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आदिगुरु भगवान शंकराचार्य की प्रतिमा की स्थापना सनातन समाज के लिए गौरव का विषय है।

-विशाल झा की कलम से-

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PM Modi inaugurated statue of Adi Shankracharya in Kedarnath.

Positive India:Vishal Jha:
आदिगुरु भगवान शंकराचार्य की प्रतिमा की स्थापना सनातन समाज के लिए गौरव का विषय है।

एक नागरिक होने के तौर पर मैं इसे राजनीति का स्वर्ण काल मानता हूं। जिसमें अद्वैत जैसे व्यापक किंतु गुढ़ दर्शनों का भी कितना ख्याल है। किंतु इस बात का मुझे अफसोस बहुत है कि भगवान शंकराचार्य की उस गद्दी से आज ये आवाज सुनाई पड़ती है कि शासक दिशाहीन है। शासन दिशाहीन है। लोकतंत्र दिशाहीन है।

अब प्रश्न है मेरा ये कि लोकतांत्रिक तरीके से चुने एक प्रतिनिधि को दिशाहीन बताना क्या इतना सरल है? मतलब हुआ कि देश का तमाम हिंदू जनमानस दिशाहीन है। चलो मान लिया। लेकिन इस दिशाहीनता को ठीक करने का दायित्व किसी ना किसी के ऊपर तो होगा?

क्या आदि गुरु शंकराचार्य होते तो भारत का हिंदू जनमानस आज इस प्रकार से दिशाहीन होता क्या? उनके द्वारा बनाए गए मठ पर बैठे मठाधीश केवल देश के द्वारा दिए गए लोकतांत्रिक निर्णय को अपशब्द बोलने के लिए बैठे हैं क्या? अब उनका इतना ही कार्य रह गया है?

सदियों बाद वीरान से वीरान सभ्यताओं में जन्में नए-नए पंथ मजहब आज दुनिया भर के देशों में अपना प्रभुत्व स्थापित किए हुए हैं। लेकिन हमारे भगवान आदि गुरु शंकराचार्य के अद्वैत दर्शन उपक्रम के बावजूद आज हमारे ही देश के हिंदू जनमानस दिशाहीन हैं। फिर मठ पर बैठे मठाधीशों को जगतगुरु का दर्जा कैसे प्राप्त होगा?

परम आदरणीय शंकराचार्य द्वारा आठवीं सदी में देश में 13 अखाड़े स्थापित किये गये। भगवान भोलेनाथ की कृपा से अथाह धन-संपत्ति भूमि किसी चीज की कमी नहीं रहती है अखाड़ा परिषद को। लेकिन क्या हो गया है, इन संस्थाओं से काम और मद से लिप्त आत्महत्याओं की स्थिति में नरेंद्र गिरी निकलता है?

हमारे लिए बहुत शर्म की बात है ये। इन मठाधीशों को हम अपनी तरफ से शर्म प्रेषित करते हैं। शर्म प्रेषित करते हैं उन जड़ हिंदुओं को भी जो प्रधानमंत्री मोदी की केदारनाथ यात्रा पर प्रश्न उठा रहे हैं, कि वहां पर शंकराचार्य जी को क्यों आमंत्रित नहीं किया गया। वहां बैठे संत कालनेमि संत थे।

साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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