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बेलगाम राजनीति बनाम व्यक्तिगत राजनीति – लोकतंत्र के लिए चिंता का सबब

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Positive India:जैसे जैसे चुनाव आगे बढ रहा है वैसे वैसे राजनीति बेलगाम होकर व्यक्तिगत राजनीति का हिस्सा बन रही है । इसलिए चुनाव भी प्रत्याशी देखकर उसके सामने उतारने की नई परंपरा का अभ्युदय हो गया है । यही कारण है कि वाराणसी जैसे संवेदनशील प्रधानमंत्री की सीट पर कुछ दिन तक कांग्रेस ने भी अपनी महासचिव श्रीमती प्रियंका गांधी वाड्रा के नाम की चर्चा कर माहौल बनाने की कोशिश की थी । लगा होगा मोदी जी भी डर के मारे और किसी दूसरी सीट तलाशेंगे पर ये उनके लिए दिवा स्वप्न बनकर ही रह गया । अंततः जो प्रियंका वाड्रा के चुनाव लड़ने का हौवा खड़ा किया जा रहा था वो ढेर हो गया । इससे एक राजनीतिक संदेश भी गलत गया । यही हाल पटना साहब सीट के साथ हो गया । सिन्हा जी की दावेदारी पहले से ही थी मात्र उन्हे दल तय करना था । अंततः कांग्रेस के साथ जुड़कर चुनाव मे उतरे पर भाजपा ने रविशंकर प्रसाद को उतारकर व्यक्तिगत सा बना दिया । वही गृहमंत्री राजनाथ सिंह के लखनऊ सीट पर श्रीमती पूनम सिन्हा को उतारने के साथ शत्रुघ्न सिन्हा ने इस सीट को व्यक्तिगत बनाकर राजनीतिक दुश्मनी निकालने का माध्यम बना लिया । पर ये सब कर किसी एक पक्ष का राजनीतिक नुकसान तो होता ही है । पर राजनीतिक दुश्मनी के चलते वो किसी भी हद तक को जाने को तैयार हो जाता है । यही कारण है कि जिस शख्स ने हिन्दू धर्म को नुकसान पहुंचाया, एक तथाकथित हिंदू आतंकवाद खड़ा किया उसके खिलाफ उसी की तर्ज पर साध्वी को खड़ा कर उनके प्रश्नो के जवाब वही दे दिया । कहते है “विनाश काले विपरीत बुद्धि” । जहां इनको सरकार के काम पर कमजोरियों पर घेरना था, उसे व्यक्तिगत रूप से से ले लिया । वही इन्होंने टुकड़े टुकड़े गैंग के सरगना को चुनाव प्रचार मे बुलाकर अपने ही पैर मे कुल्हाड़ी मार ली । वैसे ही अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली के पिछले विधानसभा चुनाव मे श्रीमती शीला दीक्षित के खिलाफ यही रणनीति अपनाई थी जो आज आप और कांग्रेस के एकता के राह मे बाधक बनी । वैसे ही उन्होंने मोदी जी के खिलाफ वाराणसी मे चुनाव लड़कर कड़ी टक्कर दी थी, वैसी टक्कर अब मोदी जी के सामने दिखाई नही दे रही है । वही,मोदी जी के खिलाफ विपक्ष बहुत ज्यादा आक्रामक हो गया है इससे ऐसा कही नही लगता ये लोकतंत्र का उत्सव है; ऐसा लगता है कि ये पांच साला झगड़ा उत्सव है । पश्चिम बंगाल मे तो दीदी ने और उनके वर्कर ने चुनाव को ही दुर्भर बना दिया है । नेता तो नेता मीडिया भी निशानेपर आ गये है । अब तो बम का भी उपयोग हो गया है । पश्चिम बंगाल का रसगुल्ला भी निशाने पर आ गया है । दीदी तो प्रधानमंत्री को भरी सभा मे मिट्टी और कंकड के रसगुलले खिलाने की बात की । ऐसे लोकतंत्र की कल्पना किसी ने नही की थी । कुल मिलाकर सीधे सीधे सत्ता का दुरुपयोग है । क्या आम आदमी ऐसे राजनीति मे प्रवेश की कभी भी सोच नही सकता । राजनीति का स्तर इतना गिर गया है; सिद्धांत नही व्यक्तिगत राजनीति कैसे हो रही है ये सबके सामने है ।
लेखक:डा.चंद्रकांत वाघ(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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