Positive India:Satish Chandra Mishra:
उप्र में कांग्रेस की तबाही बरबादी का अनसुना अनकहा सच…
क्या आपको कोई ऐसा राजनीतिक घटनाक्रम याद है जब कोई मुख्यमंत्री अपने पद से इस्तीफा देकर विधानसभा भंग करने की सिफारिश लेकर सवेरे 5 बजे राजभवन पहुंच गया हो और सारी मीडिया उस समय राजभवन में मौजूद रही हो। ऐसा दुर्लभ उदाहरण केवल एक ही है। 4 अप्रैल 1991 को उत्तरप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने यह कारनामा कर के दिखाया था। आश्चर्य का विषय यह है कि ऐसा करने से केवल 36 घंटे पहले मुलायम ने मंत्रिमंडल का विस्तार कर के अपने 2 साथियों को मंत्री बनाया था तथा 14 निगमों में अपने वफादारों की नियुक्ति चेयरमैन के रूप में की थी। अतः यह तो स्पष्ट है कि 2 दिन पहले तक मुलायम का इरादा इस्तीफा देने का नहीं था। सच तो यह है कि इस्तीफा देने से कुछ घंटे पहले तक खुद मुलायम को ही यह नहीं मालूम था कि उन्हें इस्तीफा देने राजभवन जाना पड़ेगा। दरअसल ठीक एक दिन पहले अमेठी के दौरे पर आए राजीव गांधी ने रात में कांग्रेस के नेता नारायणदत्त तिवारी को यह आदेश दिया था कि मुलायम सरकार को दिए जा रहे कांग्रेस के 94 विधायकों के निर्णायक समर्थन को वापस लेने का पत्र कल जाकर राज्यपाल को सौंप दो। ऐसा करने से कांग्रेस को 2 लाभ होते। मुलायम सरकार बर्खास्त होती और प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लग जाता। अतः चुनाव कार्यवाहक मुख्यमंत्री मुलायम की सरकार के बजाए केन्द्र की निगरानी में होते। दूसरा बड़ा राजनीतिक लाभ यह होता कि जनता की नजर में बहुत बड़े खलनायक बन चुके मुलायम की सरकार को गिराने का श्रेय कांग्रेस को मिलता। लेकिन राजीव गांधी के इस दांव को धूल चटाने के लिए मुलायम सिंह यादव मीडियाकर्मियों की फौज साथ लेकर राजभवन पहुंच गए थे। इस पूरे घटनाक्रम के बाद सबसे बड़ा सवाल यह उभरा था कि राजीव गांधी के फैसले की खबर मुलायम सिंह यादव को किसने दे दी थी.? क्योंकि उस फैसले की जानकारी केवल राजीव गांधी और एनडी तिवारी को ही थी। जाहिर सी बात है कि कांग्रेस के जबरदस्त राजनीतिक नुकसान की कीमत पर मुलायम को लाभ पहुंचाने वाली यह मुखबिरी एनडी तिवारी ने ही की थी। बाद में उत्तरप्रदेश कांग्रेस के कुछ बड़े नेताओं के समक्ष एनडी तिवारी की इस करतूत पर राजीव गांधी द्वारा जतायी गयी नाराजगी के बाद यह खबर सार्वजनिक हो गयी थी। मीडिया की भी सुर्खी बनी थी। उन दिनों कांग्रेस कार्यालय में एनडी तिवारी के नाम के आगे पीछे कांग्रेस नेता और आम कार्यकर्ता कैसे कैसे अजब गजब विशेषण जोड़ते थे, इसका गवाह मैं खुद रहा हूं। दरअसल इस पूरे राजनीतिक घटनाक्रम के पीछे एक लंबी कहानी है।
1980 के दशक में उत्तरप्रदेश की राजनीति में बलराम सिंह यादव एक बहुत बड़ा और चर्चित चेहरा हुआ करते थे। 1980 में मुलायम सिंह यादव को उनके राजनीतिक गढ़ जसवंत नगर में पराजित करने के पश्चात बलराम सिंह यादव का कद बहुत बढ़ गया था। 1984 में हुए लोकसभा चुनाव में मुलायम के दूसरे सबसे मजबूत राजनीतिक गढ़ मैनपुरी संसदीय सीट से जीत कर बलराम सिंह यादव संसद पहुंच गए थे। बहुगुणा और वीपी सिंह द्वारा कांग्रेस छोड़ देने तथा वीर बहादुर सिंह के आकस्मिक निधन के बाद उत्तरप्रदेश कांग्रेस में बलराम सिंह यादव अकेले ऐसे नेता बचे थे जो कांग्रेस में एनडी तिवारी के एकछत्र आधिपत्य के लिए चुनौती बन सकते थे। अतः उनका राजनीतिक कद कम या यूं कहिए कि खत्म करने के लिए एनडी तिवारी ने एक ख़तरनाक रणनीति बनायी थी। उन्होंने बलराम सिंह यादव का राजनीतिक कद कम या यूं कहिए कि खत्म करने के लिए मुलायम सिंह यादव को भरपूर शक्ति देना प्रारम्भ कर दिया था। स्थिति इतनी गम्भीर हो गयी थी कि बलराम सिंह यादव के प्रभाव क्षेत्र इटावा और मैनपुरी में स्थानीय प्रशासन से लेकर लखनऊ स्थित सचिवालय तक बलराम सिंह यादव उप्र की नौकशाही के लिए अछूत हो गए थे और इन सभी जगहों पर मुलायम सिंह यादव के एक फोन पर बड़े बड़े काम होने लगे थे। 1987 में हुई चौधरी चरण सिंह की मृत्यु तत्पश्चात बहुगुणा जी की मृत्यु के बाद चौधरी चरण सिंह के पुत्र अजित सिंह से लोकदल पर वर्चस्व की जंग लड़ रहे मुलायम के लिए एनडी तिवारी की यह मदद संजीवनी सिद्ध हुई थी।
(यह संजीवनी कितनी बड़ी और महत्वपूर्ण थी इसे यहां लिखूंगा तो पोस्ट बहुत लंबी हो जाएगी। इसलिये उस दौर को करीब से देख चुके वरिष्ठ पत्रकार भाई Dayanand Pandey जी के 2 लेखों का लिंक पहले 2 कमेंट में दे रहा हूं उसे पढ़कर आप समझ जाएंगे कि उस संजीवनी का मुलायम के राजनीतिक ही नहीं निजी जीवन पर क्या चमत्कारी प्रभाव पड़ा होगा।)
मुलायम का ग्राफ तेजी से बढ़ने लगा था। बलराम सिंह यादव के पैर अपनी ही जमीन से उखड़ने लगे थे। मुलायम का राजनीतिक कद तेजी से बढ़ता जा रहा था। कांग्रेस के भविष्य की चिंता किए बिना एनडी तिवारी इसे अपनी बहुत बड़ी सफलता मान रहे थे। यही कारण है कि अयोध्या गोलीकांड के बाद कांग्रेस के 50 से अधिक विधायकों ने मुलायम सरकार को समर्थन दिए जाने के फैसले का विरोध जब बाकायदा विधानसभा में धरना देकर, अनशन कर के किया था। उस समय भी एनडी तिवारी ने ही एड़ीचोटी का जोर लगा कर उन विधायकों को मनाया था। क्योंकि उस समय भी एनडी तिवारी की प्राथमिकता बलराम सिंह यादव को निपटाना, मुलायम का राजनीतिक कद बढ़ाना ही थी। विधायकों के विरोध पर एनडी तिवारी की सलाह और रिपोर्ट कांग्रेस हाईकमान पर बहुत भारी पड़ी थी। मुलायम को कांग्रेस का निर्णायक समर्थन मिल गया था। उस समय एनडी तिवारी ही उत्तरप्रदेश कांग्रेस के सबसे कद्दावर नेता हुआ करते थे। हर कीमत पर मुलायम सिंह यादव की राजनीतिक मदद करने का भूत उन पर किस कदर सवार था, इसे उस एक प्रकरण से समझिए जिसके जिक्र के साथ मैंने पोस्ट की शुरुआत की है।
मुलायम सिंह यादव के राजनीतिक उभार का परिणाम यह निकला था कि अगले कुछ वर्षों में वही मुलायम सिंह यादव उत्तरप्रदेश में बहुत बड़ी संख्या में कांग्रेस के वोटबैंक और दिग्गज नेताओं को निगल गए। कांग्रेस के नेताओं के लिए स्थितियां इतनी बदतर हो गईं कि बलराम सिंह यादव को ही मुलायम सिंह यादव के पास शरण लेनी पड़ गयी। 1998 में वो समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए थे।
एनडी तिवारी की कृपा से समाजवादी पार्टी विशेषकर मुलायम का उभार यदि नहीं हुआ होता तो कांग्रेस की स्थिति उत्तरप्रदेश में आज कुछ और होती।
बात अभी अधूरी है, कल बताऊंगा कि एनडी तिवारी ने अर्जुन सिंह के साथ मिलकर निजी राजनीतिक स्वार्थों के लिए उत्तरप्रदेश में कांग्रेस की कमर किस तरह तोड़ दी थी।
साभार:सतीश चंद्र मिश्रा(ये लेखक के अपने विचार है)
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