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सही मायने में भारत रत्न, एक देशभक्त का जीवन जी कर गए रतन टाटा को श्रद्धांजलि।

-सर्वेश कुमार तिवारी की दिवंगत रतन टाटा को श्रद्धांजलि-

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Positive India: Sarvesh Kumar Tiwari:
जब नौकरी का मतलब ही सरकारी नौकरी होता था, तब भी टाटा कम्पनी की नौकरी को लोग सरकारी नौकरी से बेहतर मानते थे। अपने कर्मियों को उतनी सुविधाएं देश का कोई नियोक्ता नहीं देता। जमशेदपुर की कॉलोनियों में सड़क पर झाड़ू लगाने वाली कर्मियों को भी अच्छा फ्लैट, चौबीस घण्टे बिजली, और आवश्यक स्वास्थ सुविधा देता रहा है टाटा परिवार।

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एक शहर बसाया उन्होंने, जमशेदपुर। सौ से अधिक फैक्ट्रियों वाले उस शहर को भारत का सबसे गंदा शहर होना चाहिये, पर मेरे हिसाब से वह भारत का सबसे सुंदर शहर है। उतनी हरियाली इस देश के किसी दूसरे शहर में तो नहीं है। टाटा परिवार ने जैसे बच्चों की तरह पोसा है उनको… कम्पनी की हर कॉलोनी में सैकड़ों पेड़ ऐसे हैं जिनकी उम्र सौ साल से अधिक है। साफ सफाई के मामले में तो दूसरे शहर कहीं खड़े नहीं होते उसके आगे…

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लगभग डेढ़ हजार वर्ष पूर्व अपनी मिट्टी से उजाड़ दिए गए कुछ पारसी परिवार किसी तरह जान बचा कर भागे और भारत पहुँचे थे। इस मिट्टी ने उन्हें पूरी प्रतिष्ठा के साथ अपनाया। तो पारसी लोग भी पूरी निष्ठा के साथ इस मिट्टी के प्रति समर्पित रहे हैं। उन्होंने न कभी यहाँ की सामाजिक व्यवस्था को चोट पहुँचाने का प्रयास किया, न अपने किसी अनर्गल मांग को लेकर हिंसक हुए। अपराध के मामले में उनकी संलिप्तता शून्य है। उन्होंने इस देश को केवल और केवल देने का प्रयास किया है।

रतन टाटा इसी समर्पित परम्परा के बड़े व्यक्ति रहे। अपने कर्मियों के लिए समर्पित व्यक्ति, सामाजिक कार्यों के लिए सर्वाधिक धन देने वाले उद्योगपति, पर्यावरण के लिए, देश के विकास के लिए, इस देश की प्रतिष्ठा के लिए समर्पित उद्योगपति! देश के उस पुराने औद्योगिक घराने के अन्य मालिकों की तरह रतन टाटा भी अपने मूल्यों को लेकर सजग रहे। बावजूद इसके टाटा परिवार की कुल सम्पत्ति पाकिस्तान की जीडीपी से अधिक हो गयी, यह उस व्यक्ति की अद्भुत व्यवसायिक कुशलता का प्रमाण है।

उनसे जुड़े लोग उनकी सादगी के लिए उन्हें याद कर रहे हैं। उनकी दया भावना के लिए याद कर रहे हैं। उनके सामाजिक कार्यों के लिए उन्हें याद कर रहे हैं। यह एक व्यक्ति के रूप में उनकी जीत है।

वे जीवन के नौवें दशक में भी, मृत्यु के तीन दिन पूर्व तक एक्टिव थे। वे मीटिंग अटैंड कर रहे थे, ट्विटर चला रहे थे, अपना काम कर रहे थे। इस उम्र तक स्वयं को सकारात्मक कार्यों में व्यस्त रखना एक ऐसा गुण है सबमें नहीं होता, पर इसे सबको सीखना चाहिये।

एक देशभक्त का जीवन जी कर गए रतन टाटा को श्रद्धांजलि। वे लम्बे समय तक याद रखे जाएंगे।

सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज, बिहार।

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