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वह घुंघराले बाल और संतूर की मिठास ! आह !

-दयानंद पांडेय की कलम से-

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Positive India:Dayanand Pandey:
कुछ लिखते हुए मुझे संगीत सुनते रहने की जैसे आदत सी है। मंद-मंद , मधुर-मधुर ! लत सी है। यह सुनना। बांसुरी , संतूर , शहनाई , तबला कुछ भी हो सकता है। शोभा गुर्टू , बड़े गुलाम अली भी हो सकते हैं। किशोरी अमोनकर , शांति हीरानंद , भीमसेन जोशी , कुमार गंधर्व , भीमसेन जोशी , पंडित जसराज , गिरिजा देवी , कौशिकी चक्रवर्ती भी हो सकती हैं। शारदा सिनहा , मालिनी अवस्थी भी हो सकती हैं। जगजीत सिंह , किशोर , लता , रफ़ी , मुकेश , मन्ना डे या हेमंत कुमार भी भी हो सकते हैं। मद्धम सुर में गाते हुए। निर्मला देवी या मोहम्मद खलील भी। जब जो सूझ जाए। अनायास मिल जाए। लेटे-लेटे , बैठे-बैठे , आंख बंद कर सुनना भी सुखद ही रहता है।

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पर देर रात लिखते समय पंडित शिवकुमार शर्मा का संतूर जो मिठास मन में घोलता है कोई और नहीं। हरि प्रसाद चौरसिया की बांसुरी भी यही सुख देती है। लेकिन पंडित शिव कुमार शर्मा के संतूर का तो कोई जवाब नहीं। कई बार शिव कुमार शर्मा का संतूर लोरी जैसा सुख भी देता है। सुनते-सुनते सो भी जाता हूं। संतूर तो अब भी सुनूंगा लेकिन ध्यान में बना रहेगा कि पंडित जी तो अब नहीं हैं। वह कश्मीरी सुगंध वाला संतूर अब घायल हो गया है , यह कैसे भूल सकता हूं अब। पंडित शिव कुमार शर्मा का संगीत तो अमर है , सर्वदा रहेगा। मेरे मन में भी। मेरे लिखने में भी पंडित शिव कुमार शर्मा का संतूर बजता ही रहेगा। बस वही नहीं रहेंगे। नैना देवी की ठुमरी में जो शिव कुमार शर्मा को याद करुं कौशिकी चक्रवर्ती की गायकी में , भीगी जाऊं मैं गोईयां , बचाए रहियो ! विनती करत छुपाए रहियो ! तो मन भीजता रहेगा। मंद-मंद , मधुर-मधुर। और झरन लगी बदरिया में बादर की तरह अपने संतूर में झरते रहें। सर्वदा-सर्वदा ! भीगी जाऊं मैं गोइयां !

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विनम्र श्रद्धांजलि !

साभार:दयानंद पांडेय

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