तिरुपति लड्डू विवाद में प्रसाद को माथे से लगा कर श्रद्धापूर्वक ग्रहण करने वाले श्रद्धालु का कोई दोष नहीं
-सर्वेश कुमार तिवारी की कलम से-
Positive India: Sarvesh Kumar Tiwari:
तिरुपति लड्डू विवाद के बाद से देख रहा हूँ, आम जन की धार्मिक भावनाओं का मजाक उड़ाते सैकड़ों लेख रोज दिखते हैं। मन्दिर जाने वालों को अंधभक्त, मूर्ख और जाने क्या क्या… नाम हिन्दुओं वाले हैं पर अट्ठहास राक्षसी है… उन्हें आनन्द आ रहा है। वे प्रसन्न हैं कि लोगों का धर्म खण्डित हो गया।
तो सुनिये! न हमारी आस्था पीपल के पत्ते पर टिकी हुई है जो हल्की हवा से गिर जाएगी, न ही हमारा धर्म इतना कमजोर है जो एक भूल से खंडित हो जाएगा। अपराध लड्डू बनाने वाले का था, और व्यवस्था देखने वाली तात्कालिक सरकार का था। समय उन्हें दंडित करेगा, इसमें हमें रत्ती भर संदेह नहीं। पर प्रसाद को माथे से लगा कर श्रद्धापूर्वक ग्रहण करने वाले श्रद्धालु का कोई दोष नहीं, कोई अपराध नहीं। वह किसी भी न्यायलय के खठघरे में खड़ा नहीं होगा।
हमारे यहाँ एक नन्हा बटुक एक मंत्र से लौटे के जल में गङ्गा, यमुना, सरस्वती, सिंधु कावेरी की पवित्रता उतार लेता है। मिट्टी की आकृति में सदाशिव और गोबर के गोले में गणेश की स्थापना कर लेने वाली परम्परा से हैं हम। ऐसी सहज व्यवस्था में क्या एक दूषित पदार्थ खा लेने का उपचार न होगा? गङ्गा की एक बूंद हजार अपराध हर लेती है, शुद्ध कर देती है। देव के समक्ष सच्चे हृदय से की गई एक क्षमा याचना समस्त पापों को खंडित कर देती है। फिर यह तो भूल है…
श्रीमद्भागवत महापुराण में अजामिल नामक व्यक्ति की कथा आती है। घोर अधर्मी, महापापी… उसके जीवन का एक ही पुण्य था कि उसने अपने पुत्र का नाम नारायण रखा था। मृत्युशैया पर पड़ा तो मोह के कारण दिन भर पुत्र का नाम लेकर चिल्लाता रहता। नारायण… नारायण… नाम का प्रभाव था, मुक्ति मिल गयी उसे। फिर भक्तों को क्यों नहीं मिलेगी? मिलेगी, बल्कि मिल चुकी होगी… मैं तो यहाँ तक कह रहा हूँ कि उनका धर्म खण्डित ही नहीं हुआ।
पर तुम? किसी राजनैतिक चेहरे की गुलामी करते करते इतने पतित हो गए कि अपने ही भाइयों का मजाक उड़ाने लगे? एक क्षण के लिए भी नहीं सोचा कि वे निर्दोष लोग यूँ ही अपराधबोध से भरे होंगे, अब तुम्हारा मजाक उन्हें कितनी पीड़ा देगा? तिरुपति मन्दिर में क्या किसी एक ही दल के समर्थक जाते थे? क्या दूसरे दल के समर्थकों/मतदाताओं में आस्था नहीं है?
जिन नेताओं की गुलामी करते करते तुमने अपना नाश कर लिया, वह तुम्हारे साथ एक तस्वीर तक नहीं खिंचायेगा। उसके लिए तुम सिवाय भीड़ के और कुछ नहीं हो। फिर भी इतना अहंकार?
धर्म की समझ बहुत कम है मुझे, फिर भी समझ रहा हूँ कि लड्डू खाने वालों से करोड़ गुने अधिक पतित, भ्रष्ट और पापी तुम हो नालायकों। समय तुम्हारा भी दण्ड अवश्य तय करेगा।
साभार:सर्वेश तिवारी-(ये लेखक के अपने विचार हैं)
गोपालगंज, बिहार।