमिश्नर चार्ल्स सी इलियट से कर दी। अंग्रेज जो पहले से ही मौक़े की तलाश में थे उन्होंने इस अवसर का पूरा फ़ायदा उठाया और वीर नारायण सिंह की गिरफ़्तारी का वॉरंट जारी कर दिया ।
24 अक्टूबर 1856 को कैप्टन स्मिथ ने उन्हें गिरफ़्तार कर लिया और रायपुर जेल में डाल दिया । 1857 जब पूरा देश प्रथम स्वतंत्रता संग्राम क्रांति की आग में धधक रहा था तब इसकी लपटें छग में भी पहुँची । मौक़ा देखकर 27 अगस्त 1857 को वीरनारायण सिंह जेल से भाग निकले ।कहते है जेल के सिपाहियों ने ही उनसे प्रभावित होकर जेल से भागने में मदद की । जेल से फ़रार होकर उन्होंने सोनाखान आकर 500 लोगों की सेना तैयार किया और अंग्रेजी सरकार की परेशनियाँ बढ़ाने लग गए उनके ख़िलाफ़ मोर्चा शुरू कर विद्रोह कर दिया ।
इस बात से परेशान होकर इलियट ने पुनः स्मिथ को बड़ी संख्या में सिपाही देकर वीर नारायण सिंह की गिरफ़्तारी के लिए भेजा । इस बार स्मिथ का साथ कटगी , बिलाईगढ़ और देवरि के ज़मींदारो ने भी दिया । 2 दिसंबर 1857 उन दोनो के बीच बड़ा भयानक संघर्ष हुआ । वीर नारायण सिंह १ पर्वत की चोटी में चढ़ गए और वहाँ से युद्ध कर रहे थे स्मिथ ने उन्हें चारों तरफ़ से घेर लिया पर स्मिथ को सफलता नहीं मिल पा रही थी । अंततः स्मिथ ने गाँव में आग लगा दी और वीर नारायण सिंह को धमकी दी यदि उसने आत्मसमर्पण नहीं किया तो वह गाँव के लोगों को मार देगा । जनता की भलाई और उनकी ज़ान की रक्षा के लिए उन्होंने आत्मसमर्पण कर दिया ।
9 दिसंबर 1857 को उन्हें इलियट के सामने मुक़दमा दायर कर प्रस्तुत किया गया । इलियट ने भविष्य में किसी भी अनहोनी से बचने के लिए उनहे देशद्रोही करार कर तत्काल अगली सुबह फाँसी पर लटकाने की सजा दी। 10 दिसंबर 1857 की सुबह उन्हें रायपुर के हृदय स्थल जयस्तम्भ चौक पर फाँसी दिया गया । अंग्रेजो की बर्बरता और उनसे नफ़रत का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अंग्रेजों ने फाँसी के बाद उन्हें तोप के सामने खड़ा कर बम से उड़ा दिया ।और इस तरह एक देशभक्त, वीर , छत्तीसगढ़ के माटी पुत्र अपनी जनता के हितों और भलाई के लिए शहीद हो गए । वीर नारायण सिंह जी को छत्तीसगढ़ के स्वतंत्रता संग्राम के प्रथम शहीद के रूप में जाना जाता है .।।।
धन्य है छत्तीसगढ़ की ये भूमि जहाँ वीर नारायण सिंह जैसे सपूत ने जन्म लिया और धन्य है वो माता जिन्होंने उन्हें जन्म दिया ।।
जय छत्तीसगढ़ महतारी 🙏🏻
लेखक: गजेंद्र साहू (विक्की)