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तो दर्शन करेंगे राम का , वोट देंगे इंडिया गठबंधन को

-दयानंद पांडेय की कलम से-

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Positive India: Dayanand Pandey:
यह जो लाखो लोग रोज-रोज अयोध्या से राम के दर्शन कर के जा रहे हैं। मंदिर प्रबंधन वालों के मुताबिक़ करोड़ो रुपए का चढ़ावा भी यह लोग चढ़ा रहे हैं। तो आप को क्या लगता है यह करोड़ो-करोड़ लोग विदेशी हैं ? यू के , यू एस और गल्फ आदि-इत्यादि देशों के लोग हैं ? भारत के नागरिक नहीं हैं ? और जो भारत के नागरिक हैं तो घर लौट कर आप को क्या लगता है , यह लोग इंडिया गठबंधन के प्रत्याशियों को वोट दे देंगे ? दे रहे हैं ?

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गुड है यह भी।

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आप को पता नहीं क्या लगता है पर इंडिया गठबंधन के लोगों को लगता है कि यह लोग वोट उन्हें दे देंगे। दे रहे हैं। उन की समझ यही है। एकमुश्त मुस्लिम वोट बैंक मिलने का गुरुर है यह। जातीय जनगणना का फितूर है यह। इसी समझ , फितूर और गुरुर के नशे में चूर हैं यह लोग। यह तो मुमकिन है कि आयुष्मान , राशन , पक्का मकान , शौचालय , गैस आदि सभी कल्याणकारी योजनाओं का सर्वाधिक लाभ पा कर भी कुछ लोग ऐलानिया मोदी को वोट नहीं देते हैं। क्यों कि अहसानफ़रामोश इंसानों की यह अलग प्रजाति है। यह उन का लोकतांत्रिक अधिकार भी है। कोई हर्ज़ नहीं। बंधुआ नहीं है कोई इस देश में। लेकिन अयोध्या में रामलला के दर्शन कर आप मोदी को वोट देने से मुकर जाएं , कुछ नहीं , बहुत मुश्किल है। यह तो राम की चाहत है। और चाहत को भुला देना कठिन होता है। स्थिति यह है कि अभी जिन असंख्य लोगों ने अयोध्या जा कर दर्शन नहीं किए हैं रामलला के , उन के वोट कहीं ज़्यादा मोदी को जा रहे हैं। यक़ीन न हो तो ज़मीन पर इस की पड़ताल कर लीजिए। और रामायण में गिलहरी प्रसंग याद कर लीजिए। लोग गिलहरी बने सक्रिय हैं। अयोध्या और काशी देश के पर्यटन नक्शे पर सब से बड़े केंद्र के रूप में उभर कर उपस्थित हैं तो अनायास। गोवा और आगरा के ताजमहल से ज़्यादा पर्यटक अब अयोध्या और काशी के सौभाग्य में उपस्थित हैं। अभी एक वीडियो में देखा कि अयोध्या में एक छोटा सा बच्चा तिलक , सिंदूर लगा कर रोज पंद्रह सौ रुपया कमाना बता रहा है। इंटरव्यू लेने वाला बच्चे से कहता है कि तब तो तुम एक डाक्टर के बराबर तनख्वाह ले रहे हो। बच्चा इतराते हुए अवधी में कहता है , डाक्टर से हम को कम समझे हो का ?

सोचना लाजिम है कि बिना किसी तर्क के , बिना किसी आधार के एक आदमी आह्वान कर देता है कि थाली बजानी है। समूचे देश में लोग थाली बजाने लगते हैं। एक आदमी कह देता है कि डाक्टरों पर फूल बरसाना है। लोग फूल बरसाने लगते हैं। लोग मर रहे हैं , कोरोना से तड़प रहे हैं पर दिया जलाने का आह्वान होता है। देश भर में लोग दिया जलाने लगाते हैं। थाली बजाने , दिया जलाने , फूल बरसाने से कोरोना नहीं जाने वाला था , सब लोग जानते थे।पर लोगों ने उस कठिन घड़ी में भी यह सब किसी उत्सव , किसी त्यौहार की तरह किया। यह दिया जलाना , थाली बजाना , फूल बरसाना दरअसल कोरोना के अवसाद से जूझ रहे लोगों को उन के अवसाद से बाहर लाने का एक उपक्रम था। मनोवैज्ञानिक तरीक़ा था , दुःख से बाहर खिड़की खोलने का। पर तंजबहादुरों के क्या कहने ! तंज की उन की वायलिन अभी तक बजती है। इन कुटिल कुंठितों का अवसाद आज तक नहीं गया। अच्छा इतने कम समय में , दुनिया की सब से बड़ी आबादी को तीन-तीन बार वैक्सीनेट करना , आक्सीजन देना हलवा परोसना था क्या ? पर यह सब संभव तो हुआ। वैक्सीनेट करने में , आक्सीजन देने में कहीं हिंदू-मुसलमान , ऊंच-नीच , अमीर-ग़रीब , जाति-पाति हुआ क्या ? एक छोटे से वर्ग द्वारा मूर्खता और कुटिलता की हद तक कुछ अफवाह फैलाई गई , यह अलग बात है।

गांधी अतुलनीय हैं। गांधी और मोदी की तुलना हो नहीं सकती। पर गांधी के बाद एक नरेंद्र मोदी ही हुआ है कि जिस के एक आह्वान पर समूचा देश एक साथ खड़ा हो जाता है। पाकिस्तान से अभिनंदन को आना है और पूरा देश टी वी खोल कर बैठ जाता है। अभिनंदन को आते हुए देखने के लिए। यह आसान है क्या ? 22 जनवरी , 2024 को राम और हनुमान के झंडे देश के अधिकांश घरों , बाज़ारों में फहरा कर दीपावली एक ही साल में पहले भी कभी दुबारा मनाई थी देश के लोगों ने ? लेकिन मनाई। तो क्या यह सभी सांप्रदायिक लोग हैं। अनपढ़ , जाहिल और गंवार लोग हैं। वामपंथियों के हिसाब से अफीम चाटे हुए लोग हैं ? पर बहुत सारे यह झंडे अभी तक फहरा रहे हैं लोगों के घरों पर। यह मुनादी भी तो मोदी ने ही की थी। मोदी की एक मुनादी पर भारत की जनता तो छोड़िए विश्व के तमाम नेता एक साथ भारत के पक्ष में खड़े हो जाते हैं। मिले सुर मेरा तुम्हारा , तो सुर मिले हमारा ! गाने लगते हैं।

इंडिया गठबंधन का कोई नेता ऐसी कोई मुनादी करने का सोच भी सकता है क्या ? है साहस ?

सपा की एक जन सभा में अखिलेश यादव की उपस्थिति में शिवपाल सिंह यादव माइक पर पूरी मज़बूती के साथ भाजपा के भारी बहुमत से जीतने का ऐलान कर देते हैं। तो आप इसे सिर्फ स्लिप ऑफ टंग मान लेते हैं तो यह आप की बलिहारी है। सच यह है कि देश के असंख्य लोगों की तरह शिवपाल के भी मन में यही चल रहा है। सो यह अनायास बाहर भी आ गया। स्लिप ऑफ टंग अगर है भी तो फिर यह कुछ वैसे ही हुआ कि जैसे सोनिया गांधी खुद को आक्सफोर्ड से पढ़े जाने की सूचना लोकसभा में दर्ज करवाती हैं और जब सुब्रमण्यम स्वामी खोज कर लाते हैं और तथ्य सहित बताते हैं कि सोनिया गांधी ऑक्सफोर्ड में कभी नहीं पढ़ीं तो सोनिया बड़ी मासूमियत से चूक मानती हुई इस सूचना को टाइपिंग एरर बता कर तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष से माफ़ी मांग लेती हैं। इतना बड़ा टाइपिंग एरर भी होता है कहीं भला ! इतना बड़ा स्लिप ऑफ टंग भी होता है भला !

फारुख अब्दुल्ला का पाकिस्तान प्रेम बीच चुनाव भी अभी जाग उठा है। हुआ यह कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने पी ओ के की बात की तो फारूख अब्दुल्ला तिलमिला गए। बोले पाकिस्तान ने भी कोई चूड़ियां नहीं पहन रखी हैं। पाकिस्तान के पास भी परमाणु बम है। मोदी ने एक भाषण में फारूख अब्दुल्ला को जवाब देते हुए बड़े प्यार से कहा कि चूड़ियां नहीं पहनी है पाकिस्तान ने तो चूड़ियां पहना देंगे ! सच यह है कि मोदी ने इंडिया गठबंधन को भी चूड़ियां पहना दी हैं। कांच की रंग-बिरंगी चूड़ियां। पूरे देश में खनखना-खनखना कर बज रही हैं यह चूड़ियां। मुसलसल बज रही हैं।

सुनाई नहीं दे रहीं इन चूड़ियों की आवाज़ , उन की खनखनाहट ?

हालत यह है कि मात्र मुस्लिम वोट बैंक की लालसा में लटपटाए अयोध्या में राम मंदिर पर सपा और अखिलेश यादव के बिगड़े और नफ़रती रुख से , आए दिन अनाप-शनाप बयान से उत्तर प्रदेश में यादव समाज के ज़्यादातर लोग उन का साथ छोड़ चुके हैं। यह ज़मीनी सचाई है। चुनाव के चार चरण बीत जाने के बाद भी अखिलेश यादव और उन के मौसेरे चाचा रामगोपाल यादव को यह तथ्य नहीं मालूम हो सका है तो इस से उन की राजनीति की दशा और दिशा समझी जा सकती है। ज़मीन और जनता से कट जाने का परिणाम है यह। कांग्रेस के तो तमाम प्रवक्ता और नेता तक खुलेआम कांग्रेस के राम मंदिर के विरोधी रुख के चलते टाटा , बाई-बाई कर चुके हैं। प्रमोद कृष्णम , रोहन गुप्ता , गौरव वल्लभ , राधिका खेड़ा जैसे अनेक लोग हैं। जो यह ऐलान करते हुए कांग्रेस से निकले कि कांग्रेस का रुख़ राम विरोधी है। सनातन विरोधी है। राम की बात करने पर पार्टी में उन्हें अपमानित किया जाता है। प्रमोद कृष्णम ने तो यहां तक कह दिया है कि राहुल गांधी एक सुपर पावर कमेटी बना कर सुप्रीमकोर्ट के राम मंदिर के फैसले को बदलने की मंशा रखते हैं। जैसे कि कभी राजीव गांधी ने शाहबानो पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला पलटा था , संसद में। राधिका खेड़ा का कहना है कि उन्हें कांग्रेस कार्यालय के कमरे में बंद कर अयोध्या में रामलला के दर्शन करने पर अपमानित किया गया। शराब पिलाने की कोशिश की गई। दुराचार की कोशिश की गई। राहुल और प्रियंका से इस की शिकायत भी की राधिका खेड़ा ने। पर सब चुप रहे। महाराष्ट्र में चव्हाण , संजय निरुपम जैसे कई कांग्रेसी , कांग्रेस छोड़ गए। आम आदमी पार्टी को समर्थन को ले कर दिल्ली कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अरविंदर सिंह लवली ही कांग्रेस छोड़ गए। सपा और कांग्रेस में जैसे भगदड़ है। सपा कितनी बार तो अपने उम्मीदवार ही बदल-बदल कर परेशान है। तो मतदाताओं ने भी कांग्रेस और सपा की ज़मीन छोड़ दी है। जनता-जनार्दन यह बात जानती है। लेकिन पार्टी के नेता लोग जाने कौन सी अफीम चाट कर बैठे हैं कि कुछ जानते ही नहीं।

अभी कुछ समय पहले वैक्सीन का गाना चला था। बुलबुले की तरह दो दिन में ही फूट गया , यह गाना , यह अलग बात है। पर यह गाना गाने वाले लोग भी कौन थे ? वह जो कहते थे कि यह तो भाजपा की वैक्सीन है , हम नहीं लगवाएंगे। और चुपके-चुपके लगवा भी लिए। बीच कोरोना में दिल्ली , मुंबई जैसे शहरों से मज़दूरों को भगाने वाले लोगों को लोग क्या भूल गए हैं। माना कि लोगों की याददाश्त बहुत कमज़ोर होती है। इमरजेंसी जैसे काले दिन भी भूल जाते हैं और अच्छे दिन आने वाले हैं का मज़ाक भी उड़ा लेते हैं। पर क्या लोग भूल गए हैं कि दिल्ली से मज़दूरों को भगाने के लिए अरविंद केजरीवाल ने और मुंबई से उद्धव ठाकरे ने क्या-क्या साज़िशें नहीं कीं। लोग नहीं भूले आक्सीजन की किल्लत के लिए अरविंद केजरीवाल का ड्रामा भी। न ही कोरोना को देश भर में फ़ैलाने के लिए तब्लीगी जमात की घृणित साज़िश। पर क्या आज तक तब्लीगी जमात के किसी के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई हुई ?

हुई कार्रवाई सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक के लिए सुबूत मांगने वालों के खिलाफ ? भारत तेरे टुकड़े होंगे इंशा अल्ला , इंशा अल्ला का नारा लगाने वाला कन्हैया कुमार बीते लोकसभा चुनाव में बिहार के बेगूसराय में ज़मानत ज़ब्त करवा कर अब पूर्वी दिल्ली में कांग्रेस उम्मीदवार है। यह और ऐसे अनेक उदाहरण हैं जिन में मोदी सरकार का धैर्य और उदारता पानी की तरफ साफ़ दिखती है। फिर भी मोदी तो तानाशाह है। फासिस्ट है। जुमलेबाज है। मोदी ने 2014 के चुनावी भाषणों में कहा था कि विदेशों में इतना काला धन है कि अगर वापस आ जाए तो सब के खातों में पंद्रह-पंद्रह लाख आ जाएगा। इस पाठ को विकृत कर आज तक बेचा जा रहा है और पूछा जा रहा है कि पंद्रह लाख खाते में आया क्या ? ऐसे ही कुछ पोलिंग बूथों पर मुस्लिम स्त्री-पुरुष की लंबी लाइन देख कर ऐलान पर ऐलान हुए जा रहे हैं कि मोदी तो गया। वोटिंग के कम प्रतिशत पर भी कुछ लोग ऐसे ख़ुश हो कर नाच रहे हैं गोया मोदी की ज़मानत भी नहीं बचने वाली है। ऐसे हसीन सपने देखने पर सिर्फ़ मुंगेर के ही लोगों का हक़ तो नहीं। हर कहीं , हर किसी का है।

कोरोना जैसी महामारी में लोग कोरोना से ज़रूर मरे पर भूख से भी कोई मरा क्या ? देश के किसी गांव , किसी शहर में ? किसी के पास कोई आंकड़ा हो , तथ्य हो तो बताए न। किसी के पास सूचना हो तो बताए कि हिंदू को राशन मिला , मुसलमान को नहीं मिला। इस जाति को मिला , उस जाति को नहीं मिला। हिंदुओं को वैक्सीन मिली , मुसलमानों को नहीं मिली। कहीं किसी सुविधा यथा पक्का मकान , शौचालय , गैस आदि में हिंदू-मुसलमान या जाति-पाति का खेल हुआ क्या ? जैसे कि उत्तर प्रदेश में मुलायम और अखिलेश की सरकार में सर्वदा यादव और मुस्लिम को प्राथमिकता दी जाती थी। हर प्राइज पोस्टिंग पर यादव , हर थानेदार यादव , हर ठेकेदार यादव। यादव नहीं तो मुसलमान। इसी लिए सपा में एम वाई फैक्टर को मुस्लिम-यादव की जगह अब मोस्टली यादव कहा जाने लगा है। मायावती राज में यही मामला दलित और मुसलमान का हो जाता था। बिहार में भी लालू-राबड़ी राज इसी लिए परिचित है। बकौल मनमोहन सिंह हर संसाधन पर पहला तो मुसलमानों का है ही। उत्तर प्रदेश के दंगों में अखिलेश यादव ने सिर्फ़ मुसलमानों को ही मुआवजा दिया। दिल्ली दंगों में केजरीवाल ने भी मुस्लिमों को ही मुआवजा दिया। डाक्टरों में भी मुस्लिम ही खोजा एक करोड़ रुपया देने के लिए।

मोदी-योगी राज में भी ऐसा हो रहा है क्या ? हो रहा है तो यह सब पब्लिक डोमेन में क्यों नहीं आ रहा। आना चाहिए। अतीक़ अहमद और मुख़्तार अंसारी जैसे हत्यारों की पैरवी में लगे लोग लेकिन कैसे बोलेंगे ऐसी बातों पर। सेक्यूलरिज्म की अफीम चाट कर कांग्रेस की गोद में बैठे राजदीप सरदेसाई , ध्रुव राठी रवीश कुमार , पुण्य प्रसून वाजपेयी , अजित अंजुम , अभिसार आदि-इत्यादि गोदी मीडिया कहते नहीं अघाते। पर इधर मोदी , अमित शाह के धड़ाधड़ इंटरव्यू चैनलों , अख़बारों में आ रहे हैं। तो यह लोग भी राहुल , अखिलेश , तेजस्वी , उद्धव ठाकरे , शरद पवार , सोनिया गांधी , ममता बनर्जी आदि-इत्यादि के इंटरव्यू क्यों नहीं चला रहे। है कुछ कहने -बताने के लिए इन के पास भी ?

जी-20 की सफलता , और इस बहाने अधिकांश देशों के मुखिया जिस तरह गांधी समाधि पर नतमस्तक हुए यह क्या मामूली घटना थी ? सड़क , रेल , एयरपोर्ट जैसे क्षेत्र में युगांतरकारी कार्य क्या लोग देख नहीं रहे ? कि कश्मीर को फिर से स्वर्ग बनते और देश से आतंकवाद को समाप्त होते हुए नहीं देख रहे लोग क्या ? कि पाकिस्तान को घुटना टेक भिखारी बनते नहीं देख रहे ? मालदीव जैसे देश ने अभी-अभी घुटने टेके हैं। देश की यह कूटनीतिक सफलता और आर्थिक संपन्नता एक साथ देखना सुखद है।

कांग्रेस का घोषणा पत्र एक से एक उलटबासी परोसता है। घोषणा पत्र में फ़ोटो भी विदेशी छापता है। हिंदू वोट बांटने के लिए जाति जनगणना वाला शकुनि का पासा फ़ेंक कर मुस्लिम आरक्षण की बात करता है। फिर भी तोहमत यह कि मोदी हिंदू-मुसलमान करता है। अभी एक जनसभा में किसी स्त्री ने पूछ लिया राहुल गांधी से कि मोदी ने जो कंपनियां बेची हैं , आप की सरकार बनी तो क्या आप उसे वापस ले लेंगे ? पहले तो राहुल ने सवाल ही नहीं समझा। फिर मंच पर खड़ी प्रियंका से पूछा तो प्रियंका ने सवाल समझा दिया। सुन कर राहुल बड़ी बेचारगी से बोले , वापस तो नहीं ले सकते। फिर सैम पित्रोदा , मणिशंकर अय्यर जैसे नवरत्न भी हैं कांग्रेस के पास। और इन नवरत्नों से ऊपर स्वर्ण रत्न राहुल गांधी ख़ुद हैं। अल्लामा इक़बाल का वह एक शेर है न :

हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है

बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा-वर पैदा

तो इसी तर्ज पर मान लीजिए राहुल गांधी चमन पूतिया जैसी अविरल प्रतिभा भी बड़ी मुश्किल से पैदा होती है।

सेक्यूलरिज्म और मुस्लिम तुष्टिकरण की बीमारी में ध्वस्त इंडिया गठबंधन के लोगों को लगता है कि धर्म की गांठ और लत सिर्फ़ मुसलमानों में ही है। हिंदुओं में नहीं। जब कि तथ्य यह है कि हिंदुओं में भी धर्म की जड़ें बहुत गहरी हैं। बस वह एक सांस्कृतिक रंग लिए हुई हैं। अयोध्या , काशी , मथुरा की परंपरा और विरासत में पगी हुई हैं। कट्टरता के रंग में धंसी हुई नहीं हैं। सिर तन से जुदा के अंदाज़ में नहीं हैं। हिंसक नहीं हैं। जहालत की मारी हुई नहीं हैं। हां , लोगों को मालूम नहीं कि मुसलमानों में भी धर्म की कई धाराएं हैं , जो उन्हें बुरी तरह बांटती और तोड़ती हैं। मस्जिद , मजार और कब्रिस्तान तक बंटे हुए हैं। ठीक वैसे ही जैसे जब हिंदुओं की जातीय जनगणना की बात आती है तो इंडिया गठबंधन के लोग उछलने लगते हैं। क्या इंडिया गठबंधन के लोग नहीं जानते कि मुसलमानों में कट्टरता ही नहीं जातियां भी हिंदुओं से कहीं ज़्यादा हैं। लेकिन अभी चूंकि उन्हें मंडल-कमंडल के संयुक्त वोट बैंक में छेद करने की रणनीति पर काम करना है , इस लिए सिर्फ़ हिंदुओं की जनगणना। वामपंथी बुद्धिजीवियों के विष का तकिया लगा कर सोने वाले इंडिया गठबंधन के लोगों को इन दिनों गगन बिहारी राजनीति का चश्का इस क़दर लगा है कि वह भूल गए हैं कि देश के लोग विकास और सम्मान का स्वाद अब जान चुके हैं। अमरीकी व्यापारी जॉर्ज सोरस के फेंके पैसे के जाल में आने वाले नहीं हैं। चीनी फंडिंग वाले न्यूज़ क्लिक , वायर आदि औजारों पर जंग लग चुकी है। उन का एजेंडा तो पानी मांग गया है।

कभी 1977 में इंदिरा गांधी को रायबरेली से चुनाव हराने वाले राजनारायण , चौधरी चरण सिंह के हनुमान कहे जाते थे। हनुमान मतलब पक्के भक्त। पर 1984 में यही राजनारायण , चौधरी चरण सिंह से नाराज हो कर बागपत से उन के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ गए। चौधरी चरण सिंह लेकिन राजनारायण से नाराज नहीं हुए। सतर्क हो गए। बागपत में चुनाव संभाल रहे लोगों की मीटिंग कर स्पष्ट निर्देश दिया कि राजनारायण का किसी भी स्तर पर अपमान नहीं होना चाहिए। राजनारायण या उन के लोग जहां कहीं भी मिल जाएं , आमने-सामने हो जाएं तो उन का सम्मान करें। पांव छू लें। हमेशा सतर्क रहें। अपने लोगों से कहा कि राजनारायण जी पेटिशन एक्सपर्ट हैं। उन से सर्वदा सतर्क रहें। ऐसी कोई ग़लती नहीं करें कि वह हमारे ख़िलाफ़ कोई पेटिशन दायर कर दें। चौधरी चरण सिंह के लोगों ने यही किया। राजनारायण को ऐसा कोई अवसर नहीं दिया कि वह पेटिशन की सोच भी पाएं। बागपत में उन का हर कहीं सम्मान करते रहे चौधरी के लोग। वह लोग जो जाट थे। जाट जो अपनी लंठई के लिए , अकड़ और अहंकार के लिए कुख्यात हैं।

पर आज इंडिया गठबंधन के लोग ?

ख़ास कर राहुल गांधी की भाषा देख लें। मोदी ने राहुल , प्रियंका को एन आर आई वैसे ही तो नहीं बता दिया है। अच्छा अमेठी में राजस्थान के मुख्य मंत्री अशोक गहलोत किल्ला गाड़ कर बैठ गए हैं। ड्यूटी लगा दी गई है। इसी तरह रायबरेली में छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्य मंत्री भूपेश बघेल को तैनात कर दिया गया है। जिता लेंगे कांग्रेस को यह लोग ?

22 जनवरी , 2024 के दिन अयोध्या में जिस दिन राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा हुई देश के विभिन्न क्षेत्र के जितने सेलिब्रेटी एक साथ अयोध्या में इकट्ठे हुए , कभी किसी और अवसर पर नहीं हुए। कभी कहीं किसी एक अवसर पर हुए हों तो कोई बताए भी। लेकिन पहले मुहूर्त का रोना रोया गया। फिर शंकराचार्य का रोना रोया गया। एक शंकराचार्य ने कहा भी कि इस भीड़ में जा पाना मुमकिन नहीं है। पर कांग्रेस पोषित एक शंकराचार्य की बिना पर शंकराचार्य की बीन बजती रही। ठीक वैसे ही जैसे संविधान की बीन जब तब बजने लगती है। 2019 में भी यह संविधान की बीन बजी थी। कहा गया था कि अगर मोदी आ गया तो फिर कभी चुनाव नहीं होंगे। लेकिन 2024 में चुनाव तो हो रहे हैं। अच्छा ख़ुदा न खास्ता जब इंडिया की सरकार बन ही गई तो मुस्लिम समाज को आरक्षण क्या बिना संविधान में संशोधन के मिल जाएगा ?

नहीं न ?

लेकिन भरमाना है। भरमा रहे हैं।

आज अभी-अभी मोदी के नॉमिनेशन में काशी की सड़कों पर जैसी अपार भीड़ दिखी है , वह अप्रतिम है। जैसे समूची काशी उमड़ पड़ी थी। इस भीड़ में बनारस के मुसलमान भी उपस्थित थे। पूरे जोश-खरोश के साथ। लोग सुबह 6 बजे से मोदी की प्रतीक्षा में खड़े हो गए। ट्रेन का टिकट कैंसिल करवा-करवा कर मोदी को देखने के लिए रुक गए। बीमार होने के कारण नीतीश को छोड़ कर ग्यारह राज्यों के मुख्यमंत्री , कई केंद्रीय मंत्री और समूचा एन डी ए परिवार जिस तरह उपस्थित था हर बार की तरह , वह सायास नहीं अनायास था। प्रस्तावक में ज्योतिषी गणेश शास्त्री [ ब्राह्मण ] ,समेत दो ओ बी सी और एक दलित थे। वही गणेश शास्त्री जिन्हों ने अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा का मुहूर्त निकाला था।

जैसा रोड शो मोदी ने लगातार दो दिन में पटना और बनारस में किया है , इंडिया गठबंधन के लोगों को क्यों नहीं करना चाहिए। क्यों नहीं करते। इन सभी रोड शो में , रैली में महाकुंभ जैसी भारी भीड़ तो थी ही , मोदी को देख कर , छू कर मारे ख़ुशी के लोग रोने लग रहे थे। क्या बच्चे , क्या स्त्रियां और क्या वृद्ध ! मालवीय जी की मूर्ति पर माल्यार्पण के बाद बनारस में जिस मार्ग पर मोदी का रोड शो होता है , हुआ है उस की एक सांस्कृतिक परंपरा भी है। आदि शंकराचार्य विश्वनाथ मंदिर के दर्शन के लिए इसी मार्ग से गए थे। स्वामी विवेकानंद भी। नेता जी सुभाषचंद्र बोस भी। और भी अन्य लोग। दक्षिण भारत में नरेंद्र मोदी के तमाम शहरों के रोड शो में भी लोगों का हुजूम देखा गया है। लोग आरती की थाल ले कर दूर से ही मोदी की आरती करते दिखे हैं , दक्षिण भारत के शहरों में। घंटा-घड़ियाल बजाते हुए , पुष्प वर्षा करते हुए लोग विभोर होते रहे हैं। और यह बाहर से गए लोग नहीं , स्थानीय लोग थे। मुस्लिम पुरुष और स्त्रियां भी झुंड के झुंड थीं। तो आप को क्या लगता है काशी के कोतवाल बाबा भैरवनाथ ने इन्हें भेजा था , इस रोड शो में ? हो सकता है। पर असल बात है मोदी का चौतरफा काम। जो लोगों को चुंबक की तरह मोदी की तरफ खींच लाता है। केरल जैसे मुस्लिम और ईसाई बहुल प्रदेश में भी। तमिलनाडु जहां कुछ लोग सनातन को एड्स , कैंसर बताने में बढ़-चढ़ कर हैं। उत्तर भारत के प्रदेशों को गोमूत्र प्रदेश कहते हैं। वहां भी जनता-जनार्दन टूटी पड़ी दिखी है।

नरेंद्र मोदी इस रोड शो को जनता का दर्शन बताते हैं। बनारस में जनता का दर्शन करते हुए , बाबा विश्वनाथ के दर्शन करने जाते हैं। इस रोड पर सैकड़ों मंदिर हैं। दक्षिण से लगायत उत्तर तक के समुदाय के। मुस्लिम समाज का एक बड़ा वर्ग भी रहता है इसी मार्ग पर। लेकिन कभी कोई काला झंडा या विरोध नहीं दिखा। कल बनारस में इस मार्ग के दोनों तरफ भीड़ इतनी थी कि तिल रखने की जगह नहीं थी। मार्ग पर गुलाब की पंखुड़ियां। छत , खिड़की , बालकनी सब ठसाठस। इसी तरह एक दिन पहले पटना में हुए रोड शो में भी सड़क के दोनों तरफ भीड़ इस कदर थी कि वहां भी कहीं तिल रखने की जगह नहीं थी। छत , खिड़की , बालकनी ठसाठस। दो किलोमीटर का रोड शो , तीन किलोमीटर में अचानक बदल गया। पर क्या कीजिएगा , बनारस में कांग्रेस प्रत्याशी अजय राय बड़े ठाट से कहते हैं कि हम बनारसी हैं। लोग हमारे साथ है और बनारस के लोग मोदी को भारी वोट से हरा रहे हैं। तब जब कि अजय राय की ज़मानत बचनी कठिन है।

ठीक यही हाल समूचे इंडिया गठबंधन का है। जनता तो जनता , नेता साथ छोड़ चुके हैं। लेकिन यह लोग संविधान बचाने के लिए , आरक्षण बचाने के लिए , तानाशाह को हटाने के लिए एकजुट हैं। काश कि यह लफ्फाज लोग सचमुच एकजुट होते और जनता भी इन के साथ होती। आप की राज्य सभा सांसद स्वाति मालीवाल मुख्यमंत्री केजरीवाल के घर में उन के पी ए द्वारा पिट जाती हैं। पुलिस को फोन कर के बुलाती हैं। रिपोर्ट लिखवाने थाने भी जाती हैं। पर बिना रिपोर्ट लिखवाए वापस हो जाती हैं। फोन स्विच आफ कर अंतर्ध्यान हो जाती हैं। पर केजरीवाल समेत समूचा गठबंधन चुप रह जाता है। इस चुप्पी में सभी एकजुट हैं।

एक समय मोदी से नाराज आडवाणी कहते थे कि मोदी बहुत बड़े इवेंट मैनेजर हैं। आडवाणी ठीक है कहते थे। पर तब आडवाणी यह बताना भूल गए थे कि मोदी बहुत बड़े इलेक्शन मैनेजर भी हैं। 2014 , 2019 में तो यह साबित हुआ ही। 2024 में यह कहीं ज़्यादा मज़बूती से साबित होने जा रहा है।

नरेंद्र मोदी के कुछ अंतर्विरोध भी हैं। खुलेआम हैं। भाषणों में कई बार लटपटा जाते हैं। कुछ का कुछ बोल जाते हैं। जैसे 2014 में मगहर की एक सभा में बोल गए कि गोरख , कबीर , गुरू नानक आदि यहां बैठ कर विचार विमर्श करते थे। यह ठीक है कि कबीर और गुरू नानक जैसे लोग गुरू गोरखनाथ के अनन्य अनुयायी हैं। नाथपंथी हैं। पर समयकाल इन सब का अलग-अलग है। सो एक साथ कभी नहीं बैठे। विचार विमर्श का तो प्रश्न ही नहीं। अभी और बिलकुल अभी उड़ीसा में नवीन पटनायक की धुलाई करते हुए मोदी कह गए कि नवीन बाबू को तो ज़िलों की राजधानी के बारे में नहीं मालूम। ऐसी उलटबासियां जब तब नरेंद्र मोदी उपस्थित करते ही रहते हैं।

पर अपने राहुल गांधी ?

जैसे उलटबासियों के सागर हैं। बहुतेरे राजनीतिज्ञ हैं। किस-किस का नाम लें। राजीव गांधी और संजय गांधी भी एक से एक खटराग कर गए हैं।

महाभारत में एक क़िस्सा आता है , जो कमोवेश सभी लोग जानते हैं। कि श्रीकृष्ण के पास पहले दुर्योधन पहुंचा था। मारे घमंड के श्रीकृष्ण के सिरहाने बैठा। अर्जुन बाद में पहुंचे और पैताने बैठे। श्रीकृष्ण ने पहले अर्जुन से बात शुरु की और दुर्योधन के पहले आने के हस्तक्षेप को मुल्तवी करते हुए तर्क दिया कि पहले उन्हों ने अर्जुन को देखा , सो वह पहले अर्जुन से बात करेंगे। और की भी। पर श्रीकृष्ण जब सोए हुए थे तब एक घटना और घटी। जो कम लोग जानते हैं। हुआ यह कि दुर्योधन तो पहले ही से पहुंचा हुआ था। पर जब अर्जुन आए तो दुर्योधन ने अर्जुन पर तंज करते हुए पूछा , कहिए इंद्र पुत्र कैसे आना हुआ ? अर्जुन तिलमिला कर रह गए पर चुप रहे।

गौरतलब है कि कुंती के तीन पुत्र थे , युधिष्ठिर , भीम और अर्जुन। कर्ण को मिला लें तो चार पुत्र। कर्ण विवाह पूर्व सूर्य के पुत्र हैं। जब कि अर्जुन , कुंती-पाण्डु विवाह के बाद भी इंद्र पुत्र हैं। तो दुर्योधन ने इसी बात पर तंज किया। ख़ैर , बाद में श्रीकृष्ण की बात जब अर्जुन से हो गई तो दुर्योधन की तरफ मुखातिब होते हुए श्रीकृष्ण ने दुर्योधन से कहा कि कहिए व्यास नंदन , आप का कैसे आना हुआ ? यह सुन कर दुर्योधन तिलमिला गया। पर चुप रहा। कोई प्रतिक्रिया नहीं दी श्रीकृष्ण को। असल में श्रीकृष्ण दुर्योधन और अर्जुन के आने के समय सोए ज़रुर थे पर दोनों का संवाद सुन लिया था।

सब जानते हैं कि धृतराष्ट्र , पाण्डु और विदुर महर्षि व्यास की संतान थे। लंबी कथा है , यह भी। तो इसी बिंदु पर कटाक्ष करते हुए श्रीकृष्ण ने दुर्योधन को इंगित किया कि अगर अर्जुन इंद्र पुत्र हैं तो बेटा दुर्योधन , तुम भी पाक-साफ़ नहीं हो। हो तो व्यास नंदन ही।

तो एक से एक व्यास नंदन हमारी भारतीय राजनीति में भरे बैठे हैं। अपना-अपना विष समेटे। आप के हिस्से किस का क्या आता है , आप ही को देखना-समझना और भोगना होगा।

साभार:दयानंद पांडेय-(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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