समझिये भाजपा के एजेंडे में क्यों था अनुच्छेद 370 हटाना ?
-विशाल झा की कलम से-
Positive India:Vishal Jha:
भाजपा के एजेंडे में था अनुच्छेद 370 हटाना। अमित शाह ने संसद में पीओके के लिए अपनी जान दे देने तक की बात कही। लेकिन क्या कभी भाजपा ने कश्मीरी हिंदुओं को वापस घाटी में बसाएंगे, ऐसा कभी खुलकर ऐलान किया? उत्तर है नहीं।
अनुच्छेद 370 हटाना एक असंभव सा लगने वाला काम था। जिस वक्त पूरा देश मीडिया में चर्चा कर रहा था उस वक्त भी बस इतना ही कयास लगाया जा रहा था कि 35ए हटाए जाएंगे। अनुच्छेद 370 पर सोचना भी दुष्कर था। लेकिन राज्यसभा में कंफर्टेबल बहुमत ना होते हुए भी भाजपा ने अनुच्छेद 370 की दोनों धाराएं हटा दी। देश अचंभा हो गया। पीओके वापस लेना अनुच्छेद 370 से बहुत ही मुश्किल और अलग मामला है। भाजपा कभी इस एजेंडे पर भी काम कर दे इस विश्वास से इनकार नहीं किया जा सकता।
लेकिन कश्मीरी हिंदुओं को वापस कश्मीर लाना क्या इन दोनों मुद्दों से भी अधिक मुश्किल काम है? कश्मीरी हिंदुओं का कश्मीर में नरसंहार और पलायन केवल प्रशासनिक मुद्दा होता तो वापसी भी केवल और केवल संविधान और सरकार की जिम्मेदारी होती। किंतु कश्मीर में नरसंहार प्रशासनिक मुद्दा कम और सामाजिक अथवा संप्रदायिक मुद्दा अधिक है। ’90 का नरसंहार कोई आतंकवादी घटना नहीं थी। इसलिए यह समस्या सेना भी हल नहीं कर सकती। आम कश्मीरी नागरिकों ने सांप्रदायिक उन्माद में आकर हथियार उठा लिया था। कौन गारंटी लेगा की भाजपा कश्मीरी हिंदुओं को वापस घाटी में बसा दें और यह सांप्रदायिक उन्माद फिर ना फैले? जब तक यह संप्रदाय रहेगा तब तक क्या इनके सांप्रदायिक उन्माद की संभावना से इनकार किया जा सकता है?
भाजपा हमेशा सरकार में नहीं रहेगी। सरकारें आने जाने की चीज है। लेकिन एक बार भाजपा सरकार यदि कश्मीरी हिंदुओं को घाटी में बसा दे और उनके साथ फिर कभी ’90 का नरसंहार दोहराया जाए, तो दोषी कौन होगा? क्या नहीं कहा जाएगा कि कश्मीरी हिंदू अच्छे भले 30 वर्षों से रह रहे थे, भाजपा ने उन्हें राजनीतिक लाभ के लिए वापस कश्मीर में बसाया था? तमाम राष्ट्रीय हित पर काम करने के बावजूद क्या भाजपा इतने बड़े कलंक के लिए स्वयं को कभी माफ कर पाएगी?
क्योंकि मसला सामाजिक और सांप्रदायिक है, इसलिए यह जिम्मेवारी कश्मीरी समाज और उस उन्मादी संप्रदाय का बनता है कि जिस प्रकार उन्होंने सामूहिक तौर पर कश्मीरी हिंदुओं का नरसंहार किया और पलायन को मजबूर किया, उसी प्रकार उनको वापसी के लिए पूरी तरह आत्मविश्वास से भर दे। लेकिन सवाल फिर वही क्या यह संभव है?
साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार हैं)