नारायण राणे के विरुद्ध बचकानी बेहूदा पुलिस कार्रवाई का खामियाजा निकट भविष्य में उद्धव ठाकरे को भोगना ही पड़ेगा।
-सतीश चंद्र मिश्रा की कलम से-
Positive India:Satish Chandra Mishra:
इसका खामियाजा बहुत जल्दी ही निकट भविष्य में उद्धव ठाकरे को भोगना ही पड़ेगा।
केंद्रीय कैबिनेट मंत्री तथा महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री नारायण राणे के विरुद्ध बचकानी बेहूदा पुलिस कार्रवाई कर के उद्धव ठाकरे ने आज वह बीज बो दिया है जिसका बहुत कडुआ फल उसको बहुत जल्दी ही खाना पड़ेगा। उद्धव ठाकरे के लिए स्थिति और ज्यादा गम्भीर इसलिए भी होगी क्योंकि भारतीय राजनीति में अब कोई अटल बिहारी बाजपेयी नहीं है।
जिन बाला साहब ठाकरे का नगाड़ा बजा बजाकर उद्धव ठाकरे आजकल महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर डटा हुआ है उन बाला साहब ठाकरे के साथ इसी मुम्बई में छगन भुजबल ने जुलाई 2000 में क्या और कैसा बर्ताव किया था उसे पूरे देश ने देखा था। वह नजारा लिखने में भी मुझे संकोच हो रहा है। छगन भुजबल पुलिस की भारी भरकम टीम को बाल ठाकरे के घर भेजकर उन्हें घसीटते हुए जेल के सींखचों के पीछे बंद कर देने की जिद्द पर अड़ गया था। आज नारायण राणे और भाजपा कार्यलयों पर पत्थरबाजी करने पहुंचे शिवसेना के गुंडे उस समय छगन भुजबल के डर से थर थर कांप रहे थे और गधे के सिर से सींग की तरह गायब हो गए थे। बाल ठाकरे को बुरी तरह अपमानित कर के जेल में बंद किया जाना तय हो चुका था। लेकिन देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने शरद पवार से बात कर के बाल ठाकरे को अपमानित होने से बचा लिया था। इस हस्तक्षेप का प्रभाव यह हुआ था कि छगन भुजबल अपनी जिद्द पूरी करने के लिए बाल ठाकरे को गिरफ्तार करवा कर ही माना था। लेकिन बाल ठाकरे को गिरफ्तार करने के बाद पुलिस उन्हें थाने की हवालात या जेल ले जाने के बजाए सीधे अदालत ले गयी थी। वहां पुलिस द्वारा विरोध नहीं किए जाने के कारण बाल ठाकरे को अदालत से जमानत मिल गयी थी और वो जेल के सींखचों के पीछे जाने से बच गए थे। यह सब अटल जी और शरद पवार के कारण ही सम्भव हो सका था। यह सब जब हुआ था उस समय उद्धव ठाकरे बच्चा नहीं था। बल्कि 40 बरस का हो चुका था। इसके बाद एक दो नहीं बल्कि 15 वर्षों तक छगन भुजबल ने इसी मुम्बई में शिवसेना के इन पत्थरबाज गुंडों की छाती पर चढ़कर पूरी रंगबाजी से कैसे राज किया, यह भी पूरा देश जानता है और पूरी मुम्बई जानती है। लेकिन उन 15 वर्षों के दौरान शिवसेना के यही पत्थरबाज गुंडे कभी छगन भुजबल के आसपास फटकने की हिम्मत नहीं जुटा पाए। किसी मरियल कुत्ते की तरह दुम दबाए चुप्पी साधे रहे। पूरी मुंबई और पूरा महाराष्ट्र यह भी जानता है कि 1991 में शिवसेना छोड़ने के बाद से नवंबर 2019 तक, 28 वर्ष की समयावधि के दौरान उद्धव ठाकरे के बाप बाल ठाकरे को अपमानित करने के लिए छगन भुजबल सार्वजनिक रूप से बाल ठाकरे को “बालू” ठाकरे कह कर संबोधित करता रहा था। लेकिन शिवसेना के पत्थरबाज गुंडे कभी उसके घर या कार्यालय के आसपास फटकने की हिम्मत नहीं कर सके। यह तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ही 56″ छाती थी जिसने अपने नाम और काम के दम पर पहले छगन भुजबल के राजनीतिक वर्चस्व को ध्वस्त किया फिर उसको घर से खींचकर जेल के सींखचों के पीछे भिजवाया। उसकी करोड़ो की अवैध सम्पत्ति को जब्त कराने का साहस दिखाया। लेकिन उद्धव ठाकरे की निर्लज्जता कृतघ्नता की पराकाष्ठा देखिये कि अपने बाप के अपमान को भुलाकर नवंबर 2019 में उद्धव ठाकरे उसी छगन भुजबल की राजनीतिक शरण में पहुंच गया। सत्तासुख लूटने के लिए उसी छगन भुजबल की राजनीतिक आरती उतारने में जुट गया। उसके साथ मिलकर सत्तासुख लूटने में लग गया और नरेन्द्र मोदी को उसकी शिवसेना के राजनीतिक गुर्गे, गुंडे पानी पी पीकर गाली देने लगे। बड़े बुजुर्ग इसीलिए कह गए हैं कि… “पूत कपूत तो क्या धन संचय”
उपरोक्त तथ्य बताता है कि शिवसेना के ये गुंडे केवल जूताखोर ही नहीं बल्कि बहुत घटिया घिनौने किस्म के अहसानफरामोश निर्लज्ज और मक्कार भी हैं।
आज उपरोक्त राजनीतिक कथा इसलिए लिखी है क्योंकि नारायण राणे को छेड़ कर उद्धव ठाकरे ने निकट भविष्य में अपनी प्रचंड दुर्दशा का विराट विशाल मंच तैयार कर लिया है। क्योंकि यह सर्व विदित है कि नारायण राणे छगन भुजबल से अधिक दमदार दबंग भी हैं और छगन भुजबल से कई गुना अधिक जिद्दी भी हैं। सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि अब भारतीय राजनीति में कोई अटल बिहारी बाजपेयी सरीखा नेता भी नही है जो हस्तक्षेप कर के उस दुर्दशा को रोक सके। अंत मे यह उल्लेख आवश्यक है कि बाल ठाकरे ने कभी अटल जी या शीर्ष भाजपा नेतृत्व के लिए अपमान जनक भाषा का प्रयोग नहीं किया था। यही काऱण है कि उनके बुरे समय में अटल जी समेत भाजपा का शीर्ष नेतृत्व उनकी सहायता के लिए खड़ा हो गया था। लेकिन उद्धव ठाकरे और उसके चाटुकार चमचे संजय राऊत ने पिछले कुछ वर्षों के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के विरुद्ध फूहड़ता अभद्रता की सारी सीमाएं किसी सड़कछाप नेता की तरह पार करी हैं। इसका खामियाजा बहुत जल्दी ही निकट भविष्य में उद्धव ठाकरे को भोगना ही पड़ेगा।
साभार:सतीश चंद्र मिश्रा-(ये लेखक के अपने विचार है)