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समय नहीं व्यतीत हो रहा, हम ही व्यतीत हो रहे हैं।

-कुमार एस की कलम से-

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Positive India: Kumar S:
कालो न याति वयमेव याता।
#भर्तृहरि_महाराज ने सही कहा कि समय नहीं व्यतीत हो रहा, हम ही व्यतीत हो रहे हैं।
हिन्दी शब्द “जाना” संस्कृत गम्(गच्छ) से नहीं बना, याति- जाती है, इसी प्रकार व्यतीत से बीत बना।
अस्तु विषय पर आते हैं।
समय नहीं बीत रहा, हम ही बीत रहे हैं।

आजकल लोग कहते हैं कि समय बहुत जल्दी जल्दी जा रहा है। मोबाइल आने के बाद टाइमपास कोई समस्या नहीं रहा।
दो तीन घण्टे रील देखने में गुजर जाते हैं, पता ही नहीं चलता।
एक बार अजमेर जयपुर बाईपास वाली पुलिया पर रात्रिड्यूटी में तैनात एक लेडीज पुलिस से बात की।
“रात को ड्यूटी कठिन नहीं लगती?”
उन्होंने बताया कि 8 घण्टे की ड्यूटी है, रात को ट्रेवल्स की बसें सवारियों को यहाँ उतारती हैं, अजमेर में rpsc है तो कई बार अकेली लड़कियाँ को यहाँ सुनसान में छोड़कर बसें आगे निकल जाती है।
लम्बी दूरी से आने वाली बसों का समय रात को 3 बजे से सुबह 5 बजे रहता है, अतः हमारी ड्यूटी लगी है। लेकिन हमें कोई काम नहीं है, पुलिस की उपस्थिति ही पर्याप्त है तो मजे से यहीं कहीं बेंच पर बैठकर मोबाइल चलाते हैं। अब तो 8 घण्टे भी कम लगते हैं। समय चला जाता है, पता ही नहीं चलता।”

आजकल वर्ष भी बड़ी तेजी से निकल जाता है।
जब हम 5वे से 6ठे वर्ष में गये तब वर्ष बहुत बड़ा लगता था।
वैसे इसके पीछे एक वैज्ञानिक कारण है।
समय हमारी भोगी गई आयु के अनुपात में छोटा बड़ा लगता है।
जब हम पांच वर्ष के थे तब एक वर्ष हमारे जीवन का 20% था इसलिए वह बहुत बड़ा लगता था।
अभी जो 20 वे से 21वे वर्ष में जाता है उसके लिए 1वर्ष आयु के अनुपात में मात्र 5% है अतः जल्दी बीतता है। जो 50 वर्ष का है उसके लिए 1वर्ष भोग चुकी आयु का मात्र 2% ही है इसलिए जीवन के उत्तरार्ध में आयु बहुत जल्दी पूरी हो जाती है।

तो जो करना है, तुरंत करते जाइये।
इसी आयु को युवावस्था से तुलना करें तो जवानी 15 से 35वे वर्ष तक ही, मात्र 20 वर्ष रहती है, उसके लिए जवानी का आरंभिक 15 वे से 16वा वर्ष बहुत लंबा होता है लेकिन विवाहोपरांत 25 से 35 तक पहुंचने में आंख झपकने जितना ही समय लगता है।

जिनका विवाह ही 30 वे के बाद हुआ उन्होंने तो वास्तव में कुछ भी नहीं देखा। #वे_दुर्भाग्यशाली भले ही कहते नहीं लेकिन इस बात का अवसाद जीवन भर रहता है।
35 पार विवाह करने वालों का कोई भविष्य नहीं है क्योंकि यौवन रूपी फल का रस उन्होंने कभी चखा ही नहीं।
समय को पहचानने में हम हिन्दू सर्वाधिक पिछड़े हैं।
35 वे वर्ष तक मनुष्य को इतना कमा लेना चाहिए कि वह बाद में आराम से जीवन गुजार सके। इसके लिए उसे 15 वे वर्ष में ही व्यवसाय में संलग्न हो जाना चाहिए।

मिस्त्रियों और पंचर वालों के पास आपको 13 से 15 वर्ष के लड़के काम करते हुए मिलेंगे। कई किसान अपने 15 साल के लड़के को ट्रैक्टर की सीट पर बिठा देते हैं, पशुपालकों के 16 वर्ष के लड़के ऊंट को पछाड़ देते है, घोड़े को नियंत्रित कर देते हैं और बैल को नथ देते हैं।
इधर शहरी पढ़े लिखे वर्ग के युवा जीवन के इस भाग में निरर्थक चीजों में संलग्न रहते हैं।

जिसने समय को नहीं पहचाना, समय उसे ऐसी मार देता है कि वह कहीं का नहीं रहता।
अकबर 15 वर्ष की आयु में और पृथ्वीराज चौहान 11वे वर्ष में सम्राट बन गया था।
इधर 40 से 55 वे वर्ष तक कन्हैया कुमार जैसे जेएनयू की होस्टल की दाल पर जिंदा रहकर छात्र कहलाते हैं।
वामपंथियों और फेमिनिस्ट सीरियल, एकता कपूर इत्यादि आपकी जवानी को नाली में बहाने के अभियान पर हैं और आप फंस गए हैं।

पोषाहार, आंगनवाड़ी, छात्रवृत्ति, बेरोजगारी भत्ता, मुफ्त देने वाली सभी योजनाएं आपके संघर्ष की क्षमता को भौंथरा करती हैं।
कहने को ये सब लोकलुभावन हैं लेकिन जीवन के सबसे ऊर्जावान समय में आपको छोटे प्रलोभन में फंसाकर सारी संभावनाओं की भ्रूणहत्या कर देती हैं।

चाणक्य कहते हैं “स्वयं को अजर अमर मानकर विद्या और अर्थ का संचय करना चाहिए लेकिन मृत्यु ने केशों से पकड़ रखा है ऐसा मानकर प्रतिक्षण धर्म का आचरण करना चाहिए।”
अजरामरवत् प्राज्ञ: विद्यामर्थम् च चिन्तयेत्।
मृत्युना गृहीत इव केशेषु धर्ममाचरेत्।।
हमारे ऋषि मुनियों ने बार बार कहा है “तेरी उम्र बीती जाय, मानखा चेत सके तो चेत!”
अस्तु…. आज के बाद यदि कोई कहे कि टाइमपास कर रहे हैं तो याद दिलाना कि समय नहीं बीत रहा, आप ही बीत रहे हो।

साभार:कुमार एस-(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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