दिल्ली पर चढ़ाई के लिए अब उन को किसान याद आये
इमरान खान को शांति दूत और चीन को अपना बाप बताने वालों को अब किसान याद आ गए हैं।
Positive India:दयानंद पांडेय;8 दिसंबर:
पाकिस्तान के इमरान खान को शांति दूत और चीन को अपना बाप बताने वालों को अब किसान याद आ गए हैं। सेना को बलात्कारी बताने वाले, सुप्रीम कोर्ट को भाजपाई, चुनाव आयोग को मोदी आयोग बताने वालों को अब किसान याद आ गए हैं। असहिष्णुता की आंधी चलाने वाले, अभिव्यक्ति की आज़ादी मांगने वालों को, मॉब लिंचिंग, सेक्यूलरिज़्म की रक्षा, संविधान बचाओ की मुहीम चलाने वालों को अब किसान याद आ गए हैं।
हर घर से अफजल निकलेगा, भारत तेरे टुकड़े होंगे ,भारत माता चोर है, भारत माता की जय बोलना पाप है, वंदेमातरम अपराध है, गाय का मांस खाना अधिकार है बताने वालों को अब किसान याद आ गए हैं। कश्मीर को पाकिस्तान को सौंप देने की पैरवी करने वाले, तीन तलाक खत्म करने को मज़हब में दखल बताने, पत्थरबाजों को मासूम बताने वाले लोग ,आतंकियों के लिए आधी रात सुप्रीम कोर्ट खुलवा देने वालों और 370 का विरोध खत्म करने का विरोध करने वालों की किस्मत फिर भी नहीं जगी और अब जब सारे टोने-टोटके आज़मा कर थक-हार गए हैं तो उन्हें किसान याद आ गए हैं।
कोरोना काल में अपने वतन लौटने वाले मज़दूरों को बिस्किट बांट कर क्रांति की अलख जगाने वाले लोग अब मज़दूरों के बाद किसानों का बोझ बनने को आतुर हैं। एक पुराना मुहावरा है नाखून कटवा कर शहीद बनना। यह वही लोग हैं। यह लोग अब इतने हताश हैं अपने अंधेरों में इतने गुम हैं कि हर जुगनू को सूर्य समझते का भ्रम बना लेते हैं। आप को याद ही होगा कि किसानों को बदनाम करने के लिए यही लोग सड़क पर कभी दूध, कभी आलू फेंकते नज़र आए हैं। वह एक गाना है न कि हमरे बलमा बेईमान हमें पटियाने आए हैं।
और फिर यह व्यापारी किसान आंदोलन करने आए हैं कि दिल्ली शहर की छाती पर मूंग दलने आए हैं। यह पहली बार सुन-देख रहा हूं कि आंदोलनकारी महीनों का राशन ले कर आए हैं। बादाम घोंट रहे हैं। गरमी में रहने के लिए अभी से ए सी का बंदोबस्त तक कर के आए हैं। मय सोलर लाइट के। बढ़िया बिस्तर , बढ़िया कंबल वगैरह के साथ। गुड है किसानों की यह समृद्धि भी। अच्छा लगता है। पर पूछना तो फिर भी बनता है कि यह लोग आंदोलन करने आए हैं या दिल्ली पर चढ़ाई करने।
पूर्वी पाकिस्तान में जब 90 हज़ार पाकिस्तानी सेना ने भारतीय सेना के आगे समर्पण किया तो जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा ने पाकिस्तानी सेना के हथियार और राशन का अकूत भंडार देखा तो पाकिस्तान के जनरल नियाजी से चकित हो कर पूछा कि आप के पास इतनी सेना थी , हथियार थे , रसद था फिर आप ने आत्म समर्पण क्यों किया ? जनरल अरोड़ा के साथ उस समय भारतीय एयर फ़ोर्स के भी एक अफसर थे। जनरल नियाजी ने बहुत लाचार हो कर भारतीय एयर फ़ोर्स की ड्रेस पर बने भारतीय एयर फ़ोर्स के सिंबल को दिखाते हुए कहा , इन के कारण। सच यही था भी।
भारतीय एयर फ़ोर्स ने पाकिस्तानी सेना पर इतने बम बरसाए कि वह हार गए। थक कर जान बचाने के लिए उन्हें आत्म समर्पण का ही रास्ता सूझा। क्यों कि पाकिस्तान ने पूर्वी पाकिस्तान को लूटा तो बहुत था पर वहां के लिए कुछ किया ही नहीं था। एयर बेस तक नहीं था। जो भी जहाज पश्चिमी पाकिस्तान से वहां पहुंचता , भारत के आकाश से हो कर गुज़रना होता। और भारत उन्हें मार गिराता। सो पूर्वी पाकिस्तान में तब हवाई हमलों से बचने का कोई रास्ता न था। लाचार हो कर तब पाकिस्तान ने अमरीका से मदद मांगी।
अमरीका ने समुद्र के रास्ते अपना सातवां बड़ा भेजा। जिस में फाइटर प्लेन थे। तब की प्रधान मंत्री ने फौरन सोवियत संघ में ब्रेजनेव से बात की। ब्रेजनेव ने भी बिना किसी देरी के सोवियत संघ का बेडा अमरीका के पीछे लगा दिया। अमरीका को लगा कि ऐसे तो तीसरा विश्व युद्ध हो जाएगा। अमरीका ने बुद्धि से काम लिया और बीच रास्ते से अपना सातवां बड़ा वापस लौटा लिया। सोवियत संघ ने भी। पूर्वी पाकिस्तान में जनरल नियाजी को समर्पण करना पड़ा और बांगला देश हमारे सामने उपस्थित हो गया। दुनिया का भूगोल बदल गया।
तय मानिए कि यह किसान आंदोलन भी आंदोलन का स्वरूप बदल देगा। अभी बिसात बिछी नहीं है। बिछने दीजिए। विपक्ष को किसानों के कंधे पर उछल-कूद कर लेने दीजिए। मोदी सरकार के लिए किसानों से निपटना सचमुच एक चक्रव्यूह तोड़ना था। पर किसानों के आंदोलन में यकबयक समूचे विपक्ष का कूद पड़ना केंद्र सरकार के लिए संजीवनी बन कर उपस्थित हो गया है। विपक्ष खुद तो टूटेगा ही, डूबेगा ही। हम तो डूबेंगे, सनम तुम को भी ले डूबेंगे की तर्ज़ पर किसान आंदोलन का भी गर्भपात करवा देगा। सरकार की दो ताकत है। एक तो मज़बूत कृषि बिल। जिस की पैरोकारी और ज़मीन आज विपक्ष में बैठे लोगों ने ही तैयार की हुई है। कायदे से यह कांग्रेस का बिल है। शरद पवार , मुलायम , वामपंथियों द्वारा पालित, पोषित। भाजपा ने अपनी पैकेजिंग लगा कर क़ानून बना दिया है। बस। क्या है कि किसी बैल, किसी कुत्ते यहां तक कि किसी शेर को भी समझाना आसान नहीं होता। पर उस के मालिक को समझाना बहुत आसान होता है। और अपने विपक्ष के लिए बशीर बद्र का एक शेर याद आता है :
चाबुक देखते ही झुक कर सलाम करते हैं
शेर हम भी हैं , सर्कस में काम करते हैं।
शाहीन बाग़ बसाना आसान होता है। उस को उजड़ने से बचाना बहुत कठिन। यह बात तो आप भी बहुत अच्छी तरह जानते हैं। दिल्ली में रामलीला मैदान के समीज सलवार वाले रामदेव भी आप को भूले नहीं होंगे। याद यह भी होगा कि कैसे तब पांच-पांच कैबिनेट मिनिस्टर रामदेव को रिसीव करने तब एयरपोर्ट पहुंचे थे। फिर समीज सलवार में देहरादून एयरपोर्ट पर भी इन्हीं लोगों ने रामदेव को पहुंचाया। याद आप को अन्ना आंदोलन भी होगा, जिस आंदोलन का गर्भपात करवा कर अरविंद केजरीवाल मुख्य मंत्री बन गए। लोग अन्ना को लगभग भूल गए। तो ऐसे हाई-फाई आंदोलनों का हश्र आप के सामने है। रामदेव बहुत सफल हो सकते थे अपने आंदोलन में अगर वह व्यवसाई न होते। कांग्रेस ने रामदेव के व्यवसाई को चहेट लिया था। अन्ना आंदोलन भी बहुत सफल हो सकता था अगर अरविंद केजरीवाल जैसा महत्वाकांक्षी गद्दार उन के साथ नहीं होता। तो इस किसान आंदोलन के छेद और इस से निकलने और निपटने के रास्ते आप को क्या लगता है नरेंद्र मोदी ने अब तक नहीं खोज लिए होंगे।
जो आदमी भारतीय चुनावी राजनीति में किसिम-किसिम के वोट बैंक के मिथ और गणित नष्ट कर सकता है। एक साथ समूचे विपक्ष को पागल बना कर नचा-नचा कर शक्तिहीन कर सकता है। कांग्रेस जैसी कुटिल पार्टी को कोने-कोने से विपन्न कर सकता है। चीन जैसे चालबाज को झूला झुला कर झोला बना सकता है। पाकिस्तान को दुनिया भर से काट कर मुहल्ले का कुत्ता बना सकता है। कश्मीर में जिस सफाई से 370 खत्म कर शांति का सूरज उगा सकता है। अच्छा आप ही बताइए इस बार कश्मीर में संपन्न हुए पंचायती चुनाव को ले कर आप की क्या राय है। कहीं से किसी उपद्रव या बहिष्कार की खबर किसी को मिली हो तो बताए भी।
वामपंथी अवधारणा है कि सब कुछ सब में बराबर-बराबर बांट दो। गुड बात है। पर आप ज़मीन , संपत्ति , जल , जंगल , ज़मीन सब बांट दीजिए सब में बराबर-बराबर। बुद्धि , प्रतिभा जो कहिए , सब में बराबर-बराबर ही बांट देंगे ?अच्छा कूटनीति , कमीनापन आदि भी राजनीति में एक अनिवार्य तत्व होता है। यह भी सभी में बराबर-बराबर बांट सकते हैं। अपने वामपंथी, यहीं मार खा जाते हैं। हम होंगे कामयाब एक दिन ! वह गाते रह जाते हैं। पर कभी कामयाब नहीं होते। पर देखिएगा कि यह किसान आंदोलन भले न कामयाब हो पर किसान ज़रूर कामयाब होंगे और सरकार भी। देखिएगा कि सरकार ही किसानों को उन के विचलन और भटकाव से बाहर निकालेगी। किसानों को जो अभी आक्रमणकारी भाव में दिल्ली पर हमलावर हैं , विपक्ष के साथ लामबंद हैं , उन्हें अन्नदाता के भाव में वापस भेजेगी।
साभार:दयानंद पांडेय(ये लेखक के अपने विचार हैं)