उल्लू समझत हो का? ई है आर्यन खान की गिरफ्तारी का सच
-सतीश चन्द्र मिश्रा की कलम से-
Positive India:Satish Chandra Mishra:
उल्लू समझत हो का.?
NCB ने बताया है कि 15 दिन की जबरदस्त प्लानिंग करने के बाद उसके 2 दर्जन अधिकारियों ने समुद्र के भीतर सौ डेढ़ सौ किलोमीटर अंदर जा कर ऐसी अफलातूनी कार्रवाई करी, ऐसा गज़ब का तीर मारा कि 600 यात्रियों की भीड़ वाले क्रूज़ पर हो रही ड्रग्स पार्टी में छापा मार कर 5 ग्राम MD, 13 ग्राम कोकीन, 22 ग्राम चरस, 22 गोली MDMA की बरामदगी कर ली। यह बताने में NCB को लगभग 20 घंटे लगे हैं। न्यूजचैनलों के रिपोर्टरों ने प्रायोजित हुड़दंग की यह नौटंकी भी शुरू कर दी है कि “NCB के इस खुलासे से आर्यन खान की मुश्किलें बहुत बढ़ गयी हैं।” जबकि न्यूजचैनलों का यह हुड़दंग सरासर सफेद झूठ है, देश की आंखों में सरेआम धूल झोंकने की कोशिश है।
सच यह है कि 8-10 लोगों से इतनी कम मात्रा में ड्रग्स की बरामदगी दिखाने के वाद NCB ने आर्यन खान की मुक्ति का
5 स्टार VVIP रास्ता उसकी गिरफ्तारी से पहले ही खोल दिया है। कानून के जानकार से पूछिए, वो इसकी पुष्टि कर देंगे।
20 घंटों में क्या डील हुई, किससे डील हुई, क्यों डील हुई.? यह सच तो डील करने और कराने वाले ही जानते होंगे। सवाल पूछने की जिम्मेदारी जिन लकड़बग्घों की है वो कल रात से ही “नाच मेरी बुलबुल कि पैसा मिलेगा।” गाने की धुन पर जमकर नाच रहे हैं।
पिछले साल सवा साल से पूरा देश यह देख रहा है कि बॉलीवुड के कितने मशहूर भांड़ NCB के दफ्तर तक लाए गए, लकड़बग्घों से उनकी फ़ोटो खिंचवाई गई। दिन दिन भर चलवाई गयी। NCB की तारीफ में लकड़बग्घों को जमकर नचवाया भी गया। लकड़बग्घे जमकर नाचे भी। लेकिन बॉलीवुड
का कोई भांड़ 5 मिनट के लिए भी जेल नहीं गया। उनके केस का क्या हुआ.? NCB ने आजतक यह भी नहीं बताया। कुछ सड़कछाप लतिहड़ ड्रग पैडलर जरूर जेल जाते रहे। सवा साल से पूरे देश को लकड़बग्घे यह “काढ़ा” भी लगातार पिला रहे हैं कि NCB मुंबई का जोनल डायरेक्टर समीर वानखेड़े सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र से भी कई गुना ज्यादा ईमानदार और कड़क है।
फिलहाल इतना जान लीजिए कि किसी पुलिस चौकी का तेजतर्रार सिपाही अगर यह ठान ले कि उसे आज ड्रग पैडलर को पकड़ना है, तो इससे कई गुना ज्यादा ड्रग्स वो कुछ घंटों में पकड़ लेगा। जितनी ड्रग की बरामदगी NCB दिखा रही है। यह मुंबई नहीं बल्कि मुंबई से कई गुना छोटे और मुंबई की तुलना में ड्रग्स के कई गुना कम चलन वाले राजधानी लखनऊ की स्थिति लिख रहा हूं।
फिलहाल बहुत निराश हूं। इतना ही कह सकता हूं कि अपने अपने सोशलमीडिया के मंच से वह सवाल आप भी पूछिए, जिसका जिक्र मैंने पोस्ट में ऊपर किया है।
साभार:सतीश चंद्र मिश्रा-(ये लेखक के अपने विचार है)